पहाड़ी डिश कंडाली का साग (Pahari dish Kandali ka saag)

पहाड़ी डिश कंडाली का साग

पुराने समय में जब सब कुछ बर्फ के नीचे दबकर नष्ट हो जाता था, तो एक चीज थी जिसपर बर्फ का कोई असर नहीं होता था – वह थी कंडाली या बिच्छू घास (Nettle Leaf), जिसका वानस्पतिक नाम अर्टिका पर्वीफ्लोरा है। बिच्छू घास पूरी तरह कांटों से भरा होता है, जिनमें acetylcholine, histamine, 5-HT और formic acid का मिश्रण होता है। इसे छूने मात्र से असहनीय जलन और खुजली होती है, जिससे यह “खुजली वाला पौधा” भी कहलाता है।


औषधीय गुणों से भरपूर कंडाली

कंडाली उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बहुतायत में पाई जाती है। यह ब्लड क्लॉटिंग और हृदय रोगों के उपचार में रामबाण औषधि है। इसमें एंटीबायोटिक गुण भी हैं, जो पेट के अल्सर, बुखार, कमजोरी, गठिया, पित्त दोष, और मलेरिया जैसी बीमारियों को दूर भगाने में सहायक हैं। कंडाली में विटामिन A, B, D, आयरन, कैल्शियम और मैंगनीज प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसका स्वाद पालक के साग की तरह ही स्वादिष्ट होता है।


कंडाली का साग बनाने की विधि

आवश्यक सामग्री:

  • कंडाली की नई मुलायम कोंपलें (250 ग्राम)

  • भीगे हुए चावल (स्वाद बढ़ाने और गाढ़ापन लाने के लिए)

  • तेल या घी (तड़का लगाने के लिए)

  • साबुत लाल मिर्च

  • जख्या (तड़के के लिए)

  • हींग

  • दो हरी मिर्च (कटी हुई)

  • मसाले (धनिया पाउडर, हल्दी, नमक)


विधि:

  1. कंडाली की तैयारी:

    • पत्थरों के बीच उगी कंडाली को चिमटे और चाकू की मदद से तोड़ें।

    • कांटों से बचने के लिए सावधानी बरतें।

    • इसे अच्छी तरह धोकर साफ करें।

  2. कंडाली को उबालना:

    • अगर कांटे अधिक हैं, तो कंडाली को हल्की आग में जला लें।

    • इसके बाद इसे पानी में उबाल लें।

  3. साग तैयार करना:

    • उबली हुई कंडाली को सिल-बट्टे या मिक्सी में बारीक पीस लें।

    • भीगे हुए चावल को पीसकर कंडाली के साथ मिलाएं।

    • इसमें हल्का धनिया पाउडर मिलाकर रखें।

  4. तड़का लगाना:

    • कढ़ाही में तेल या घी गरम करें।

    • तेल गरम होने पर लाल मिर्च भूनकर अलग निकाल लें।

    • जख्या, हींग और हल्दी डालकर तड़का तैयार करें।

  5. साग पकाना:

    • तैयार तड़के में कंडाली और चावल का मिश्रण डालें।

    • आवश्यकता अनुसार पानी और नमक डालें।

    • करछी से अच्छे से हिलाते रहें।

    • जब साग पक जाए, तो इसे परोसें।

  6. परोसना:

    • भात (चावल) के साथ कंडाली का साग परोसें।

    • ऊपर से घी और भूनी हुई लाल मिर्च डालने से स्वाद और बढ़ जाता है।


कंडाली की चाय

कंडाली की चाय यूरोप के देशों में विटामिन और खनिजों का पावर हाउस मानी जाती है। यह रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाने में सहायक है।

  • चाय बनाने का तरीका: कंडाली की सूखी पत्तियों को पानी में उबालें और इसमें शहद मिलाएं।

  • कीमत: कंडाली की चाय भारत में 150 से 290 रुपये प्रति 100 ग्राम के बीच मिलती है।

  • प्रमाणीकरण: इसे भारत सरकार के एनपीओपी (जैविक उत्पादन का राष्ट्रीय उत्पादन) ने प्रमाणित किया है।


कंडाली के अन्य औषधीय लाभ

  1. खून की कमी दूर करना: इसमें मौजूद आयरन खून की कमी पूरी करता है।

  2. गठिया और जोड़ों का दर्द: इसके औषधीय गुण गठिया और जोड़ों के दर्द में राहत देते हैं।

  3. कैंसर रोधी: इसके बीजों से कैंसर की दवाइयां बनाई जाती हैं।

  4. सर्दी और खांसी: यह बलगम और जुकाम को दूर करता है।


निष्कर्ष

कंडाली, जिसे बिच्छू घास या सिसुण के नाम से भी जाना जाता है, एक औषधीय और पौष्टिक पौधा है। पहाड़ों की इस अमूल्य विरासत को हमारी थालियों में शामिल करना न केवल हमारे स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखने का भी एक तरीका है। “कंडाली का साग” केवल एक व्यंजन नहीं, बल्कि उत्तराखंड के पारंपरिक ज्ञान और स्वास्थ्य का प्रतीक है।

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