एकाग्रता का महत्त्व: सफलता की कुंजी (The importance of concentration: the key to success.)

एकाग्रता का महत्त्व

मनुष्य और पशु में मुख्य अंतर उनकी मनोवैज्ञानिक एकाग्रता की शक्ति में है। किसी भी प्रकार के कार्य में सफलता का मूल आधार एकाग्रता ही है। कला, संगीत, विज्ञान और अन्य क्षेत्रों में उच्च उपलब्धियाँ भी एकाग्रता के ही परिणामस्वरूप प्राप्त होती हैं। यही कारण है कि एक व्यक्ति दूसरे से भिन्न होता है।

मेरे विचार से शिक्षा का उद्देश्य मात्र तथ्यों का संग्रहण नहीं, बल्कि मन की एकाग्रता को विकसित करना होना चाहिए। बच्चों में यह क्षमता बचपन से ही विकसित की जानी चाहिए ताकि वे जीवन में उच्च लक्ष्य प्राप्त कर सकें।

एकाग्रता का रहस्य

मन की एकाग्रता में ही सफलता का सारा रहस्य निहित है। इसे केवल योगियों के लिए आवश्यक समझना एक भूल होगी। एकाग्रता हर व्यक्ति के लिए आवश्यक है, चाहे वह किसी भी कार्य में संलग्न क्यों न हो। रोजमर्रा के जीवन में भी हम देखते हैं कि कारीगर, लोहार, बढ़ई, सुनार और बुनकर अपने कार्य में अद्भुत एकाग्रता दिखाते हैं। एक छोटी-सी चूक भी उनके लिए गंभीर परिणाम ला सकती है, इसलिए वे पूरी तरह से ध्यान केंद्रित रखते हैं।

आई.टी.आई. में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों में यह देखा जाता है कि यदि कोई लोहार का पुत्र होता है, तो वह अन्य विद्यार्थियों की तुलना में शीघ्र दक्षता प्राप्त कर लेता है। यह इस बात का प्रमाण है कि एकाग्रता निरंतर अभ्यास से विकसित होती है। अर्जुन के प्रश्न के उत्तर में भगवान श्रीकृष्ण ने भी यही कहा था कि नियमित अभ्यास और वैराग्य से ही मन को वश में किया जा सकता है।

मन को नियंत्रित करने की प्रक्रिया

जो लोग अपने मन को नियंत्रित करना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहले इसके स्वभाव को समझना होगा। मन एक मतवाले हाथी के समान बलवान और एक बंदर के समान चंचल होता है। अर्जुन ने इसे वायु के समान अस्थिर बताया था। भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया कि यद्यपि मन को नियंत्रित करना कठिन है, किंतु यह अभ्यास और वैराग्य द्वारा संभव है।

मन को नियंत्रित करने के लिए हमें उच्छृंखल वातावरण से बचना चाहिए। इसका अर्थ यह नहीं कि हमें संसार का त्याग करना होगा, बल्कि हमें अपनी ज्ञानेन्द्रियों पर संयम रखना होगा।

  • आँखों को अनुचित दृश्य देखने से रोकें।

  • कानों को अनुचित बातें सुनने से बचाएँ।

  • जिह्वा को अनुचित स्वादों से दूर रखें।

  • त्वचा और अन्य ज्ञानेन्द्रियों को अनुचित आकर्षण से बचाएँ।

यह नियंत्रण ही ‘दम’ कहलाता है, और मन को बुद्धि की सहायता से संयमित रखना ‘राम’ कहलाता है।

मन को नियंत्रित करने की आवश्यकता

मन को नियंत्रित करने की आवश्यकता इसलिए है क्योंकि यदि यह हमारे नियंत्रण में है, तो यह महान कार्य कर सकता है, परंतु यदि यह नियंत्रण से बाहर है, तो साधारण कार्य भी कठिन लगते हैं। मन विराट शक्तियों का भंडार है, लेकिन यदि इसे अनुशासित न किया जाए, तो यह दुर्बल मानसिकता का शिकार बना रहता है।

जिस प्रकार सूर्य की किरणों को एक लेंस के माध्यम से केंद्रित करने पर अग्नि उत्पन्न होती है, ठीक उसी प्रकार जब मन को एक लक्ष्य पर केंद्रित किया जाता है, तो असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं। इसलिए, एकाग्रता का अभ्यास ही सफलता की कुंजी है।

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