श्रीनिवास रामानुजन: भारत के महान गणितज्ञ (Srinivasa Ramanujan: India's great mathematician)

श्रीनिवास रामानुजन: भारत के महान गणितज्ञ

प्रारंभिक जीवन

श्रीनिवास रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर 1887 को मद्रास प्रेसीडेंसी (अब तमिलनाडु) के इरोड में एक तमिल ब्राह्मण इयंगर परिवार में हुआ था। उनके पिता, श्रीनिवास इयंगार, एक साड़ी की दुकान में क्लर्क के रूप में कार्यरत थे, और उनकी मां, कोमलतामल, एक गृहिणी थीं। रामानुजन का बचपन कुम्भकोणम में बीता, जहाँ उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की।

गणित में रुचि और शिक्षा

रामानुजन बचपन से ही गणित में अत्यधिक रुचि रखते थे। 11 वर्ष की उम्र में, उन्होंने गणित में असाधारण प्रतिभा दिखानी शुरू कर दी और 12 वर्ष की आयु में त्रिकोणमिति में महारत हासिल कर ली। उन्होंने बिना किसी औपचारिक प्रशिक्षण के कई प्रमेयों को विकसित किया।

उन्होंने 1902 में घन समीकरणों को हल करने के उपाय खोजे और क्वार्टीक समीकरण को हल करने की विधि विकसित करने लगे। लेकिन 12वीं कक्षा में वे दो बार गणित को छोड़कर अन्य विषयों में असफल हो गए। इस कारण वे विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं ले सके।

संघर्षमय जीवन

अपनी औपचारिक शिक्षा पूरी न कर पाने के कारण रामानुजन को रोजगार पाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वे नौकरी की तलाश में विभिन्न स्थानों पर गए और अपनी गणितीय खोजों को दिखाया। अंततः डिप्टी कलेक्टर वी. रामास्वामी अय्यर ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें 25 रुपये की मासिक छात्रवृत्ति दिलवाई। इसी दौरान उनका पहला शोधपत्र "बरनौली संख्याओं के कुछ गुण" जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ।

इसके बाद उन्हें मद्रास पोर्ट ट्रस्ट में क्लर्क की नौकरी मिल गई, जिससे उन्हें अपने गणितीय अनुसंधानों के लिए समय मिलने लगा।

इंग्लैंड यात्रा और गणितीय योगदान

रामानुजन की प्रतिभा को पहचानते हुए इंग्लिश गणितज्ञ जी. एच. हार्डी ने उन्हें इंग्लैंड बुलाया। वहाँ उन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और कई महत्वपूर्ण गणितीय खोजें कीं। उन्होंने संख्या सिद्धांत और विश्लेषण के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके कुछ प्रमुख योगदान इस प्रकार हैं:

  • रामानुजन प्राइम (Ramanujan Prime)

  • रामानुजन थीटा फंक्शन (Ramanujan Theta Function)

  • स्प्लिट थ्योरी (Split Theory)

  • फेक थीटा फंक्शंस (Fake Theta Functions)

रामानुजन ने लगभग 3,900 गणितीय समीकरण और प्रमेय विकसित किए, जिनका उपयोग आज भी गणित में किया जाता है।

स्वास्थ्य समस्याएँ और मृत्यु

इंग्लैंड की जलवायु और भोजन उनके स्वास्थ्य के लिए अनुकूल नहीं था, जिससे वे गंभीर रूप से बीमार हो गए। वे भारत लौट आए लेकिन उनकी सेहत में सुधार नहीं हुआ। 26 अप्रैल 1920 को मात्र 33 वर्ष की आयु में इस महान गणितज्ञ का निधन हो गया।

विरासत

रामानुजन की गणितीय उपलब्धियाँ आज भी शोध का विषय हैं। उनके सम्मान में:

  • 22 दिसंबर को राष्ट्रीय गणित दिवस के रूप में मनाया जाता है।

  • रामानुजन जर्नल गणितीय अनुसंधान को समर्पित किया गया है।

  • रामानुजन संख्या (1729), जिसे हार्डी-रामानुजन संख्या भी कहा जाता है, प्रसिद्ध है।

श्रीनिवास रामानुजन न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिए एक प्रेरणास्रोत हैं। उनकी गणितीय प्रतिभा और कठिनाइयों के बावजूद उनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।

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