महात्मा गांधी की जीवनी | Biography of Mahatma Gandhi
महात्मा गांधी के नाम से मशहूर मोहनदास करमचंद गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक नेता थे। सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धान्तों पर चलकर उन्होंने भारत को आजादी दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इन सिद्धांतों ने पूरी दुनिया में लोगों को नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता आंदोलन के लिए प्रेरित किया। उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है। सुभाष चंद्र बोस ने वर्ष 1944 में रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें ‘राष्ट्रपिता’ कहकर संबोधित किया था। महात्मा गांधी समूची मानव जाति के लिए मिसाल हैं। उन्होंने हर परिस्थिति में अहिंसा और सत्य का पालन किया और लोगों से भी इनका पालन करने के लिए कहा।
प्रारंभिक जीवन
मोहनदास करमचंद गांधी का जन्म भारत में गुजरात के एक तटीय शहर पोरबंदर में 2 अक्टूबर सन् 1869 को हुआ था। उनके पिता करमचंद गांधी ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान थे। मोहनदास की माता पुतलीबाई परनामी वैश्य समुदाय से ताल्लुक रखती थीं और अत्यधिक धार्मिक प्रवृत्ति की थीं, जिसका प्रभाव युवा मोहनदास पर पड़ा और इन्हीं मूल्यों ने आगे चलकर उनके जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
सन 1883 में साढ़े 13 साल की उम्र में ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा से करा दिया गया। जब मोहनदास 15 वर्ष के थे तब इनकी पहली संतान ने जन्म लिया लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। उनके पिता करमचंद गांधी भी इसी साल (1885) में चल बसे। बाद में मोहनदास और कस्तूरबा के चार संतान हुईं – हरीलाल गांधी (1888), मणिलाल गांधी (1892), रामदास गांधी (1897) और देवदास गांधी (1900)।
विदेश में शिक्षा और वकालत
मोहनदास अपने परिवार में सबसे ज्यादा पढ़े-लिखे थे, इसलिए उनके परिवार वाले मानते थे कि वह अपने पिता और चाचा का उत्तराधिकारी (दीवान) बन सकते थे। वर्ष 1888 में मोहनदास यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में कानून की पढ़ाई करने और बैरिस्टर बनने के लिए इंग्लैंड चले गए। वहाँ उन्होंने ‘वेजीटेरियन सोसाइटी’ की सदस्यता ग्रहण की और गीता पढ़ने की प्रेरणा मिली।
जून 1891 में गांधी भारत लौट आए और अपनी मां के निधन का समाचार मिला। उन्होंने बॉम्बे में वकालत की शुरुआत की परंतु कोई खास सफलता नहीं मिली। इसके बाद राजकोट में मुकदमे की अर्जियाँ लिखने का कार्य किया, लेकिन यह काम भी ज्यादा दिनों तक नहीं चला। आखिरकार, 1893 में एक भारतीय फर्म से नेटल (दक्षिण अफ्रीका) में एक वर्ष के करार पर वकालत का कार्य स्वीकार कर लिया।
दक्षिण अफ्रीका में संघर्ष (1893-1914)
गांधी 24 साल की उम्र में दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वहाँ उन्होंने अपने जीवन के 21 साल बिताए, जहाँ उनके राजनैतिक विचार और नेतृत्व कौशल का विकास हुआ। दक्षिण अफ्रीका में उन्हें गंभीर नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा। एक बार ट्रेन में प्रथम श्रेणी का वैध टिकट होने के बावजूद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इनकार करने के कारण उन्हें ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया।
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए उन्होंने भारतीयों को उनके राजनैतिक और सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने 1906 में ब्रिटिश सरकार द्वारा लागू किए गए एशियाटिक लॉ के खिलाफ सत्याग्रह आंदोलन चलाया।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का संघर्ष (1916-1945)
1914 में गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस लौट आए। वह गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर भारत आए थे। प्रारंभ में उन्होंने देश के विभिन्न भागों का दौरा किया और किसानों, मजदूरों और श्रमिकों की समस्याओं को समझा।
चंपारण और खेड़ा सत्याग्रह
बिहार के चंपारण और गुजरात के खेड़ा में हुए आंदोलनों ने गांधी को भारत में पहली राजनैतिक सफलता दिलाई। चंपारण में ब्रिटिश जमींदार किसानों को नील की खेती करने के लिए मजबूर करते थे और सस्ते मूल्य पर फसल खरीदते थे, जिससे किसानों की स्थिति बदतर होती जा रही थी। गांधी ने सत्याग्रह आंदोलन चलाकर किसानों को उनका अधिकार दिलाया।
असहयोग आंदोलन (1920)
महात्मा गांधी ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन की शुरुआत की। उन्होंने अंग्रेजी सामानों का बहिष्कार करने, सरकारी स्कूलों और कॉलेजों का परित्याग करने, वकीलों और सरकारी कर्मचारियों से सरकारी नौकरी छोड़ने का आह्वान किया।
दांडी मार्च और सविनय अवज्ञा आंदोलन (1930)
1930 में महात्मा गांधी ने नमक कानून के विरोध में दांडी मार्च किया, जिसे ‘नमक सत्याग्रह’ भी कहा जाता है। यह आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सबसे प्रभावशाली आंदोलनों में से एक साबित हुआ।
भारत छोड़ो आंदोलन (1942)
1942 में गांधी जी ने ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की शुरुआत की और अंग्रेजों से भारत छोड़ने की मांग की। इस आंदोलन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और वे लगभग दो साल तक जेल में रहे।
गांधी जी की हत्या
30 जनवरी 1948 को नई दिल्ली के बिड़ला भवन में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी। उनकी अंतिम यात्रा में हजारों लोगों ने भाग लिया और उन्हें राजघाट पर समाधि दी गई।
महात्मा गांधी की विरासत
गांधी जी के विचार आज भी पूरी दुनिया को प्रेरित करते हैं। उनके द्वारा स्थापित सत्याग्रह और अहिंसा के सिद्धांत कई देशों के स्वतंत्रता संग्राम का आधार बने। गांधी जी के आदर्शों को सम्मान देते हुए उनका जन्मदिन 2 अक्टूबर को ‘गांधी जयंती’ के रूप में मनाया जाता है और इसे अंतरराष्ट्रीय अहिंसा दिवस (International Day of Non-Violence) के रूप में भी घोषित किया गया है।
महात्मा गांधी की जीवनी उनके महान विचारों और कार्यों का दर्पण है, जो हमें सत्य, अहिंसा और नैतिकता के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है।
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