महाशिवरात्रि का रहस्य
महाशिवरात्रि का क्या अर्थ है?
हर महीने अमावस्या से पहले आने वाली रात को शिवरात्रि कहा जाता है। लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं। साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह रात महीने की सबसे अँधेरी रात होती है। महाशिवरात्रि साल की सबसे अंधेरी रात होती है और इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है क्योंकि उत्तरायण या सूर्य की उत्तरी गति के पूर्वार्द्ध में आने वाली इस रात को पृथ्वी एक ख़ास स्थिति में आ जाती है, जब हमारी ऊर्जा में एक प्राकृतिक उछाल आता है।

शिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व
बोधोत्सव: महाशिवरात्रि बोधोत्सव है, जिसमें व्यक्ति को यह बोध होता है कि वह शिव का अंश है। इस रात में ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार स्थित होता है कि मनुष्य की भीतरी ऊर्जा स्वाभाविक रूप से ऊपर की ओर जाती है।
साधकों के लिए विशेष दिन: महाशिवरात्रि आध्यात्मिक साधकों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह उन लोगों के लिए भी खास होती है जो संसार में विभिन्न कार्यों में लगे होते हैं। पारिवारिक लोग इसे शिव-पार्वती विवाह उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि साधक इसे शिव के कैलाश पर्वत से एकात्मकता के रूप में देखते हैं।
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से: विज्ञान अब यह प्रमाणित कर चुका है कि ब्रह्मांड में जो कुछ भी है, वह ऊर्जा का ही रूप है। योगियों को यह सत्य पहले से ही अनुभव के रूप में ज्ञात था।
शिवरात्रि क्यों कहा जाता है?
हम किसी अन्य देवी-देवता के जन्मदिन को 'रात्रि' से नहीं जोड़ते, लेकिन शिवरात्रि को विशेष रूप से 'रात्रि' कहा जाता है।
रात्रि का संबंध अज्ञानता से होता है।
जब संसार में पाप, अत्याचार और दुराचार बढ़ जाता है, तब भक्तजन परमात्मा शिव का आह्वान करते हैं।
इस समय परमपिता परमात्मा शिव इस धरती पर अवतरित होते हैं।
आत्मा के अंदर जो अज्ञान रूपी अंधकार होता है, वह ज्ञान सूर्य के उदय से दूर हो जाता है।
शिव का अवतरण और सृष्टि की रचना
माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में आधी रात के समय भगवान शिव ने निराकार से साकार रूप में अवतार लिया था।
ईशान संहिता के अनुसार, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात भगवान शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंग रूप में प्रकट हुए।
प्रलय के समय भगवान शिव तांडव नृत्य करते हैं और अपने तीसरे नेत्र की ज्वाला से संपूर्ण ब्रह्मांड को भस्म कर देते हैं।
इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह भी हुआ था, इसलिए इस दिन शिव की बारात निकाली जाती है।
समुद्र मंथन और नीलकंठ की कथा
जब समुद्र मंथन हुआ, तब अमृत के साथ हलाहल विष भी निकला था।
हलाहल इतना विषैला था कि उसने सम्पूर्ण ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता रखी।
केवल भगवान शिव ने इसे अपने कंठ में धारण कर लिया, जिससे उनका कंठ नीला पड़ गया और वे नीलकंठ कहलाए।
देवताओं ने शिव जी को जागते रहने के लिए उनके मस्तक पर बेलपत्र चढ़ाए और जल अर्पित किया।
इस घटना की स्मृति में महाशिवरात्रि का उत्सव मनाया जाता है।
शिवरात्रि और शिव तत्व का महत्व
'शिव' शब्द का अर्थ होता है - 'जो नहीं है'।
सृष्टि का अर्थ होता है - 'जो है'।
इसलिए सृष्टि के स्त्रोत को शिव कहा गया।
शिव एक शक्तिशाली मंत्र भी है, जो व्यक्ति को ऊर्जा प्रदान करता है।
महाशिवरात्रि व्रत और पूजा विधि
इस दिन शिव भक्त व्रत रखते हैं और भगवान शिव की विशेष पूजा-अर्चना करते हैं।
रात्रि जागरण कर शिव मंत्रों का जाप किया जाता है।
शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र, धतूरा, भांग और चंदन अर्पित किया जाता है।
शिव जी को प्रसन्न करने के लिए महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया जाता है।
महाशिवरात्रि का अद्भुत रहस्य
शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में आना भी एक विशेष संकेत है।
शुक्ल पक्ष में चंद्रमा पूर्ण रूप में होता है, जबकि कृष्ण पक्ष में उसकी रोशनी धीरे-धीरे कम होती जाती है।
चंद्रमा का क्षीण होना मनुष्य के मन और प्रकृति पर भी प्रभाव डालता है।
जब चंद्रमा क्षीण होता है, तब प्राणियों की आंतरिक तामसी प्रवृत्तियाँ बढ़ने लगती हैं।
शिवरात्रि के दिन शिव की उपासना करने से यह नकारात्मक ऊर्जा समाप्त हो जाती है।
निष्कर्ष
महाशिवरात्रि केवल एक त्यौहार नहीं, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है। इस दिन भगवान शिव की उपासना से व्यक्ति के भीतर छिपी आध्यात्मिक शक्ति जागृत होती है और वह आत्मबोध की ओर अग्रसर होता है। इसीलिए इस दिन व्रत, जागरण और शिव उपासना का विशेष महत्व है।
🚩 हर-हर महादेव! 🚩
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