संतोश का धन: जीवन की सच्ची समृद्धि (The wealth of contentment: true prosperity in life.)

संतोश का धन: जीवन की सच्ची समृद्धि

पैसे का सही इस्तेमाल न करने से केवल पैसा बर्बाद होता है, परन्तु समय बर्बाद करके आप जिन्दगी का बड़ा हिस्सा खो देते हैं।

काफी दिनों बाद जब रेखा अपनी कॉलोनी में एक महापुरुष के प्रवचन सुनने के लिये गई तो वहां उसकी अपनी एक पुरानी सहेली से मुलाकात हो गई। उसने हालचाल पूछने के साथ ही उससे पूछ लिया कि तुमने अपनी बेटी की शादी की या नहीं। रेखा ने जवाब देते हुए कहा कि हम तो अपनी बेटी के लिये अच्छा दूल्हा ढूंढ-ढूंढ कर थक गये हैं, परंतु उसे तो कोई भी लड़का पसंद आता ही नहीं। सहेली ने पूछ लिया कि आखिर तुम्हारी बेटी को किस प्रकार का लड़का चाहिये? रेखा ने कहा कि मेरी बेटी 23-24 साल की हो गई है, लेकिन हमें आज तक यही समझ नहीं आया कि उसे क्या अच्छा लगता है और क्या नहीं। जहां तक रही शादी की बात तो इस बारे में वो हम लोगों के साथ ठीक से बात ही नहीं करती। हां, उसकी सहेलियों से कभी-कभार बात करने पर इतना जरूर मालूम हुआ है कि वो किसी ऐसे लड़के से शादी करना चाहती है जो सिर्फ पति न होकर एक अच्छा दोस्त हो। इसी के साथ वो अच्छा साथी, अच्छा प्रेमी, अच्छा ड्राइवर, अच्छा पलंबर, अच्छा मैकेनिक हो। उसका यह भी कहना है कि लड़का ऐसा होना चाहिये जो सारे घर को ठीक से संवार कर रख सके, अच्छा श्रोता हो ताकि मैं जब भी कुछ बोलूं सब कुछ शांति से सुन सके, समय-समय पर हंसी-मजाक कर सके, मेरी हर गलती को बर्दाश्त कर सके, इसी के साथ उसमें बिल्कुल सच बोलने की आदत और ईमानदार होना भी जरूरी है।

रेखा ने अपनी बात पूरी करने के साथ अपनी सहेली से पूछा कि तुम भी तो अपने बेटे के लिये रिश्ता देख रही थी, क्या उसकी शादी हो गई? सहेली ने कहा कि आज सुबह ही मैंने अपने बेटे से पूछा था कि तुम भी बता दो कि शादी के बारे में तुम्हारे क्या क्या सपने हैं? मेरे बेटे ने कहा- 'मां मेरे तो सिर्फ तीन ख्वाब हैं। पहला, भगवान मुझे इतना खूबसूरत बना दे, जितना हर मां अपने बेटे को समझती है। दूसरा, भगवान मुझे इतना अमीर बना दे, जितना हर बेटा अपने बाप को समझता है और आखिरी ख्वाब यह है कि भगवान मुझे इतनी सारी गर्लफ्रेन्ड दे, जितनी हर औरत अपने पति पर शक करती है।' रेखा ने कहा- 'बहन, तुम ठीक कह रही हो। आजकल की युवा पीढ़ी की सोच तो न जाने कैसी होती जा रही है। इन लोगों की ख्वाहिशें इतनी बढ़ती जा रही हैं कि उसकी चकाचौंध में यह लोग तो संतुष्टि के मायने ही भूलते जा रहे हैं।'

बातचीत करते-करते जैसे ही यह दोनों सहेलियां प्रवचन सुनने के लिये पंडाल में दाखिल हुईं तो वहां पर आये हुए संत जी भी सभी भक्तजनों को संतोश के बारे में ही ज्ञान दे रहे थे कि जो व्यक्ति सदा संतुष्ट रहना सीख लेते हैं, वही सदा हर्षित एवं आकर्षक मूर्त होते हैं। संतोश इस दुनिया की बड़ी से बड़ी दौलत से भी अच्छा है। इस दुनिया में सांसारिक काम करने के लिये धन की आवश्यकता तो हर व्यक्ति को पड़ती है। इसलिये अपनी जरूरत के लिए धन कमाना अच्छी बात है, किंतु दिन-रात धन-दौलत जमा करने की भूख होना बुरी बात है। यदि आप जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं तो यह सुनिश्चित करें कि आपकी इच्छायें कभी भी सीमा से आगे न बढ़ने पायें। हर दिल में एक के बाद एक इच्छा जागती रहती है। जैसे ही एक इच्छा पूरी होती है तो दस और तमन्नायें जन्म ले लेती हैं। कोई भी इंसान चाह कर भी इन सभी की पूर्ति कभी नहीं कर सकता। जिस व्यक्ति में संतोश है, उससे खुशहाल इस संसार में कोई नहीं है। कुछ लोगों का यह मानना है कि इस तरह से तो संतोश हमारे तरक्की के सभी रास्तों में बाधा डालने का काम करेगा, क्योंकि जिस व्यक्ति को हर ओर से संतुष्टि मिल जाती है वो आगे किसी भी कर्म को करने के बारे में कोशिश ही नहीं करेगा। परंतु असल में सच्चाई कुछ और ही है। हम अपने धर्मग्रंथों को गौर से समझें तो वो भी हमें यही समझाते हैं कि किसी भी कर्म के फल पर हमारा कोई जोर नहीं है, इसलिये जिस वस्तु पर हमारा अधिकार है ही नहीं उसमें तो संतोश करना ही अक्लमंदी है। हां, यदि हम फल की जगह कर्म में संतोश कर लेंगे तो हमारा जीवन जरूर अंधकारमय हो जायेगा।

हर इंसान अपने कर्मों और विचारों के माध्यम से ही अपने व्यक्तित्व का निर्माण करता है। जीवन को सादा और सुखी रखने के लिये जरूरी है कि कभी किसी से लेन-देन में कुछ गफलत न करे। परमात्मा पर भरोसा रखते हुए सदा खुश रहने का प्रयास करे। कमाल की बात तो यह है कि यह कोई गुरु मंत्र नहीं बल्कि वो साधारण-सी बातें हैं जो हर कोई जानता है। हर कोई यह भी जानता है कि उसके मन को खुशी कहां से मिलती है, मन को शांति यदि मिल सकती है तो वो सिर्फ संतोश से। कबीर साहब ने भी अपनी वाणी में लिखा है कि संतोश ही सबसे बड़ा धन है, संतोश का फल सदैव बड़ा मीठा होता है। जो कुछ छूट गया उसकी चिंता न करके उसकी गिनती करो जो तुम्हारे पास है।

हमारे पास बहुत कुछ है और उसके पास हमारे से ज्यादा है यदि हम यह विचार छोड़ दें तो फिर हमारे जीवन में सुख ही सुख है। यह छोटी-छोटी बातें साफ तौर पर बता रही हैं कि संतोश के बिना किसी व्यक्ति को सच्चा सुख नहीं मिल सकता। संतोश एक ओर जहां गरीबों को अमीर बनाता है, वही असंतोष अमीरों को गरीब बनाता है। जिस किसी को अपने जीवन में पूर्ण रूप से तसल्ली मिल जाती है, फिर उसे बार-बार किसी के दर पर कुछ मांगने के लिये नहीं जाना पड़ता। विद्वान लोगों की राय जानने के बाद जौली अंकल भी अपना स्पष्टीकरण देते हुए यही कहते हैं कि सच्चा धनवान वही व्यक्ति होता है जो अपनी इच्छाओं पर काबू रख पाता है। अपनी इन्द्रियों पर सम्पूर्ण संयम और संतोश रख पाना ही सच्ची विजय है।

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