सोमचंद से भारतीचंद तक: चंद वंश का इतिहास (From Somchand to Bhartichand: The history of the Chand dynasty.)

सोमचंद से भारतीचंद तक: चंद वंश का इतिहास

आत्मचंद: सोमचंद के उत्तराधिकारी

सोमचंद का उत्तराधिकारी उसकी कत्यूरी रानी से उत्पन्न आत्मचंद था। आत्मचंद के 20 वर्षों के शासन के बाद पूर्णचंद गद्दी पर बैठा। इसके पश्चात इन्द्रचंद ने शासन संभाला, जिसने अपने शासनकाल में रेशम उत्पादन एवं रेशमी वस्त्र निर्माण को बढ़ावा दिया। उसने मैदानी क्षेत्रों से पट्टवायों (रेशम बुनकरों) को आमंत्रित किया और चीन से व्यापारिक संबंध स्थापित किए, जिससे चंद वंश की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई।

चंद वंश की शाखाओं का विस्तार

1223 ईस्वी में क्राचल्लदेव के अभिलेख में 10 मांडलिक राजाओं की सूची मिलती है, जिसमें श्री विनयचंद और विद्यालयचंद के नाम चंद वंश की अधीनता का प्रमाण देते हैं। इससे ज्ञात होता है कि बीनाचंद के बाद चंद वंश की तीन शाखाएँ काचल्लदेव के अधीन शासन करने लगीं।

वीरचंद ने अशोकचल्ल की सहायता से बीनाचंद के समय हुए विद्रोह को दबाया। 1206 ईस्वी में वीरचंद की मृत्यु के बाद क्रमशः नरचंद, थाहचंद और त्रिलोकचंद राजा बने। 1303 ईस्वी में त्रिलोकचंद की मृत्यु के बाद उमरचंद राजा बना, जिसने लगभग 18 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद धर्मचंद, अभयचंद और कर्मचंद गद्दी पर बैठे।

ज्ञानचंद: दिल्ली दरबार में चंद वंश का प्रतिनिधित्व

1365 से 1420 ईस्वी तक ज्ञानचंद ने शासन किया। वह पहला चंद राजा था जो दिल्ली के फिरोजशाह तुगलक के दरबार में नजराना देने गया था। इससे प्रसन्न होकर फिरोजशाह ने उसे ‘गरूड़’ की उपाधि दी एवं तराई-भाबर का क्षेत्र भी प्रदान किया।

भारतीचंद: चंद वंश का विस्तार

भारतीचंद एक साहसी और वीर शासक था, जिसने डोटी राज्य की अधीनता को अस्वीकार किया और एक विशाल सेना का गठन किया। उसने पिथौरागढ़ में पड़ाव डाला और 12 वर्षों तक डोटी को घेरा। अंततः 1451-52 ईस्वी में उसने मल्ल राजा को पराजित किया और चंद वंश का पूर्ण प्रभुत्व स्थापित किया।

डोटी विजय के पश्चात, भारतीचंद ने अपने पुत्र रतनचंद के सहयोग से सोर, सीरा और थल क्षेत्रों पर अधिकार किया। इस दौरान सीरा के मल्ल शासक कल्याण मल्ल को पराजित किया और डंगुरा बसेड़ा को सीरा का सामंत नियुक्त किया।

रुद्रचंद: चंद वंश की राजधानी अल्मोड़ा

भारतीचंद के बाद रत्नचंद राजा बने और उनके उत्तराधिकारी कीर्तिचंद ने शासन संभाला। इसके बाद क्रमशः प्रतापचंद, ताराचंद, मानिकचंद, कल्याणचंद और पूर्णचंद राजा बने। रुद्रचंद के समय चंद वंश की राजधानी चंपावत से अल्मोड़ा स्थानांतरित की गई। उसने हरिमल्ल को पराजित कर सीरा पर अपना शासन स्थापित किया और 1590 ईस्वी में थल में एक शिव मंदिर बनवाया।

निष्कर्ष

चंद वंश ने उत्तराखंड में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसके शासकों ने न केवल सैन्य विजय हासिल की बल्कि आर्थिक समृद्धि भी लाई। भारतीचंद और रुद्रचंद जैसे शासकों ने इस वंश को ऊंचाइयों तक पहुंचाया।

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