गढ़वाल के राजा प्रदीपशाह: एक ऐतिहासिक अवलोकन (King Pradeep Shah of Garhwal: A Historical Overview)

गढ़वाल के राजा प्रदीपशाह: एक ऐतिहासिक अवलोकन

गढ़वाल राज्य के इतिहास में राजा प्रदीपशाह (संवत 1782, 1791, 1802, 1812) का शासनकाल एक महत्वपूर्ण दौर माना जाता है। हालांकि, उनके राज्यारोहण की तिथि को लेकर इतिहासकारों के बीच मतभेद हैं। हरिकृष्ण रतुड़ी के अनुसार, वे 33 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठे, जबकि शिवप्रसाद डबराल के अनुसार, उनका राज्यारोहण मात्र 5 वर्ष की अवस्था में हुआ। शूरवीर सिंह के संग्रह में रखे ताम्रपत्र के आधार पर दो तथ्य सामने आते हैं:

  1. फतेहशाह और प्रदीपशाह के बीच उपेन्द्रशाह गढ़वाल नरेश रहे।

  2. प्रदीपशाह के राज्यारोहण के समय उनकी माता संरक्षिका नहीं थीं, क्योंकि ताम्रपत्र में उनकी माता का नाम अंकित नहीं है।

राज्य संचालन एवं प्रशासन

डॉ. डबराल के अनुसार, प्रदीपशाह के अल्पव्यस्क रहने तक मंत्रियों के एक सशक्त गुट ने शासन संभाला, जिसमें पूरनमल या पुरिया नैथाणी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उनके शासनकाल के चार अभिलेख (संवत 1782, 1791, 1802, 1812) का वर्णन डॉ. डबराल और एंटकिन्सन महोदय ने किया है, हालांकि इनमें से कोई भी अभिलेख वर्तमान में उपलब्ध नहीं है।

सिक्के एवं प्रशासनिक प्रमाण प्रदीपशाह के शासनकाल का एक महत्वपूर्ण प्रमाण लखनऊ संग्रहालय में रखा गया एक सिक्का है, जिस पर 'गढ़वाल का राजा' और 'प्रदीपशाह' अंकित है। इस सिक्के पर सन् 1717 से 1757 ईस्वी तक की अवधि उल्लिखित है, जिससे उनके शासनकाल की अवधि का अनुमान लगाया जाता है।

गढ़वाल और कुमाऊँ के संबंध

प्रदीपशाह के शासनकाल में गढ़वाल और कुमाऊँ के मध्य मैत्रीपूर्ण संबंध रहे। इसका प्रमाण कुमाऊँ पर हुए रोहिल्ला आक्रमण के समय मिलता है। जब कुमाऊँ नरेश कल्याणचंद्र की सहायता के लिए प्रदीपशाह ने अपनी सेना भेजी थी। हालांकि, जब गढ़वाल और कुमाऊँ की सम्मिलित सेनाएँ रोहिल्लों को परास्त करने में असफल रहीं, तो कुमाऊँ नरेश ने रोहिल्लों से संधि करने का निर्णय लिया। इस संधि के अंतर्गत, रोहिल्लों ने युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में तीन लाख रुपये की मांग की, जिसे मित्रता के नाते प्रदीपशाह ने भुगतान किया। इसी समय, रोहिल्ला सेनापति ने गढ़वाल राज्य के भावर और दून घाटी पर अधिकार कर लिया, जिसे 1770 ईस्वी में पुनः गढ़वाल राज्य ने अपने अधीन कर लिया।

प्रदीपशाह का शासनकाल

ब्रिटिश इतिहासकार विलियम्स के अनुसार, प्रदीपशाह का शासनकाल शांति और समृद्धि का काल था। उनके शासन में दून घाटी की भूमि उपजाऊ थी, और कृषक थोड़े से परिश्रम में भरपूर फसल प्राप्त करते थे। माना जाता है कि उन्होंने लगभग 56 वर्षों तक शासन किया। बैकेट महोदय की सूची, पातीराम और एटकिन्सन के अनुसार, संवत 1829 में उनकी मृत्यु हुई, जिसका अर्थ है कि उन्होंने 1772 ईस्वी तक शासन किया। राहुल सांकृत्यायन ने भी ताम्रपत्रों के आधार पर इस तिथि की पुष्टि की है। हालांकि, हरिकृष्ण रतुड़ी उनके शासनकाल को 1750-1780 ईस्वी के मध्य रखते हैं, लेकिन अधिकांश ऐतिहासिक प्रमाण 1772 ईस्वी को ही उनकी मृत्यु की तिथि के रूप में इंगित करते हैं।

निष्कर्ष

प्रदीपशाह गढ़वाल राज्य के एक महत्वपूर्ण शासक थे, जिनका शासनकाल शांति और समृद्धि से परिपूर्ण था। उनके नेतृत्व में गढ़वाल और कुमाऊँ के संबंध प्रगाढ़ हुए, और उन्होंने अपने राज्य को मजबूत करने में अहम भूमिका निभाई। उनके शासनकाल के दौरान कृषि और आर्थिक व्यवस्था उन्नत थी, जिससे राज्य की समृद्धि बनी रही। ऐतिहासिक अभिलेखों और सिक्कों के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि प्रदीपशाह ने गढ़वाल के प्रशासनिक और सैन्य क्षमताओं को सशक्त किया और अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए आवश्यक रणनीतिक निर्णय लिए।

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