स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें फांसी मिली: राम प्रसाद 'बिस्मिल' (Freedom fighter who was hanged: Ram Prasad 'Bismil'_

स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें फांसी मिली: राम प्रसाद 'बिस्मिल'

राम प्रसाद 'बिस्मिल' भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने मात्र 30 वर्ष की आयु में देश की आज़ादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया। उनका जन्म 11 जून 1897 को हुआ था। वे मैनपुरी षड्यंत्र और काकोरी कांड जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं में शामिल थे तथा हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सक्रिय सदस्य थे।

क्रांतिकारी जीवन और योगदान

रामप्रसाद बिस्मिल ने अपने 11 वर्ष के क्रांतिकारी जीवन में कई पुस्तकें लिखीं और उन्हें स्वयं प्रकाशित किया। इन पुस्तकों की बिक्री से मिले धन से उन्होंने हथियार खरीदे और ब्रिटिश हुकूमत का विरोध किया। उनकी 11 पुस्तकों में से अधिकतर ब्रिटिश सरकार द्वारा ज़ब्त कर ली गईं।

क्रांति का बीज

जब रामप्रसाद शाहजहाँपुर के गवर्नमेंट स्कूल में आठवीं कक्षा में थे, तब स्वामी सोमदेव के संपर्क में आए। स्वामी जी की प्रेरणा और "सत्यार्थ प्रकाश" के अध्ययन ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। स्वामी सोमदेव के साथ राजनीतिक चर्चाओं ने उनके हृदय में राष्ट्रभक्ति की भावना जाग्रत की।

'अमेरिका की स्वतंत्रता का इतिहास'

1916 में, उन्होंने "अमेरिका की स्वतंत्रता का इतिहास" नामक पुस्तक प्रकाशित की, जिसमें उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के विचार रखे। इस पुस्तक को प्रकाशित करने के लिए उन्होंने अपनी माता से दो बार में 200-200 रुपये उधार लिए थे। यह पुस्तक ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर ली और बाद में इसे काकोरी कांड के मुकदमे में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया गया।

'क्रांति गीतांजलि'

2006 में, रामप्रसाद बिस्मिल की कविताओं का संकलन "क्रांति गीतांजलि" प्रकाशित हुआ, जो उनके विचारों और राष्ट्रभक्ति को दर्शाता है।

फांसी की सजा और अंतिम समय

उनकी फांसी की सजा माफ करवाने के लिए बैरिस्टर मोहनलाल सक्सेना ने प्रिवी काउंसिल में याचिका दायर की थी, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हें "सबसे खतरनाक क्रांतिकारी" मानते हुए याचिका खारिज कर दी। फांसी से दो दिन पहले, ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 15,000 रुपये देने और इंग्लैंड में बैरिस्टर की पढ़ाई के लिए भेजने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने इसे ठुकरा दिया।

भगत सिंह की नजरों में बिस्मिल

भगत सिंह ने जनवरी 1928 में "किरती" पत्रिका में बिस्मिल पर लेख लिखा, जिसमें कहा: "श्री रामप्रसाद 'बिस्मिल' गज़ब के शायर थे, देखने में बहुत सुंदर और योग्य थे। अगर किसी और देश में होते तो सेनाध्यक्ष बनते। उन्हें पूरे षड्यंत्र का नेता माना गया।"

अमर बलिदान

राम प्रसाद बिस्मिल ने अपनी आत्मकथा में लिखा था: "ऐ मातृभूमि तेरी जय हो, सदा विजय हो।"
उनका बलिदान सदैव स्वतंत्रता संग्राम के अमर गाथाओं में स्वर्ण अक्षरों में लिखा रहेगा। जय हिंद!

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