श्यामजी कृष्ण वर्मा: स्वतंत्रता संग्राम के महानायक (Shyamji Krishna Varma: The great hero of the freedom struggle.)

श्यामजी कृष्ण वर्मा: स्वतंत्रता संग्राम के महानायक

जन्म और प्रारंभिक जीवन

श्यामजी कृष्ण वर्मा का जन्म 4 अक्टूबर 1857 को गुजरात के मांडवी गांव में हुआ था। वे एक महान स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक और विद्वान थे। उन्होंने संस्कृत और वेदशास्त्रों में गहरी रुचि ली और स्वामी दयानंद सरस्वती के सान्निध्य में रहकर अपनी शिक्षा को समृद्ध किया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

श्यामजी कृष्ण वर्मा ने स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ब्रिटिश सरकार के अत्याचारों से त्रस्त होकर वे इंग्लैंड चले गए और वहाँ से भारत की स्वतंत्रता के लिए अभियान चलाया। उन्होंने 1905 में 'द इंडियन सोशिओलॉजिस्ट' नामक मासिक पत्रिका का प्रकाशन शुरू किया, जिसमें वे भारतीय स्वतंत्रता की आवश्यकता पर प्रकाश डालते थे।

इसी वर्ष उन्होंने इंग्लैंड में 'इंडियन होमरूल सोसायटी' की स्थापना की, जिसका उद्देश्य भारतीयों के लिए भारतीयों द्वारा भारतीयों की सरकार स्थापित करना था। उन्होंने लंदन में 'इंडिया हाउस' की स्थापना की, जो कि भारतीय क्रांतिकारियों का प्रमुख केंद्र बना।

शिक्षा और कार्यक्षेत्र

श्यामजी कृष्ण वर्मा पहले भारतीय थे जिन्हें ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से एम.ए. और बैरिस्टर की उपाधियाँ प्राप्त हुईं। पुणे में दिए गए उनके संस्कृत भाषण से प्रभावित होकर मोनियर विलियम्स ने उन्हें ऑक्सफोर्ड में संस्कृत का सहायक प्रोफेसर नियुक्त किया था।

1883 में बी.ए. की डिग्री प्राप्त करने के बाद उन्होंने देशभक्ति की प्रेरणा दी और क्रांतिकारियों को संगठित किया। 18 फरवरी 1905 को उन्होंने 'इंडियन होमरूल सोसायटी' की स्थापना की और स्वशासन की वकालत की। उनका मानना था कि भारतीयों को अंग्रेजों का सहयोग देना बंद कर देना चाहिए, जिससे ब्रिटिश शासन स्वतः ही समाप्त हो जाएगा।

विचारधारा और संघर्ष

श्यामजी कृष्ण वर्मा का मानना था कि स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए शांतिपूर्ण और हिंसक दोनों तरीकों की आवश्यकता पड़ सकती है। वे अंग्रेजों की नीतियों के घोर विरोधी थे और उनका कहना था कि यदि अंग्रेज भारतीयों को स्वतंत्रता के लिए आंदोलन करने की अनुमति नहीं देते, तो सशस्त्र संघर्ष करना न्यायसंगत होगा। उन्होंने अपने लेखों और विचारों से क्रांतिकारियों को प्रेरित किया और स्वतंत्रता संग्राम को नई दिशा दी।

सम्मान और स्मारक

गुजरात में उनकी जन्मस्थली को 'क्रांति तीर्थ' के रूप में विकसित किया गया है, जहाँ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की प्रतिमाएँ स्थापित की गई हैं। रतलाम में 'श्यामजी कृष्ण वर्मा सृजन पीठ' की स्थापना भी की गई है, जहाँ उनके विचारों और योगदान पर शोध किया जाता है।

निधन और अंतिम इच्छा

31 मार्च 1930 को जिनेवा में उनका निधन हुआ। उनकी अंतिम इच्छा थी कि उनकी अस्थियाँ स्वतंत्र भारत की भूमि पर लाई जाएँ। उनकी मृत्यु के 73 वर्ष बाद, 2003 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर उनकी अस्थियाँ भारत लाई गईं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

निष्कर्ष

श्यामजी कृष्ण वर्मा भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के महानायक थे, जिन्होंने विदेश में रहकर भी भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया। उनका योगदान अविस्मरणीय है और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जाएगा।

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