चंद वंश का इतिहास (History of the Chand dynasty)

चंद वंश का इतिहास

चंद वंश के ऐतिहासिक स्रोत

कुर्मांचल पर कत्यूरियों के बाद शासन करने वाले 'चंद' वंश के इतिहास को जानने के लिए हमारे पास पुरातात्विक, साहित्यिक एवं लोक गाथाएँ उपलब्ध हैं। इनका विवरण इस प्रकार है:

1. पुरातात्विक स्रोत

चंद वंश के इतिहास को जानने के मुख्य स्रोत पुरातात्विक अभिलेख हैं। इनमें प्रमुख हैं:

  • बालेश्वर मंदिर से प्राप्त क्राचल्लदेव का लेख

  • बास्ते ताम्रपत्र

  • गोपेश्वर त्रिशूल लेख

  • बोधगया शिलालेख

  • लोहाघाट एवं हुडैती अभिलेख

  • गड्यूड़ा ताम्रपत्र

  • विजयचन्द्र का पाभै ताम्रपत्र

  • कलपानी-गाड़भेटा से प्राप्त कल्याण चंद का ताम्रपत्र

  • खेतीखान ताम्रपत्र

  • सीरा क्षेत्र से प्राप्त 1353 ई. एवं 1357 ई. के मल्ला ताम्रपत्र

  • सेरा-खडकोट एवं मझेडा ताम्रपत्र

इनके अतिरिक्त मूनकोट ताम्रपत्र, बरग से प्राप्त ताम्रपत्र, झिझाड़ ताम्रपत्र, लखनऊ संग्रहालय का ताम्रपत्र संख्या 51.284 भी महत्वपूर्ण हैं।

2. लिखित स्रोत

कुमाऊँ के चंद वंश के संबंध में लिखित स्रोतों से भी पर्याप्त जानकारी मिलती है:

  • मानोदय अथवा ज्ञानोदय काव्य में चंद राजाओं की वंशावली दी गई है।

  • पंवाड़े चंद राजाओं की जानकारी से भरे पड़े हैं, जैसे भारतीचंद का पंवाड़ा

  • लोकगीतों एवं लोकगाथाओं में चंद राजाओं की यशगाथाएँ वर्णित हैं।

राज्य विस्तार

प्रारंभ में चंद राज्य काली नदी की उपत्यका तक ही सीमित था, लेकिन कालांतर में इसका विस्तार हुआ और इसमें तराई-भाबर क्षेत्र, सोर, सीरा, दारमा-जौहार, व्यास-गणकोट एवं सम्पूर्ण अल्मोड़ा जनपद सम्मिलित हो गए।

चंद राजाओं ने डोटी की राजधानी अजमेरगढ़ एवं जुराइल-दिवाइल कोट तक विजय प्राप्त की। इनकी प्रारंभिक राजधानी चंपावत थी। राजधानी के लिए 'राजबुगा' अथवा 'राजधाई' शब्दों का प्रयोग हुआ है। बालू कल्याण चंद के शासनकाल में अल्मोड़ा को चंदों की स्थायी राजधानी बनाया गया।

चंद वंश की स्थापना

दसवीं शताब्दी के अंत अथवा ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभ में कुर्मांचल में एक नए राजवंश की स्थापना हुई जिसे 'चंद' वंश कहा जाता है। इसकी स्थापना को लेकर विभिन्न मत हैं:

1. काली कुमाऊँ में सोमचंद का आगमन

लोहाघाट के निकट काली कुमाऊँ क्षेत्र में प्राचीन सुई राज्य था। 10वीं शताब्दी के अंतिम चरण में इस राज्य पर ब्रह्मदेव का शासन था। वह महत्वाकांक्षी शासक था और उसने सीमांत खस राज्यों पर आक्रमण किया, जिससे कुमाऊँ में अव्यवस्था फैल गई।

इस स्थिति में काली कुमाऊँ के प्रमुख ने एक योग्य शासक की खोज में गंगा के मैदानी क्षेत्र की ओर दूत भेजा। यह दल इलाहाबाद (झूसी) से सोमचंद को कुमाऊँ लेकर आया और उसे काली कुमाऊँ का राजा बनाया गया।

2. गणेश सिंह वेदी का मत

गणेश सिंह वेदी की पुस्तक 'शशिवंश विनोद' के अनुसार चंदेरी के राजा हरिहरचंद के पाँच पुत्र थे—

  • वीरचंद

  • कबीरचंद

  • गम्भीरचंद

  • सबरीचंद

  • गोविन्दचंद

इनमें से कबीरचंद कुमाऊँ क्षेत्र में आया और वहाँ के राजा के यहाँ नौकरी करने लगा। उसकी योग्यता से प्रभावित होकर राजा ने उसे दत्तक पुत्र के रूप में स्वीकार किया और बाद में वह कुमाऊँ का शासक बना।

3. सोमचंद्र का झूसी से आगमन

एक अन्य परंपरा के अनुसार झूसी (इलाहाबाद) से एक चंद्रवंशी राजकुमार सोमचंद्र अपने साथ ब्राह्मणों और राजपूतों की टोली लेकर बद्रीनाथ की यात्रा पर आया था।

इसकी जानकारी मिलने पर ब्रह्मदेव ने उसे अपने दरबार में बुलाया और उसकी योग्यताओं से प्रभावित होकर उसे अपनी इकलौती पुत्री से विवाह का प्रस्ताव दिया। विवाह के उपरांत उसे 15 बीसी भूमि का दान दिया गया।

सोमचंद ने यहाँ 'राज बुंगी' नामक भव्य गढ़ का निर्माण कराया, जो बाद में 'चम्पावत' के रूप में प्रसिद्ध हुआ और 1560 ई. तक चंद वंश की राजधानी बना रहा।

चंद वंश की ऐतिहासिकता

एटकिन्सन महोदय ने एच.एम. इलियट के मत का खंडन करते हुए लिखा कि सोमचंद्र चन्देल वंशी था, न कि चंद्रवंशी, और वह झूसी से नहीं, बल्कि झांसी से काली कुमाऊँ आया था

निष्कर्ष

कुर्मांचल में चंद वंश की स्थापना बाहर से आए एक राजकुमार द्वारा की गई थी। विद्वानों के अनुसार 1025 ई. के आसपास कत्यूरियों का पतन शुरू हुआ और चंदों ने इस क्षेत्र में शासन की नींव रखी।

इस नए राजवंश के सभी शासकों के नाम के अंत में 'चंद' उपसर्ग लगा था, जिससे इसे 'चंद राजवंश' कहा जाने लगा।

महत्वपूर्ण तथ्य

  • सोमचंद ने चंद वंश की स्थापना की।

  • चंपावत प्रारंभिक राजधानी थी, बाद में अल्मोड़ा बनी।

  • कत्यूरियों के पतन के बाद चंदों का उदय हुआ

  • इस वंश के शासकों ने कुमाऊँ की संस्कृति और वास्तुकला को समृद्ध किया

  • बालेश्वर मंदिर, गोपेश्वर त्रिशूल लेख, बास्ते ताम्रपत्र, आदि प्रमुख पुरातात्विक स्रोत हैं

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