खैट अनशन: उत्तराखंड राज्य आंदोलन का निर्णायक अध्याय (Khat Hunger Strike: The Decisive Chapter of the Uttarakhand State Movement)
खैट अनशन: उत्तराखंड राज्य आंदोलन का निर्णायक अध्याय
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के इतिहास में खैट अनशन एक महत्वपूर्ण मोड़ था। यह अनशन न केवल आंदोलन की दृढ़ता और संघर्ष की पराकाष्ठा को दर्शाता है, बल्कि उत्तराखंड राज्य के निर्माण में इसकी निर्णायक भूमिका भी रही। टिहरी जिले में स्थित खैट पर्वत, जो लगभग 10,000 फीट की ऊँचाई पर है, ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसी पर्वत पर स्थित शक्तिरूपी दुर्गा मंदिर के परिसर में उत्तराखंड क्रांति दल (उक्रांद) के फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट और उनके सहयोगियों ने ऐतिहासिक अनशन किया था।

खैट पर्वत और आंदोलन की पृष्ठभूमि
टिहरी जिले में भागीरथी और भिलंगना नदी के उत्तर में स्थित खैट पर्वत न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि इसे आच्छरियों (परियों) की किवदंतियों से भी जोड़ा जाता है। 1994 के रामपुर तिराहा कांड और अन्य घटनाओं के बाद, जब उत्तराखंड राज्य की मांग को लेकर विभिन्न स्तरों पर आंदोलन हो रहे थे, तब दिवाकर भट्ट और उनके साथियों ने एक ऐसे स्थान की खोज की, जहाँ सरकार को गंभीरता से पृथक राज्य की मांग को सुनना पड़े।
पौड़ी के श्रीयंत्र टापू में हुए अनशनों के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि प्रशासन जल्दबाजी में कार्यवाही कर सकता है, इसलिए एक दुर्गम स्थल का चुनाव किया गया जहाँ तक पहुँचने में ही प्रशासन को काफी मशक्कत करनी पड़े। खैट पर्वत को इसी उद्देश्य से चुना गया। यहाँ तक पहुँचने के लिए सड़क मार्ग समाप्त होने के बाद कम से कम 6 किमी की कठिन और खड़ी चढ़ाई करनी पड़ती थी।
अनशन की योजना और रणनीति
दिवाकर भट्ट और सुंदर सिंह चौहान अपने विश्वसनीय साथियों के साथ अनशन स्थल पर पहले ही पहुँच गए। सुरक्षा की दृष्टि से, आगंतुकों को पूर्ण तसल्ली के बाद ही अंदर जाने दिया जाता था। फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट के स्वयं अनशन पर बैठने से उनके समर्थक अपने निजी हथियारों के साथ सुरक्षा में तैनात हो गए थे। इस अनशन की विशेषता यह थी कि यह अत्यंत कठिन परिस्थितियों में हुआ। अनशन स्थल पर पीने का पानी तक कई किलोमीटर दूर उपलब्ध था, इसलिए पहले से ही टंकियों में पानी का भंडारण किया गया था।
दिवाकर भट्ट के नेतृत्व में इस अनशन के दौरान प्रशासन के लिए स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण हो गई। 80 वर्षीय सुंदर सिंह और 49 वर्षीय दिवाकर भट्ट का क्रमशः 13 और 12 किलो वजन कम हो गया, लेकिन वे अपने संकल्प से पीछे नहीं हटे।
सरकार की प्रतिक्रिया और अनशन का प्रभाव
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए टिहरी के जिलाधिकारी ने राज्यपाल से इस मुद्दे पर वार्ता करने के लिए दिसंबर 1995 में बातचीत की। इसी बीच, केंद्र सरकार को भी स्थिति की गंभीरता का एहसास हुआ। गृह मंत्री एम. कामसन ने गृह मंत्रालय की ओर से उत्तराखंड राज्य को लेकर औपचारिक वार्ता का निमंत्रण भेजा। इस दबाव के चलते 4 जनवरी 1996 को अनशनकारी टिहरी पहुँचे, लेकिन उन्होंने वार्ता से पहले अनशन समाप्त करने से इनकार कर दिया।
अंततः 15 जनवरी 1996 को केंद्रीय गृह मंत्री एम. कामसन और विदेश राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद स्वयं जंतर-मंतर पहुँचे और 16 एवं 20 जनवरी को गृह मंत्रालय में औपचारिक वार्ता का आश्वासन दिया। इस प्रकार 32 दिनों से चला आ रहा ऐतिहासिक अनशन समाप्त हुआ। हालाँकि, इन वार्ताओं से कोई ठोस समाधान नहीं निकला, लेकिन खैट अनशन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि केंद्र सरकार ने पृथक राज्य की मांग को गंभीरता से लिया और इस दिशा में औपचारिक पहल की शुरुआत हुई।
उत्तराखंड राज्य निर्माण की दिशा में अगला चरण
खैट अनशन के बाद उत्तराखंड राज्य आंदोलन को निर्णायक मोड़ मिला। 26 जनवरी 1996 को गणतंत्र दिवस के अवसर पर उत्तराखंड क्रांति दल की सरोजनी और भूपाल सिंह सहित 12 लोगों ने नारेबाजी की। मार्च 1996 में "राज्य नहीं तो चुनाव नहीं" के नारे गूंजने लगे। वर्ष 1997 में कांग्रेस के सतपाल महाराज और हरीश रावत ने केंद्र सरकार से उत्तराखंड राज्य के गठन की पहल करने का आग्रह किया।
29 मार्च 1997 को उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने पृथक उत्तराखंड राज्य का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजने की घोषणा की। इसी वर्ष जून में प्रधानमंत्री इंद्रकुमार गुजराल ने घोषणा की कि उत्तराखंड राज्य गठन की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी गई है। इसके बाद 21 अगस्त 1998 को केंद्र सरकार ने तीन राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित विधेयकों को संबंधित राज्यों की विधानसभाओं के पास भेजा।
अंततः, 27 जुलाई 2000 को उत्तराखंड राज्य निर्माण विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत किया गया और 1 अगस्त 2000 को लोकसभा तथा 10 अगस्त को राज्यसभा से पारित हो गया। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ 28 अगस्त 2000 को यह विधेयक कानून बन गया और 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड भारत का 27वाँ राज्य बना।
निष्कर्ष
खैट अनशन उत्तराखंड राज्य आंदोलन का एक ऐसा महत्वपूर्ण अध्याय था जिसने सरकार को पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग को गंभीरता से लेने के लिए बाध्य किया। यह अनशन न केवल आंदोलनकारियों के साहस, बलिदान और दृढ़ता का प्रतीक बना, बल्कि यह दिखाता है कि किस तरह कठिन संघर्ष के बाद उत्तराखंड की जनता ने अपना अलग राज्य प्राप्त किया। आज जब हम उत्तराखंड राज्य की ओर देखते हैं, तो हमें उन वीर आंदोलनकारियों के बलिदान को कभी नहीं भूलना चाहिए जिन्होंने अपने जीवन को दांव पर लगाकर इस सपने को साकार किया।
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