फूलदेई पर्व: उत्तराखंड का पारंपरिक त्योहार (Phooldei Festival: A Traditional Festival of Uttarakhand)
फूलदेई पर्व: उत्तराखंड का पारंपरिक त्योहार
फूलदेई पर्व उत्तराखंड का एक प्रमुख पारंपरिक त्योहार है, जिसे विशेष रूप से गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्र में मनाया जाता है। यह त्योहार बच्चों द्वारा घरों की देहरी / दहलीज पर फूल डालने की परंपरा से जुड़ा हुआ है। मीन संक्रांति के दिन इसे मनाया जाता है, और इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, जैसे फूलदेई, छम्मा देई, दैणी द्वार, फूल संक्रांति, तथा फूल संग्राद।

फूलदेई पर्व की परंपरा और महत्व
इस त्योहार के दौरान बच्चे घर-घर जाकर देहरी पर फूल डालते हैं और पारंपरिक गीत गाते हैं। फूल डालने वाले बच्चों को फुलारी कहा जाता है। कुछ स्थानों पर फूलों के साथ चावल डालने की परंपरा भी होती है। यह त्योहार उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और प्रकृति के प्रति प्रेम का प्रतीक है।
फूलदेई का समय और तिथि निर्धारण
फूलदेई पर्व मीन संक्रांति के दिन मनाया जाता है, जो हर वर्ष 14 या 15 मार्च को आती है।
अधिकांश हिंदू त्योहार चंद्रमा की स्थिति के अनुसार मनाए जाते हैं, लेकिन संक्रांति पर आधारित त्योहार सूर्य के चारों ओर पृथ्वी के चक्र की स्थिति के अनुसार मनाए जाते हैं।
हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व फाल्गुन अथवा चैत्र माह में आता है।
फूलदेई पर्व से जुड़ा प्रसिद्ध गीत
उत्तराखंड में पांडवाज ग्रुप के द्वारा गाया गया यह लोकप्रिय गीत इस पर्व की सुंदरता को दर्शाता है:
फूलदेई के अन्य नाम
फूलदेई पर्व को अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न नामों से जाना जाता है:
गढ़वाल में: फूल संग्राद
कुमाऊं में: फूलदेई
अन्य नाम: छम्मा देई, दैणी द्वार, फूल संक्रांति, चैत्र संक्रांति
फूलदेई की उत्सव विधि
इस दिन बच्चे ताजे फूलों को इकट्ठा कर घरों की देहरी पर डालते हैं।
फूल डालने के साथ वे पारंपरिक लोकगीत गाते हैं और घरों से आशीर्वाद एवं उपहार प्राप्त करते हैं।
यह पर्व प्रकृति प्रेम, समृद्धि और सौहार्द का प्रतीक है।
निष्कर्ष
फूलदेई केवल एक पर्व नहीं, बल्कि उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत का अभिन्न हिस्सा है। यह पर्व बच्चों को प्रकृति से जोड़ने, समुदाय में प्रेम और भाईचारे को बढ़ाने और परंपराओं को संजोने का अवसर प्रदान करता है।
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