श्री केदारेश्वर विजयते (Victory to Lord Kedareshwar)

श्री केदारेश्वर विजयते

श्री केदारनाथ धाम की महिमा

श्री केदारनाथ धाम की महिमा और उनकी पूजा के विषय में अनेक ग्रन्थों में संदर्भ मिलते हैं:

अनादिकाल से पूजा का महत्व

"तत्र नित्य हरः साक्षात क्षेत्रे केदार संज्ञके।
भारतीभी: प्रजभिश्च तथैव परिपूज्यते।।"

केदार में भगवान् शिव की नित्य पूजा अनादिकाल से होती आ रही है, और भारतवर्ष के लोग शिव की पूजा उसी भांति करते आ रहे हैं, जिस भांति पांडवों ने की थी।

महाकवि कालिदास द्वारा वर्णन

इस क्षेत्र में श्री केदारनाथ शिव की उपस्थिति को संस्कृत के महाकवि भारवि को ही नहीं अपितु महाकवि कालिदास जी को भी अनुप्राणित किया और उन्होंने वहाँ शिव के स्वरूप का वर्णन करते हुए अपने महाकाव्य 'कुमारसंभव' में लिखा -

"पर्यंक बंधस्थित पूर्व कायमृज्वायतं सन्नामितोभयासं।
उत्तानपाणी द्धयसन्निवेशात, प्रफुल्ल राजीवभिवांकमध्ये।।"

भगवान् शिव वीरासन में विराजमान थे, उनके शरीर का ऊपरी भाग स्थिर और स्थायी था, उनके कंधे उन्नत किंतु झुके हुए थे। वह एकदम सीधे बैठे हुए थे। उनकी जाँघों पर दोनों हथेलियां रखी हुई थीं और आँखे ऊपर की ओर इस तरह खुली हुई थीं, जैसे दो लाल कमल खिले हुए हैं।

तीर्थ कल्पतरु में केदारनाथ महिमा

"तीर्थ कल्पतरु" नामक ग्रंथ में श्री लक्ष्मीधर जी ने श्री केदारनाथ की महिमा विस्तार से लिखी हैं। इस विवरण को 'वीर मित्रोदय तीर्थ प्रकाश' में भी उद्धृत किया गया है। उसमें कहा गया है कि - भगवान् शिव ईशान शिखर पर विराजमान हैं। वहाँ रेतस कुण्ड भी है जिसका जल पीने से प्राणी को मोक्ष मिल जाता है और वह जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्त हो जाता है।

विष्णु धर्म सूत्र में केदारनाथ का उल्लेख

इसी प्रकार 'विष्णु धर्म सूत्र' में श्राद्ध कर्म करने के लिए जिन पवित्र स्थानों को बतलाया गया है, उनमें हिमालय में केदारनाथ का नाम भी सम्मिलित है।


निष्कर्ष

श्री केदारनाथ धाम केवल एक तीर्थ स्थल नहीं, बल्कि एक अध्यात्मिक ऊर्जा केंद्र भी है। इसकी महिमा अनंतकाल से चली आ रही है और यह सभी भक्तों को मोक्ष प्रदान करने वाला पावन धाम है।


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