पुराणों में भगवान गणेश का वर्णन (The description of Lord Ganesha in the Puranas)

पुराणों में भगवान गणेश का वर्णन

पद्म पुराण के अनुसार

एक बार माता पार्वती जी ने अपने शरीर के मैल से एक पुरुषाकृति बनायी, जिसका मुख हाथी के समान था। फिर उस आकृति को उन्होंने गंगा में प्रवाहित कर दिया। गंगा में पड़ते ही वह आकृति विशालकाय हो गयी। पार्वती जी ने उसे पुत्र कहकर पुकारा। देवताओं ने उन्हें "गांगेय" नाम से संबोधित किया और ब्रह्मा जी ने उन्हें गणों का अधिपत्य प्रदान करके "श्री गणेश" नाम दिया।

लिंग पुराण के अनुसार

एक बार देवताओं ने भगवान शिव की उपासना करके उनसे सुरद्रोही दानवों के दुष्टकर्म में विघ्न उपस्थित करने के लिए वरदान मांगा। भगवान शिव ने तथास्तु कहकर देवताओं को संतुष्ट किया। समय आने पर गणेश जी प्रकट हुए। उनका मुख हाथी के समान था और उनके एक हाथ में त्रिशूल तथा दूसरे में पाश था। देवताओं ने उनकी स्तुति की और भगवान शिव ने उन्हें दैत्यों के कार्यों में विघ्न उपस्थित करने का आदेश दिया।

विभिन्न पुराणों में गणेश जन्म कथा

ब्रह्मा वैवर्त पुराण, स्कंद पुराण, तथा शिव पुराण में भगवान गणेश जी के अवतार की भिन्न-भिन्न कथाएँ मिलती हैं। इनके अनुसार, प्रजापति विश्वकर्मा की सिद्धि-बुद्धि नामक दो कन्याएँ गणेश जी की पत्नियाँ बनीं। सिद्धि से शुभ और बुद्धि से लाभ नामक दो पुत्र हुए।

गणेश जी के वाहन

पुराणों में गणेश जी के विभिन्न युगों में अलग-अलग वाहन बताए गए हैं:

  • सतयुग: सिंह पर आरूढ़, दस भुजाओं वाले, विनायक नाम से विख्यात।

  • त्रेतायुग: मयूर पर आरूढ़, छह भुजाओं वाले, मयूरेश्वर नाम से प्रसिद्ध।

  • द्वापरयुग: मूषक पर आरूढ़, चार भुजाओं वाले, गजानन नाम से विख्यात।

  • कलियुग: घोड़े पर आरूढ़, दो भुजाओं वाले, धूम्रकेतु नाम से प्रसिद्ध।

प्रथम पूज्य गणेश

ब्रह्मा जी जब यह निर्णय करने लगे कि देवताओं में कौन प्रथम पूज्य होगा, तब पृथ्वी-प्रदक्षिणा की परीक्षा रखी गई। श्री गणेश जी ने अपने मूषक वाहन की धीमी गति के कारण, माता पार्वती और भगवान शिव की प्रदक्षिणा कर ली। इस प्रकार वे विजेता घोषित हुए और प्रथम पूज्य बने। तभी से हर शुभ कार्य से पहले उनकी पूजा की जाती है।

गणेश जी की पूजा का महत्त्व

गणेश जी विद्या, बुद्धि और समस्त सिद्धियों के दाता हैं। उनका मंत्र "ॐ गं गणपतये नमः" अत्यंत प्रभावशाली माना जाता है।

गणेश जी की शास्त्रीय पूजा विधि

गणेश पूजा की 16 विधियाँ हैं:

  1. आह्वान

  2. आसन

  3. पाद्य

  4. अर्घ्य

  5. आचमनीय

  6. स्नान

  7. वस्त्र

  8. यज्ञोपवीत

  9. गंधपुष्प

  10. पुष्पमाला

  11. धूप-दीप

  12. नैवेद्य

  13. ताम्बूल

  14. आरती-प्रदक्षिणा

  15. पुष्पांजलि

  16. गणेश गायत्री मंत्र से आराधना

गणेश जी की भक्ति और सिद्धियाँ

गणेश जी की पूजा विशेष रूप से लाल फूलों से करने का विधान है। गणेश जी का पूजन घास, पत्तों और अन्य प्राकृतिक वस्तुओं से भी किया जाता है। वे मंगलमूर्ति, सिद्धिसदन और भक्तों के लिए शीघ्र प्रसन्न होने वाले देवता हैं।

गणेश जी की कृपा

भगवान गणेश बुद्धि के अधिष्ठाता हैं और महाभारत के लेखक के रूप में भी विख्यात हैं। वे कलियुग में सबसे अधिक पूजे जाने वाले देवता हैं, क्योंकि वे अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होते हैं। गणेश जी की पूजा करने से सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं और जीवन में सफलता प्राप्त होती है।

गणेश पुराण से विशेष कथा

गणेश पुराण में बताया गया है कि जब पार्वती जी ने अपने उबटन से गणेश जी को बनाया, तब भगवान शिव से हुए विवाद के कारण उन्होंने गणेश जी का सिर काट दिया। बाद में, जब पार्वती जी विलाप करने लगीं, तो भगवान शिव ने उन्हें पुनर्जीवित करने के लिए हाथी का सिर लगा दिया। इस कारण गणेश जी को "गजानन" नाम प्राप्त हुआ।

गणेश चतुर्थी का महत्त्व

गणेश चतुर्थी पर गणेश जी का विशेष पूजन किया जाता है। इस दिन गणेश जी को 21 मोदकों का भोग अर्पित किया जाता है और वे भक्तों की सभी मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

गणेश जी के 12 प्रमुख नाम

  1. सुमुख - सुंदर मुख वाले

  2. एकदंत - एक दाँत वाले

  3. कपिल - तपस्वी रूप धारण करने वाले

  4. गजकर्ण - हाथी के समान कान वाले

  5. लंबोदर - बड़े पेट वाले

  6. विकट - विकराल रूप धारण करने वाले

  7. विघ्नराज - विघ्नों के राजा

  8. धूम्रवर्ण - धूसर रंग वाले

  9. भालचंद्र - मस्तक पर चंद्र धारण करने वाले

  10. गजानन - हाथीमुख वाले

  11. विनायक - सभी सिद्धियों के स्वामी

  12. गणपति - गणों के अधिपति

गणेश जी की कृपा से जीवन में सफलता, समृद्धि और शुभता आती है। गणपति बप्पा मोरया!

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