उत्तराखंड की स्वतंत्रता संग्रामकालीन पत्रकारिता - (Journalism during the freedom struggle of Uttarakhand.)

उत्तराखंड की स्वतंत्रता संग्रामकालीन पत्रकारिता

उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता ने एक अहम भूमिका निभाई। इस दौरान कई समाचार पत्रों और पत्रिकाओं ने जनचेतना जगाने का कार्य किया। ये पत्र न केवल अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आवाज़ बुलंद कर रहे थे, बल्कि समाज में व्याप्त कुरीतियों और अन्याय के खिलाफ भी संघर्षरत थे।

गढ़देश (1929-34 ई.)

गढ़देश उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा एक महत्वपूर्ण समाचार पत्र था, जिसका संपादन कृपाराम मिश्र 'मनहर' ने किया। उन्होंने इसे अप्रैल 1929 में प्रकाशित किया। इसका मुद्रण मुरादाबाद, बिजनौर और मेरठ से किया जाता था, लेकिन इसका प्रकाशन मुख्य रूप से कोटद्वार से होता था। 1930 में सत्याग्रह आंदोलन के कारण संपादक और प्रकाशक को जेल जाना पड़ा, जिससे यह समाचार पत्र बंद हो गया। 1934 में पुनः इसे प्रकाशित किया गया, लेकिन सरकार द्वारा जमानत मांगे जाने के कारण इसे दोबारा बंद करना पड़ा।

स्वर्गभूमि (1934 ई.)

स्वर्गभूमि समाचार पत्र की शुरुआत अल्मोड़ा निवासी देवकीनंदन ध्यानी ने की। 1930 में उन्होंने 'विजय' नामक साप्ताहिक पत्र प्रकाशित किया, लेकिन सत्याग्रह आंदोलन के कारण उन्हें जेल जाना पड़ा और यह पत्र बंद हो गया। 1934 में उन्होंने हल्द्वानी से 'स्वर्गभूमि' नामक पाक्षिक पत्रिका प्रकाशित की, लेकिन कुछ अंकों के बाद इसे भी बंद करना पड़ा।

समता (1934 ई.)

समता समाचार पत्र को शिल्पकार समाज के उत्थान के लिए मुंशी हरिप्रसाद टम्टा ने 1934 में अल्मोड़ा से प्रकाशित किया। यह पत्र उत्तराखंड में दलित पत्रकारिता का एक प्रमुख स्तंभ था। 1935 में लक्ष्मी देवी टम्टा, जो उत्तराखंड की पहली दलित महिला पत्रकार थीं, ने इसका संपादन किया। इस पत्र ने शिल्पकार समाज के अधिकारों और समस्याओं को प्रमुखता से उठाया।

हादी-ए-आजम (1936 ई.)

यह उत्तराखंड की पहली उर्दू धार्मिक पत्रिका थी, जिसे हल्द्वानी निवासी मोहम्मद इकबाल सिद्दीकी ने 1936 में प्रकाशित किया। हालांकि, यह पत्रिका अल्पकालिक रही और केवल 2-3 अंकों के बाद बंद हो गई।

हितैषी (1936 ई.)

हितैषी नामक समाचार पत्र 1936 में पौड़ी गढ़वाल निवासी पीतांबर दत्त पसबोला ने प्रकाशित किया। यह पत्र अंग्रेजी हुकूमत के समर्थक विचारों का प्रचार करता था, जिसके कारण इसे अल्पजीवी रहना पड़ा। हालांकि, इसके प्रकाशक को ब्रिटिश सरकार से 'रायबहादुर' की उपाधि मिली।

उत्तर भारत (1936-37 ई.)

महेशानंद थपलियाल ने पौड़ी से 'उत्तर भारत' नामक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया। प्रारंभ में इसे पुस्तक के रूप में निकाला गया, लेकिन बाद में इसे अखबार का स्वरूप दिया गया। यह पत्र 1937 में बंद हो गया।

उत्थान (1937 ई.)

'उत्थान' समाचार पत्र ज्योति प्रसाद माहेश्वरी द्वारा प्रकाशित किया गया था। यह पत्र निष्पक्ष, साहसी और जनसरोकार से जुड़ी पत्रकारिता के लिए जाना जाता था। इसने क्षेत्रीय आंदोलनों को समर्थन दिया और जनजागृति का कार्य किया।

जागृत जनता (1938 ई.)

'जागृत जनता' समाचार पत्र की स्थापना स्वतंत्रता सेनानी पीतांबर पांडे ने की थी। यह पत्र ब्रिटिश शासन के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से प्रकाशित किया गया था। भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान पांडे को जेल जाना पड़ा, जिससे यह पत्र कुछ समय तक बंद रहा। बाद में हल्द्वानी से इसका पुनः प्रकाशन हुआ।

निष्कर्ष

उत्तराखंड की स्वतंत्रता संग्रामकालीन पत्रकारिता ने राष्ट्रीय आंदोलन को नई ऊर्जा दी। इन समाचार पत्रों ने न केवल ब्रिटिश शासन के खिलाफ आवाज़ उठाई, बल्कि समाज में सुधार लाने का भी कार्य किया। यह पत्रकारिता आंदोलन का एक सशक्त माध्यम थी, जिसने जनचेतना फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।


यह ब्लॉग उत्तराखंड के स्वतंत्रता संग्राम में पत्रकारिता की भूमिका को रेखांकित करता है। अगर इसमें कोई और जानकारी जोड़नी हो या संशोधन करना हो, तो बताइए! 🚩

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