Lyrics of Uttarakhandi Songs - उत्तराखंडी गानों के बोल

Lyrics of Uttarakhandi Songs - उत्तराखंडी गानों के बोल


एक कर्णप्रिय गीत :- उत्तराखंड स्वर सम्राट श्री नरेन्द्र सिंह जी (Narendra Singh Negi)

मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक
मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि -२
हैर बण मा बुराँसि का फूल, जब बण आग लगाण होला..
पीता पखों थैं फ्योलिं का फूल, पिन्ग्ला रंग मा रंग्याण होला ..
ळाइयां पैयां ग्वीराल फूलु ना-२, होलि धर्ति सजि देखि ऐइ …
बसन्त रितु म जैयि…
मेर डांडि....

रन्गील फागुन होल्येरोन कि टोलि, डांडि कांठियों रंग्यणि होलि...
कैक रंग म रंग्युं होलु क्वियि, क्वि मनि-मन म रंग्श्याणि होलि..
किर्मिचि केसरि रंग कि बाढ-२, प्रेम क रंगों मा भीजि ऐइ...
बसन्त रितु म जैयि….
मेर डांडि....

बिन्सिरि देय्लिओं मा खिल्दा फूल, राति गों-गों गितेरुं का गीत...
चैता का बोल, ओजियों का ढोल, मेरा रोंतेला मुलुके कि रीत...
मस्त बिग्रैला बैखुं का ठुम्का-२, बांदूं का लस्सका देखि ऐइ....
बसन्त रितु म जैयि...
मेर डंडि....

सैणा दमला र चैतै बयार, घस्यरि गीतों मा गुंज्दि डांडि...
खेल्युं मा रंग-मत ग्वेर छोरा, अट्क्दा गोर घम्डियंदि घंडि..
वखि फुन्डे होलु खत्युं मेरु भि बच्पन, -२ ऊक्रि सक्लि त ऊक्रि कि लैयि...
बसन्त रितु म जैयि...

मेर डण्डि कण्ठियों का मुलुक जैल्यु, बसन्त रितु मा जैयि -२

बेटी ब्वारी फ़िल्म का ……

पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे
अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे..
मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ..
तन मा क्यफ़णि सी क्यफ़णि झणि क्यँन हूंद
मन मा कुतगली सी कुतगाली से झणि कु लगांद
कुछ ह्ववे गे मी थे, कुछ ह्ववे गे मी थे
ह्वाई क्याच…ह्वाई क्याच समझ मा नि आई….
मन आपदा बस मा नि राई.. ….हो. हो हो..
मन आपदा बस मा नि राई
तेरी जीकुड़ी धक धक धक धक़दीयाट के कु कनि न……..
तेरी आंखि रक रक रक रक्रियट केन कनि न
बैध बुला ज़रा, दारू दवे करा..
सदनी कु….सदनी कु रोग लगी ग्याई..
मन आपडा बस मा नि राई….हो. हो हो..
मन आपदा बस मा नि राई.
मन मा बनबनी का बनबनी का फूल खिलिया न…
सुपीन्या बन बनी का बन बनी का रंगों मा रंगीया न..
सुपीन्यो का रंग मा मायादार संग मा..
धरती-आ.. धरती आकाश रंगी ग्याई …
मन आप डा बस मा नि राई.. हो हो….
पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे
अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे
मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ..
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उत्तराखण्ड राज्य निर्माण प्राप्ति के संघर्ष के दौरान लोगों के दिलों में एक आदर्श राज्य का सपना था. राज्य की प्राप्ति के लिये लगभग 40 लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किये. अन्ततः राज्य तो बन गया, लेकिन 7 साल बीतने पर भी आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य एक सपना ही बना हुआ है.शराब के ठेकेदारों, भू माफियाओं और एन.जी ओ. के नाम पर चल रहे करोड़ों के व्यवसाय के बीच आम उत्तराखण्डी मानस ठगा सा महसूस कर रहा है.सपना देखा गया था ऐसे राज्य का जिसमें चारों ओर खुशहाली हो. समाज के हर वर्ग की अपनी अपेक्षाएं थीं. नरेन्द्र सिंह नेगी जी की इस कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्गों की आक्षांकाएं स्पष्ट होती हैं. भगवान से यही प्रार्थना है कि राज्य के नीतिनिर्धारकों के कानों तक नेगी जी का यह गीत पहुँचे, और वो हमारे सपनों का राज्य बनाने के लिये ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से काम करें.


बेटी ब्वारी फ़िल्म का ……

पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे
अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे..
मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ..
तन मा क्यफ़णि सी क्यफ़णि झणि क्यँन हूंद
मन मा कुतगली सी कुतगाली से झणि कु लगांद
कुछ ह्ववे गे मी थे, कुछ ह्ववे गे मी थे
ह्वाई क्याच…ह्वाई क्याच समझ मा नि आई….
मन आपदा बस मा नि राई.. ….हो. हो हो..
मन आपदा बस मा नि राई
तेरी जीकुड़ी धक धक धक धक़दीयाट के कु कनि न……..
तेरी आंखि रक रक रक रक्रियट केन कनि न
बैध बुला ज़रा, दारू दवे करा..
सदनी कु….सदनी कु रोग लगी ग्याई..
मन आपडा बस मा नि राई….हो. हो हो..
मन आपदा बस मा नि राई.
मन मा बनबनी का बनबनी का फूल खिलिया न…
सुपीन्या बन बनी का बन बनी का रंगों मा रंगीया न..
सुपीन्यो का रंग मा मायादार संग मा..
धरती-आ.. धरती आकाश रंगी ग्याई …
मन आप डा बस मा नि राई.. हो हो….
पैली यानू त कबी नि ह्ववे कबी नि ह्ववे
अब ह्ववे त क्यान ह्ववे क्यान ह्ववे
मन अपडा बस मा नि राई, क्वि ऊपरी मन बसी ग्याई.. हो….ओ..
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उत्तराखण्ड राज्य निर्माण प्राप्ति के संघर्ष के दौरान लोगों के दिलों में एक आदर्श राज्य का सपना था. राज्य की प्राप्ति के लिये लगभग 40 लोगों ने अपने प्राण न्यौछावर किये. अन्ततः राज्य तो बन गया, लेकिन 7 साल बीतने पर भी आन्दोलनकारियों के सपनों का राज्य एक सपना ही बना हुआ है.शराब के ठेकेदारों, भू माफियाओं और एन.जी ओ. के नाम पर चल रहे करोड़ों के व्यवसाय के बीच आम उत्तराखण्डी मानस ठगा सा महसूस कर रहा है.सपना देखा गया था ऐसे राज्य का जिसमें चारों ओर खुशहाली हो. समाज के हर वर्ग की अपनी अपेक्षाएं थीं. नरेन्द्र सिंह नेगी जी की इस कविता के माध्यम से समाज के सभी वर्गों की आक्षांकाएं स्पष्ट होती हैं. भगवान से यही प्रार्थना है कि राज्य के नीतिनिर्धारकों के कानों तक नेगी जी का यह गीत पहुँचे, और वो हमारे सपनों का राज्य बनाने के लिये ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से काम करें.

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