पहाड़ी पिसी नूण: स्वाद, परंपरा और पहचान की अनमोल विरासत (Pahari Pisi Nun: A Priceless Legacy of Taste, Tradition and Identity)
पहाड़ी पिसी नूण: स्वाद, परंपरा और पहचान की अनमोल विरासत
उत्तराखंड की संस्कृति और खानपान में एक अनोखा स्वाद और परंपरा छिपी है, जिसे हम "पहाड़ी पिसी नूण" के नाम से जानते हैं। यह न केवल उत्तराखंडियों की रसोई की पहचान है, बल्कि उनके दिलों में बसी यादों और स्वाद की अनमोल धरोहर भी है। जैसा कि मेरे मित्र शमशेर नेगी कहते हैं, “जिसने नहीं खाया पहाड़ी नूण, उसमें नहीं पहाड़ी खून।”
पहाड़ी नूण का सांस्कृतिक महत्व
किसी भी पहाड़ी परिवार की पहचान उसकी रसोई में रखे पहाड़ी नूण से होती है। अगर किसी मेहमान को अमरूद या काखड़ी के साथ पहाड़ी नूण परोसा जाए, तो यह तय हो जाता है कि यह परिवार पहाड़ से गहराई से जुड़ा है। यह सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि उस संस्कृति का प्रतीक है जो हर पहाड़ी के खून में बसी है।
शमशेर नेगी जैसे हुनरमंद लोगों के हाथ से बने पहाड़ी नूण के किस्से तो मशहूर हैं। चाहे वह भूने हुए बकरे की कचमोली हो या काखड़ी का आनंद, पहाड़ी नूण ने हर व्यंजन को खास बनाया है।
पहाड़ी नूण और मौसमी स्वाद
- काखड़ी के साथ पहाड़ी नूणसावन-भादो के महीनों में पहाड़ के गांव काखड़ियों से सज जाते हैं। इन काखड़ियों का सही आनंद पहाड़ी नूण के साथ ही आता है। लाल और हरी मिर्च, लहसुन और धनिया के साथ तैयार चटपटा नूण काखड़ी के रस के साथ घुलकर खाने में एक अद्भुत स्वाद देता है।
- नींबू और सन्ना उत्सवसर्दियों में बड़े-बड़े नींबुओं से सन्ना बनाया जाता है। यह महिलाओं का एक उत्सव है, जहां पारंपरिक रूप से पहाड़ी नूण का उपयोग कर नींबू, मूली, धनिया और अन्य सामग्री के साथ सन्ना तैयार किया जाता है। गढ़वाल और कुमाऊं मंडल में इस प्रक्रिया के अपने-अपने तरीके हैं, लेकिन दोनों में नूण का मुख्य स्थान है।
पहाड़ी नूण के विविध उपयोग
- फलों के साथ: सेब, नाशपाती या अमरूद के साथ इसका उपयोग स्वाद को और बढ़ा देता है।
- दाल-सब्जी में: हल्का खट्टापन लिए पहाड़ी नूण बुजुर्गों और बच्चों के लिए आदर्श है।
- भट्ट के डुबके और आलू के गुटकों में: इसका उपयोग व्यंजनों को एक अलग ही स्वाद देता है।
पहाड़ी नूण की खुशबू और विविधता
पहाड़ी नूण स्वाद और खुशबू की किसी सीमा में बंधा नहीं है। यह विभिन्न प्रकारों में आता है, जैसे:
- लहसुन-मिर्च का नूण
- धनिया और लहसुन पत्तियों का नूण
- भांग, भंगीर, मोरिया, तिल और तिमूर का नूण
शहरों में पहाड़ी नूण की मांग
आज, गांवों से पलायन के कारण पहाड़ी नूण का स्वाद और खुशबू शहरों तक पहुंच गया है। हल्द्वानी, देहरादून जैसे शहरों के बाजारों और उत्तरायणी मेलों में यह नूण आसानी से उपलब्ध है। महिला समूहों द्वारा तैयार किया गया यह नूण अब न केवल पारंपरिक स्वाद की चाहत रखने वालों को, बल्कि व्यावसायिक रूप से भी अपनी पहचान बना रहा है।
पहाड़ी नूण: पहचान, परंपरा और स्वाद की विरासत
पहाड़ी नूण उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर है। यह सिर्फ एक मसाला नहीं, बल्कि हर पहाड़ी के जीवन का हिस्सा है। यह न केवल खानपान का स्वाद बढ़ाता है, बल्कि यह हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है।
तो अगली बार जब आप पहाड़ी नूण का स्वाद लें, तो इसे सिर्फ एक मसाले के रूप में नहीं, बल्कि अपनी संस्कृति और परंपरा की अनमोल धरोहर के रूप में देखें।
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