उत्तराखण्ड का इतिहास (History of Uttarakhand Part 1)

उत्तराखण्डः एक परिचय

भौगोलिक परिचय- स्वतंत्रता के अवसर पर भारत में केवल  एक ही हिमालयी राज्य 'असम' आस्तित्व में था। देश का शेप हिमालयी क्षेत्र किसी न किसी मैदानी राज्य का हिस्सा था। 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू और कश्मीर के भारत में विलय के साथ वह भारत का दूसरा हिमालयी राज्य बना। इसके पश्चात् क्रमशः

नागलैण्ड (1966) हिमाचल प्रदेश (1971) मेघालय (1972), त्रिपुरा एवं मणिपुर (1972) और सिक्किम  1975) में हिमालयी राज्य वर्तमान आस्तित्व में आये। इसी क्रम में 9 नवम्बर 2000 को उत्तराखण्ड को 11वें हिमालयी राज्य और देश के 27वें राज्य के रूप में मान्यता मिली।

उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि कोई न कोई कारण ऐसा उपस्थित रहा जिसके कारण लगातार पृथक हिमालयी राज्यो की माँग उठती रही और नए राज्य गठित होते रहे। यदि कारण को जानने का प्रयास किया जाए तो हम पाते है कि जब भारत में पाँच वर्षीय कार्यक्रम और विकास योजनाओं की शुरूआत हुई तो कुछ समय पश्चात् ही पाया गया कि मैदानी क्षेत्रो की अपेक्षा पहाड़ी क्षेत्रो में विकास की गति अत्यधिक मंद थी जिसके कारण धीरे-धीरे वे विकास की दौड़ में पिछड़ते चले गये। इन क्षेत्रो की जनता को अनुभव होने लगा कि उनकी विपम भौगोलिक परिस्थिति के कारण मैदानी क्षेत्रो के साथ पर्वतीय क्षेत्र का विकास संम्भव नही है। दोनो ही क्षेत्रो की मूल आवश्यकताएँ, प्राथमिकताएँ, आधार और मानको में भारी अन्तर है अतः पर्वतीय क्षेत्रो के विकास की अवधारणा उसके भौगोलिक, आर्थिक एवं ससांधनिक स्त्रोतो अनुरूप होनी चाहिए। इसी मान्यता के आधार पर स्वतंत्रता के पश्चात् अब तक 11 हिमालयी राज्य आस्तित्व में आए।

 हिमालयी राज्यों में सबसे नवनिर्मित राज्य उत्तराखण्ड की  ग्लोब में स्थिति 28°, 43' उतर से 31° 27' उतरी अंक्षाश एवं 77°, 34' पूर्व से 81° 22" पूर्वी देशान्तर के मध्य है। इसका कुल क्षेत्रफल 53484 वर्ग किमी है जो देश के कुल क्षेत्रफल का 1.6वाँ भाग है। उत्तराखण्ड राज्य की अधिकतम लम्बाई 358 किमी और अधिकतम चौड़ाई 320 किमी है। क्षेत्रफल की दृष्टि से इसका देश में 18वाँ स्थान है जबकि 2011 की जनगणना के अनुसार जनसंख्या की  दृष्टि से इसका 20वाँ स्थान है। यह राज्य देश के उतर-पश्चिम और पश्चिम मध्य हिमालय में अवस्थित है। इस राज्य से राज्य  और अन्तराष्ट्रीय सीमाएँ लगती है। इस राज्य के उत्तर में तिब्बत और पूर्व में नेपाल की सीमाएँ लगती है जबकि पश्चिम में हिमाचल प्रदेश और दक्षिण में उत्तर प्रदेश से राज्य की सीमाएँ मिलती है।

उत्तराखण्ड राज्य पूर्व में उत्तर प्रदेश का भाग था। इस प्रदेश की समुद्र तल से अधिकतम ऊँचाई 7816 मीटर है। सामान्यतः प्रदेश का न्यूनतम तापमान 1.9° सेल्सियस और अधिकतम 40.5° सेल्सियस के मध्य रहता है। इस क्षेत्र की औसत वर्षा 1079 मि०मी० तक रहती है।

प्रदेश के नरेन्द्रनगर क्षेत्र में सर्वाधिक वर्षा होती है जिस कारण यह क्षेत्र उत्तराखण्ड का चेरापूंजी के नाम से भी जाना जाता है। प्रदेश के द्वारहाट क्षेत्र में सबसे कम वर्षा होती है। प्रदेश के कुल क्षेत्रफल के 34,662 वर्ग किमी पर वनक्षेत्र का विस्तार है। राज्य का भौगोलिक विस्तार पर्वतीय एवं मैदानी भाग तक है जिसका विभाजन अध्ययन की सुविधा दृष्टि से चार भागों में किया जा सकता है, जो इस प्रकार है-

(1) महान हिमालयी क्षेत्र

(2) मध्य हिमालयी क्षेत्र,

(3) शिवालिक हिमालयी क्षेत्र

(4) गंगा का मैदानी क्षेत्र

(1) महान हिमालयी क्षेत्र

 (1) महान हिमालयी क्षेत्र  इस क्षेत्र की ऊँचाई 4800 से 6000 मीटर के मध्य है और यह  राज्य को तिब्बत की पठारी  सीमाओं से पृथक करता है। लगभग 50 किमी0 चौड़ाई वाला यह  क्षेत्र भारतीय मानसून के हिसाब से वृष्टिछाया क्षेत्र है। इस भाग में अनेक हिमनद है इसलिए कई प्रमुख नदियाँ जैसे भागीरथी, अलकनंदा और यमुना का उद्गम इसी क्षेत्र से है। इस भाग की मिट्टी तलछट की चट्टानो से निर्मित है जिसके कारण इस क्षेत्र में अनेक घाटियो का निर्माण हो गया है। इस क्षेत्र की प्रमुख चोटिया नंदादेवी, कामेत, बंदरपूछ इत्यादि है।

इस भू-भाग की जलवायु अत्यन्त ठण्डी है और इस क्षेत्र की पर्वत चोटियाँ वर्ष भर बर्फ से ढकी रहती हैं। यह क्षेत्र अत्यन्त कटा-फटा है जो पंखाकार आकृति वाली मोड़दार पर्वत श्रंखलाओं द्वारा निर्मित है। यह कठोर जलवायु दशा, वनस्पति शून्य एवं निर्जन भू-भाग वाला क्षेत्र है। प्रसिद्ध मानसरोवर यात्रा का मार्ग भी इस

क्षेत्र में है। इस भाग में जून से सितम्बर के मध्य औसतन, 100-200 मिमी तक वर्षा होती है। हिमालय के इस भाग में शीतोष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पाये जाते है जिनमें साल, चीड़ और सागौन के वृक्ष बहुतायत में होते हैं। घाटियों के निचले क्षेत्रों में वनस्पति का पूर्ण अभाव होता है।

हिमालय का यह क्षेत्र प्राचीन काल से ही उद्यमी जनजाति (शौका) का ग्रीष्म कालीन निवास रहा है। तिब्बत व चीन से प्राचीन एवं आधुनिक सम्बन्धों को केन्द्र भी यही क्षेत्र है। इस क्षेत्र के निवासियो का मुख्य व्यवसाय पशुपालन है। इसके अतिरिक्त ऊनी वस्त्र, हस्तशिल्प, जड़ी-बूटी इत्यादि का परम्परागत व्यापार इस क्षेत्र के निवासियों की आय का प्रमुख साधन रहे है।

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