स्वतंत्रता पूर्व उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का तीसरा चरण (1940-1947) - (The third phase of journalism in Uttarakhand before independence (1940-1947))
स्वतंत्रता पूर्व उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का तीसरा चरण (1940-1947)
स्वतंत्रता पूर्व उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का तीसरा व अंतिम चरण सन् 1940 से 1947 के मध्य मात्र 7 वर्षों का रहा। यह चरण अन्य दोनों चरणों की अपेक्षा अत्यन्त अल्पावधि का रहा, क्योंकि इस समय स्वतंत्रता आन्दोलन अपने चरम पर था। देश के हालात दिन-प्रतिदिन बदल रहे थे, और इन परिवर्तनों का प्रभाव पत्रकारिता पर भी स्पष्ट रूप से पड़ा। इस कारण, इस काल की पत्रकारिता अत्यधिक उथल-पुथल भरी रही।
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इस समय देश के हर कोने में 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' तथा पूर्ण स्वराज की मांग गूंज रही थी। इसका प्रभाव उत्तराखण्ड के समाचार पत्रों और उनके संपादकों पर भी पड़ा। कई राष्ट्रभक्त संपादकों व पत्रकारों को जेल जाना पड़ा, कई समाचार पत्रों से ऊँची जमानतें मांगी गईं, और कई समाचार पत्रों का प्रकाशन पूरी तरह से बंद हो गया।
1945-46 तक आते-आते अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्र करने का निर्णय लिया, जिसके साथ ही अधिकांश आंदोलन समाप्ति की ओर बढ़ने लगे। इस बीच जेल से रिहा हुए संपादक व पत्रकार पुनः पत्रकारिता में लौट आए, लेकिन अब उनमें पहले जैसी आक्रामकता नहीं थी। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समाचार पत्रों ने समाज की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनैतिक व आर्थिक स्थिरता की ओर ध्यान देना शुरू किया।
इस चरण के प्रमुख समाचार पत्र:
सन्देश (1940-41 ई0)
कृपाराम मिश्र 'मनहर' द्वारा अपने छोटे भाई हरिराम मिश्र 'चंचल' के सहयोग से सन् 1940 में कोटद्वार से 'सन्देश' समाचार पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ किया गया। हरिराम 'चंचल' इस पत्र के सहकारी सम्पादक व प्रकाशक थे। यह पत्र मात्र एक वर्ष ही चल पाया क्योंकि 1941 में कृपाराम मिश्र के सत्याग्रह में जेल जाने के कारण इसका प्रकाशन बंद हो गया।
समाज (1942 ई0)
स्वतंत्रता सेनानी राम प्रसाद बहुगुणा द्वारा 1942 में 'समाज' नामक एक हस्तलिखित समाचार पत्र का सम्पादन किया गया। वे चमोली जिले में तत्कालीन पत्रकारिता के आधार स्तम्भ थे। दो वर्षों तक यह पत्र नियमित रूप से प्रकाशित हुआ, लेकिन 'भारत छोड़ो आंदोलन' में बहुगुणा के जेल जाने के कारण इसका प्रकाशन भी बंद हो गया।
मंसूरी एडवरटाइजर (1942 ई0)
मंसूरी के कुलड़ी स्थित प्रिंटिंग प्रेस से प्रकाशित 'मंसूरी एडवरटाइजर' समाचार पत्र का प्रकाशन 1942 में के.एफ. मेकागोन द्वारा किया गया। यह पत्र मुख्य रूप से विज्ञापन केंद्रित था और इसमें समाचार नाममात्र के ही होते थे। यह 1947 तक प्रकाशित हुआ और स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात इसका प्रकाशन बंद हो गया।
स्वराज संदेश (पाक्षिक) (1942-43 ई0)
बिजनौर के निवासी हुलास वर्मा, जो देहरादून में सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे, ने 'स्वराज संदेश' नामक पाक्षिक हिंदी समाचार पत्र का संपादन किया। यह पत्र अंग्रेजी शासन के खिलाफ आक्रामक स्वर अपनाता था और जनता को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित करता था। सरकार ने प्रशासन विरोधी लेखों और भड़काऊ संपादकीय लिखने के आरोप में दो बार जमानत मांगी, लेकिन हुलास वर्मा अपने उद्देश्य से पीछे नहीं हटे और पत्रकारिता में सक्रिय बने रहे।
निष्कर्ष
स्वतंत्रता पूर्व उत्तराखण्ड में पत्रकारिता का यह तीसरा चरण संघर्ष और बलिदान से भरा हुआ था। इस दौरान प्रकाशित समाचार पत्रों ने न केवल स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि आम जनता को जागरूक करने का भी कार्य किया। हालांकि, कई समाचार पत्र अल्पकालिक रहे, लेकिन उनका योगदान अमिट और प्रेरणादायक रहा।
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