उत्तराखंड के महान राजा अजयपाल (The great king Ajaypal of Uttarakhand)

उत्तराखंड के महान राजा अजयपाल

राजा अजयपाल पंवार वंश के 27वें शासक थे और उन्हें उत्तराखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उनकी शासन अवधि के दौरान, गढ़वाल क्षेत्र में एकीकृत प्रशासनिक व्यवस्था की नींव रखी गई और एक सशक्त राज्य की स्थापना हुई।

राजा अजयपाल का योगदान

  1. राजधानी का परिवर्तन
    राजा अजयपाल के शासनकाल में गढ़वाल राज्य की राजधानी को चाँदपुर-गढ़ी से बदलकर श्रीनगर (गढ़वाल) में स्थापित किया गया। यह निर्णय प्रशासनिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ।

  2. गढ़ों का एकीकरण
    राजा अजयपाल को 52 गढ़ियों को विजित कर एक विशाल गढ़राज्य की स्थापना का श्रेय जाता है, जिसे 'गढ़वाल राज्य' के नाम से जाना गया। हालांकि, इतिहासकारों के बीच गढ़ों की सटीक संख्या को लेकर मतभेद हैं। कुछ विद्वानों ने इसे 52 तो कुछ ने 64 या 24 गढ़ों तक माना है।

  3. गढ़ों की सुरक्षा व्यवस्था
    गढ़वाल क्षेत्र की किलाबंदी और प्रशासनिक व्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए राजा अजयपाल ने पर्वतीय दुर्गों को विकसित किया। इन दुर्गों में गुप्त सुरंगें बनाई जाती थीं, जो सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण थीं। प्रमुख गढ़ों में चाँदपुरगढ़ी, खैरागढ़, उप्पूगढ़ और गुजडुगढी शामिल थे।

  4. गोरखनाथ पंथ से जुड़ाव
    राजा अजयपाल ने शासन छोड़कर गोरखनाथ पंथ को अपनाया। उन्हें गोरखनाथ संप्रदाय के 84 सिद्धों में से एक माना गया। नवनाथ कथा और गोरक्षा स्तवांजलि ग्रंथों में भी उनका उल्लेख मिलता है। उनके जीवन का अंतिम भाग आध्यात्मिक साधना में बीता।

  5. अजयपाल की धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत
    उन्होंने देवलगढ़ में एक भव्य राजप्रसाद और अपनी कुलदेवी 'राज-राजेश्वरी' का मंदिर बनवाया। साथ ही, विष्णु मंदिर की दीवारों पर उनकी पद्मासन मुद्रा में चित्रित मूर्तियाँ भी मौजूद हैं।

राजा अजयपाल और सम्राट अशोक की समानता

प्रो. अजय सिंह रावत के अनुसार, जिस प्रकार सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद भेरीघोष छोड़कर धम्मघोष को अपनाया, उसी प्रकार राजा अजयपाल ने 52 गढ़ों को जीतने के बाद सांसारिक ऐश्वर्य का त्याग कर गोरखपंथ को अपना लिया।

निष्कर्ष

राजा अजयपाल न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि एक कुशल प्रशासक और दूरदर्शी शासक भी थे। उन्होंने गढ़वाल राज्य को संगठित कर इसे एक सशक्त राज्य के रूप में स्थापित किया। उनकी विरासत आज भी उत्तराखंड के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर के रूप में जीवंत है।

टिप्पणियाँ