Alluri Sitarama Raju (अल्लूरी सीताराम राजू)

अल्लूरी सीताराम राजू: भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के वीर क्रांतिकारी

जन्म- 4 जुलाई 1897 को विशाखापट्टनम, आन्ध्र प्रदेश में हुआ था।
निधन- 7 मई, 1924 को सीताराम राजू को पेड़ से बांधकर उन पर गोलियाँ बरसाईं।
उपलब्धि- सीताराम राजू ने लोगों के मन से अंग्रेज़ शासन के डर को निकाल फेंका और उन्हें 'असहयोग आन्दोलन' में भाग लेने को प्रेरित किया।

जीवन परिचय-

अल्लूरी सीताराम राजू भारत की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले वीर क्रांतिकारी शहीदों में से एक थे। उन्हें औपचारिक शिक्षा बहुत कम मिल पाई थी। अपने एक संबंधी के संपर्क से वे अध्यात्म की ओर आकृष्ट हुए तथा 18 वर्ष की उम्र में ही साधु बन गए। सन 1920 में अल्लूरी सीताराम पर महात्मा गांधी के विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा और उन्होंने आदिवासियों को मद्यपान छोड़ने तथा अपने विवाद पंचायतों में हल करने की सलाह दी। किंतु जब एक वर्ष में स्वराज्य प्राप्ति का गांधी जी का स्वप्न साकार नहीं हुआ तो सीताराम राजू ने अपने अनुयायी आदिवासियों की सहायता से अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह करके स्वतंत्र सत्ता स्थापित करने के प्रयत्न आंरभ कर दिए।

जन्म तथा परिवार

अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई, 1897 ई. को पांडुरंगी गाँव, विशाखापट्टनम, आन्ध्र प्रदेश में हुआ था। वह क्षत्रिय परिवार से सम्बन्ध रखते थे। उनकी माता का नाम सूर्यनारायणाम्मा और पिता का नाम वेक्टराम राजू था। उन्हें अपने पिता के प्यार से बहुत शीघ्र ही वंचित हो जाना पड़ा। सीताराम राजू की अल्पायु में ही पिता की मृत्यु हो गयी, जिस कारण वे उचित शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके। बाद में वे अपने परिवार के साथ टुनी रहने आ गये। यहीं से वे दो बार तीर्थयात्रा के लिए प्रस्थान कर चुके थे।

क्रांतिकारियों से भेंट

पहली तीर्थयात्रा के समय वे हिमालय की ओर गये। वहाँ उनकी मुलाक़ात महान् क्रांतिकारी पृथ्वीसिंह आज़ाद से हुई। इसी मुलाक़ात के दौरान इनको चटगाँवके एक क्रांतिकारी संगठन का पता चला, जो गुप्त रूप से कार्य करता था। सन 1919-1920 के दौरान साधु-सन्न्यासियों के बड़े-बड़े समूह लोगों में राष्ट्रीयता की भावना जगाने के लिए व संघर्ष के लिए पूरे देश में भ्रमण कर रहे थे। इसी अवसर का लाभ उठाते हुए सीताराम राजू ने भी मुम्बई, बड़ोदरा, बनारस, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, असम, बंगाल और नेपाल तक की यात्रा की। इसी दौरान उन्होंने घुड़सवारी करना, तीरंदाजी, योग, ज्योतिष व प्राचीन शास्त्रों का अभ्यास व अध्ययन भी किया। वे काली माँ के उपासक थे।

संन्यासी जीवन

अपनी तीर्थयात्रा से वापस आने के बाद सीताराम राजू कृष्णदेवीपेट में आश्रम बनाकर ध्यान व साधना आदि में लग गए। उन्होंने संन्यासी जीवन जीने का निश्चय कर लिया था। दूसरी बार उनकी तीर्थयात्रा का प्रयाण नासिक की ओर था, जो उन्होंने पैदल ही पूरी की थी। यह वह समय था, जब पूरे भारत में 'असहयोग आन्दोलन' चल रहा था। आन्ध्र प्रदेश में भी यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा तक पहुँच गया था। इसी आन्दोलन को गति देने के लिए सीताराम राजू ने पंचायतों की स्थापना की और स्थानीय विवादों को आपस में सुलझाने की शुरुआत की। सीताराम राजू ने लोगों के मन से अंग्रेज़ शासन के डर को निकाल फेंका और उन्हें 'असहयोग आन्दोलन' में भाग लेने को प्रेरित किया।

क्रांतिकारी गतिविधियाँ

कुछ समय बाद सीताराम राजू ने गांधी जी के विचारों को त्याग दिया और सैन्य सगठन की स्थापना की। उन्होंने सम्पूर्ण रम्पा क्षेत्र को क्रांतिकारी आन्दोलन का केंद्र बना लिया। मालाबार का पर्वतीय क्षेत्र छापामार युद्ध के लिए अनुकूल था। इसके अलावा क्षेत्रीय लोगों का पूरा सहयोग भी उन्हें मिल रहा था। आन्दोलन के लिए प्राण तक न्यौछावर करने वाले लोग उनके साथ थे। इसीलिए आन्दोलन को गति देने के लिए गुदेम में गाम मल्लू डोरे और गाम गौतम डोरे बंधुओ को लेफ्टिनेट बनाया गया। आन्दोलन को और तेज़ करने के लिए उन्हें आधुनिक शस्त्र की आवश्यकता थी। ब्रिटिश सैनिकों के सामने धनुष-बाण लेकर अधिक देर तक टिके रहना आसान नहीं था। इस बात को सीताराम राजू भली-भाँति समझते थे। यही कारण था कि उन्होंने डाका डालना शुरू किया। इससे मिलने वाले धन से शस्त्रों को ख़रीद कर उन्होंने पुलिस स्टेशनों पर हमला करना शुरू किया। 22 अगस्त, 1922 को उन्होंने पहला हमला चिंतापल्ली में किया। अपने 300 सैनिकों के साथ शस्त्रों को लूटा। उसके बाद कृष्णदेवीपेट के पुलिस स्टेशन पर हमला कर किया और विरयया डोरा को मुक्त करवाया।

ब्रिटिश सरकार की चिंता

अल्लूरी सीताराम राजू की बढ़ती गतिविधियों से अंग्रेज़ सरकार सतर्क हो गयी। ब्रिटिश सरकार जान चुकी थी की अल्लूरी राजू कोई सामान्य डाकू नहीं है। वे संगठित सैन्य शक्ति के बल पर अंग्रेज़ों को अपने प्रदेश से बाहर निकाल फेंकना चाहते है। सीताराम राजू को पकड़वाने के लिए सरकार ने स्कार्ट और आर्थर नाम के दो अधिकारियों को इस काम पर लगा दिया। सीताराम राजू ने ओजेरी गाँव के पास अपने 80 अनुयायियों के साथ मिलकर दोनों अंग्रेज़ अधिकारियों को मार गिराया। इस मुठभेड़ में ब्रिटिशों के अनेक आधुनिक शस्त्र भी उन्हें मिल गए। इस विजय से उत्साहित सीताराम राजू ने अंग्रेज़ों को आन्ध्र प्रदेश छोड़ने की धमकी वाले इश्तहार पूरे क्षेत्र में लगवाये। इससे अंग्रेज़ सरकार और भी अधिक सजग हो गई। उसने सीताराम राजू को पकड़वाने वाले के लिए दस हज़ार रुपये इनाम की घोषणा करवा दी। उनकी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए लाखों रुपया खर्च किया गया। मार्शल लॉ लागू न होते हुए भी उसी तरह सैनिक बन्दोबस्त किया गया। फिर भी सीताराम राजू अपने बलबूते पर सरकार की इस कार्यवाही का प्रत्युत्तर देते रहे। ब्रिटिश सरकार लोगों में फुट डालने का काम सरकार करती थी, लेकिन अल्लूरी राजू की सेना में लोगों के भर्ती होने का सिलसिला जारी रहा।

पुलिस से मुठभेड़

ब्रिटिश सरकार पर सीताराम राजू के हमले लगातार जारी थे। उन्होंने छोड़ावरन, रामावरन आदि ठिकानों पर हमले किए। उनके जासूसों का गिरोह सक्षम था, जिससे सरकारी योजना का पता पहले ही लग जाता था। उनकी चतुराई का पता इस बात से लग जाता है की जब पृथ्वीसिंह आज़ाद राजमहेन्द्री जेल में क़ैद थे, तब सीताराम राजू ने उन्हें आज़ाद कराने का प्रण किया। उनकी ताकत व संकल्प से अंग्रेज़ सरकार परिचित थी। इसलिए उसने आस-पास के जेलों से पुलिस बल मंगवाकर राजमहेंद्री जेल की सुरक्षा के लिए तैनात किया। इधर सीताराम राजू ने अपने सैनिकों को अलग-अलग जेलों पर एक साथ हमला करने की आज्ञा दी। इससे फायदा यह हुआ की उनके भंडार में शस्त्रों की और वृद्धि हो गयी। उनके इन बढ़ते हुए कदमों को रोकने के लिए सरकार ने 'असम रायफल्स' नाम से एक सेना का संगठन किया। जनवरी से लेकर अप्रैल तक यह सेना बीहड़ों और जंगलों में सीताराम राजू को खोजती रही। मई 1924 में अंग्रेज़ सरकार उन तक पहुँच गई। 'किरब्बू' नामक स्थान पर दोनों सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ।

शहादत

अल्लूरी राजू विद्रोही संगठन के नेता थे और 'असम रायफल्स' का नेतृत्त्व उपेन्द्र पटनायक कर रहे थे। दोनों ओर की सेना के अनेक सैनिक मारे जा चुके थे। अगले दिन 7 मई को पुलिस रिकॉर्ड के अनुसार सीताराम राजू को पकड लिया गया। उस समय सीताराम राजू के सैनिकों की संख्या कम थी फिर भी 'गोरती' नामक एक सैन्य अधिकारी ने सीताराम राजू को पेड़ से बांधकर उन पर गोलियाँ बरसाईं। अल्लूरी सीताराम राजू के बलिदान के बाद भी अंग्रेज़ सरकार को विद्रोही अभियानों से मुक्ति नहीं मिली। इस प्रकार लगभग दो वर्षों तक ब्रिटिश सत्ता की नींद हराम करने वाला यह वीर सिपाही शहीद हो गया।

Frequently Asked Questions (FQCs) 

1. अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

उत्तर: अल्लूरी सीताराम राजू का जन्म 4 जुलाई 1897 को विशाखापट्टनम, आंध्र प्रदेश में हुआ था।

2. अल्लूरी सीताराम राजू को किसने मार डाला और कब?

उत्तर: 7 मई 1924 को अल्लूरी सीताराम राजू को अंग्रेज़ पुलिस ने पकड़ा और उन्हें पेड़ से बांधकर गोली मार दी।

3. अल्लूरी सीताराम राजू ने स्वतंत्रता संग्राम में कैसे योगदान दिया?

उत्तर: सीताराम राजू ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया और बाद में अंग्रेज़ों के खिलाफ सशस्त्र विद्रोह शुरू किया। उन्होंने आदिवासियों को एकजुट किया और रम्पा क्षेत्र में स्वतंत्रता संग्राम का केंद्र स्थापित किया।

4. अल्लूरी सीताराम राजू के प्रेरणा स्रोत कौन थे?

उत्तर: महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर, सीताराम राजू ने लोगों को आत्मनिर्भरता और असहयोग आंदोलन में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। बाद में, उन्होंने गांधी जी के विचारों को त्याग कर सशस्त्र विद्रोह की राह अपनाई।

5. अल्लूरी सीताराम राजू ने किस प्रकार के हमले किए थे?

उत्तर: सीताराम राजू ने अंग्रेज़ पुलिस स्टेशनों पर हमले किए, डाका डालकर धन जुटाया और शस्त्र खरीदने के बाद ब्रिटिश सरकार के खिलाफ क्रांतिकारी गतिविधियाँ चलाईं।

6. अल्लूरी सीताराम राजू की शहादत के बाद क्या हुआ?

उत्तर: सीताराम राजू की शहादत के बाद भी ब्रिटिश सरकार को विद्रोही गतिविधियों से राहत नहीं मिली। उनका बलिदान आदिवासी समुदाय और स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरणास्त्रोत बना।

7. अल्लूरी सीताराम राजू के जीवन में कौन से प्रमुख स्थल थे?

उत्तर: सीताराम राजू ने अपनी यात्रा के दौरान मुम्बई, बड़ोदरा, बनारस, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, असम, बंगाल, और नेपाल जैसे स्थलों का दौरा किया, जहाँ उन्होंने क्रांतिकारी गतिविधियाँ चलाने के लिए प्रेरणा ली।

8. अल्लूरी सीताराम राजू की शहादत कैसे हुई?

उत्तर: 7 मई 1924 को सीताराम राजू को पकड़ने के बाद उन्हें पेड़ से बांधकर अंग्रेज़ों ने गोली मार दी, जिसके परिणामस्वरूप उनका बलिदान हो गया।

9. सीताराम राजू को पकड़ने के लिए अंग्रेज़ सरकार ने क्या कदम उठाए?

उत्तर: अंग्रेज़ सरकार ने सीताराम राजू को पकड़वाने के लिए 10 हज़ार रुपये का इनाम घोषित किया और 'असम रायफल्स' नामक सेना का गठन किया, जो उन्हें पकड़ने के लिए भेजी गई।

10. अल्लूरी सीताराम राजू का प्रभाव किस पर पड़ा?

उत्तर: सीताराम राजू ने आदिवासियों और सामान्य जनता में स्वतंत्रता संग्राम की भावना को जागृत किया। उनके नेतृत्व में रम्पा क्षेत्र स्वतंत्रता संग्राम का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

टिप्पणियाँ