प्रेरणाप्रद कहानी शीर्षक: कर्म और भाग्य
कहानी:
एक छोटे से शहर में एक चाट वाला था, जिसका नाम मोहन था। उसका ठेला हमेशा उसी गली में रहता, और उसका चेहरा हमेशा मुस्कान से भरा रहता। जो लोग भी चाट खाने आते, उन्हें ऐसा महसूस होता जैसे वह उनका ही इंतजार कर रहा हो। मोहन का स्वभाव बहुत ही मिलनसार था और वह किसी भी विषय पर घंटों बात कर सकता था। कई बार जब लोग जल्दी में होते, तो वह उन्हें कहता, "भैया, थोड़ी देर बैठो, बात कर लें, चाट तो खा ही लोगे।" लेकिन उसकी बातें कभी खत्म नहीं होती थीं।

एक दिन मैं चाट खाने गया और इस बार मोहन के साथ एक खास बात करने का मन था। मैंने सोचा, "क्यों न आज उसकी सोच को समझा जाए, शायद वह कुछ नया सिखा सके।" तो मैंने एक सवाल पूछा,
"मोहन भाई, तुम क्या समझते हो, आदमी मेहनत से आगे बढ़ता है या भाग्य से?"
मोहन ने थोड़ी देर सोचा और फिर एक मुस्कान के साथ जवाब दिया,
"अरे भाई, तुमने तो बड़ा गहरा सवाल पूछ लिया!" फिर उसने मुझसे एक सवाल किया, "तुम्हारे पास किसी बैंक में लॉकर है?"
मैंने कहा, "हां, है तो।"
मोहन हंसते हुए बोला,
"ठीक है, तो सोचो कि तुम्हारे पास जो चाभी है, वह है परिश्रम और मेहनत। और बैंक के मैनेजर के पास जो चाभी है, वह है भाग्य। जब तक दोनों चाभियाँ साथ नहीं लगतीं, तब तक लॉकर नहीं खुल सकता।"
उसकी बात सुनकर मुझे समझ में आया। वह कह रहा था कि परिश्रम हमारी चाभी है और भाग्य दूसरी चाभी। हमें अपनी चाभी, यानी मेहनत, लगाते रहना चाहिए, क्योंकि हम नहीं जानते कि ऊपर वाला कब अपनी चाभी लगाकर हमें सफलता की कुंजी दे दे।
मोहन ने आगे कहा,
"तुम एक कर्मयोगी हो, और भगवान एक मैनेजर। तुम अपनी चाभी लगाए बिना अगर बैठे रहोगे, तो ताला कभी नहीं खुलेगा। कभी-कभी भगवान अपनी चाभी लगाकर ताला खोलता है, लेकिन अगर तुम्हारी चाभी न लगी हो, तो तुम दरवाजा खोलने से रह जाओगे।"
इस कहानी से जो शिक्षा मिली वह यह थी कि कर्म और भाग्य दोनों का साथ जरूरी है। भाग्य तो अपनी जगह है, लेकिन कर्म बिना कुछ नहीं होता। हमें मेहनत करनी चाहिए, क्योंकि हमारी मेहनत और भाग्य का मिलन ही हमें सफलता की ओर ले जाता है। अगर हम सिर्फ भाग्य के भरोसे बैठे रहेंगे, तो कुछ हासिल नहीं होगा।
इसलिए, कर्म और भाग्य दोनों का संतुलन जरूरी है, और हमें दोनों में से किसी को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
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