गढ़वाल के राजा पृथ्वीपतशाह और उनकी वीर माता रानी कर्णावती (King Prithvipat Shah of Garhwal and his brave mother Queen Karnavati.)

गढ़वाल के राजा पृथ्वीपतशाह और उनकी वीर माता रानी कर्णावती

गढ़वाल के राजा पृथ्वीपतशाह का शासनकाल और उनकी माँ रानी कर्णावती का अद्भुत शौर्य, इतिहास के पन्नों में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। यह वह दौर था जब गढ़वाल मुगलों की विस्तारवादी नीतियों के विरुद्ध डटकर खड़ा था।

पृथ्वीपतशाह: एक बाल शासक

इतिहासकारों के अनुसार, पृथ्वीपतशाह केवल 7 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठा। इस कारण उसकी माँ, रानी कर्णावती ने गढ़वाल की सत्ता संभाली और एक कुशल प्रशासक के रूप में अपनी योग्यता सिद्ध की। उनके शासनकाल का प्रमाण सम्वत् 1697 (1640 ई.) के ताम्रपत्र से मिलता है, जिसमें हाट ग्राम के हटवाल ब्राह्मण को भूमिदान देने का उल्लेख है। रानी कर्णावती का नाम हस्तलिखित 'साँवरी ग्रन्थ' में भी आता है।

नाककटटी रानी: रानी कर्णावती का शौर्य

रानी कर्णावती गढ़वाल के इतिहास में 'नाककटटी रानी' के नाम से प्रसिद्ध हैं। यह नाम उन्हें मुगलों पर उनकी ऐतिहासिक विजय के कारण मिला। शाहजहाँ के शासनकाल में मुगलों ने गढ़वाल पर एक विशाल सेना के साथ आक्रमण किया। गढ़वाल के वीरों ने रानी के नेतृत्व में मुगलों को करारी शिकस्त दी और जीवित पकड़े गए सैनिकों की नाक काट दी। यह उल्लेखनीय घटना 'महासिरूल उमरा' और 'स्टोरियो डू मोगोर' ग्रंथों में दर्ज है। मुगल सेनापति नजावत खाँ इस पराजय को सहन नहीं कर पाया और दिल्ली पहुँचकर आत्महत्या कर ली।

मुगलों का पुनः आक्रमण

मुगलों को यह पराजय सहन नहीं हुई और 1655 ई. में उन्होंने खल्लीतुल्ला के नेतृत्व में गढ़वाल पर दोबारा आक्रमण किया। इस बार सिरमौर के राजा मान्धाता प्रकाश और कुमाऊँ के चंद राजा बाजबहादुर ने भी मुगलों का साथ दिया। फिर भी वे केवल दून घाटी और कुछ किलों को ही जीत पाए। राजधानी श्रीनगर पर उनका नियंत्रण नहीं हो सका। इस समय गढ़ राजकुमार मेदनीशाह दिल्ली गए, जहाँ उनका भव्य स्वागत किया गया।

औरंगजेब का षड्यंत्र

औरंगजेब के काल में गढ़वाल-मुगल संबंध और तनावपूर्ण हो गए। औरंगजेब ने पृथ्वीपतशाह को पत्र लिखकर भगोड़े राजकुमार सुलेमान शिकोह को दिल्ली को सौंपने का आदेश दिया। पृथ्वीपतशाह ने इस चेतावनी को नज़रअंदाज़ कर दिया। परिणामस्वरूप, मुगलों ने गढ़वाल पर कई आक्रमण किए, लेकिन हर बार गढ़वाल की सेना ने उन्हें भारी क्षति पहुँचाई।

जब सैन्य हमले असफल रहे, तो औरंगजेब ने कूटनीति का सहारा लिया। उसने जयसिंह के माध्यम से गढ़वाल दरबार के अधिकारियों को प्रलोभन दिया और राजकुमार सुलेमान को विष देकर मरवाने का प्रयास किया। जब यह भी विफल हुआ, तो उसने पृथ्वीपतशाह के पुत्र मेदनीशाह को अपने पिता के विरुद्ध षड्यंत्र में शामिल कर लिया।

पृथ्वीपतशाह की अंतिम चुनौती

पृथ्वीपतशाह ने अपने गद्दार सरदार का सरकलम कर दिया, जिससे दरबार के अन्य सरदार भयभीत हो गए। इस बीच, मेदनीशाह ने विद्रोह कर दिया। राजकुमार सुलेमान भाग निकला, लेकिन सीमावर्ती ग्रामीणों ने उसे पकड़कर मेदनीशाह को सौंप दिया। 1662 ई. में सुलेमान शिकोह की दिल्ली में मृत्यु हो गई। औरंगजेब के पृथ्वीपतशाह को लिखे पत्रों और 'मुगल फरमान' नामक पुस्तक में भी इस घटना का उल्लेख मिलता है।

पृथ्वीपतशाह का उत्तराधिकार

1665 ई. में पृथ्वीपतशाह की मृत्यु के बाद उनके पौत्र फतेशाह को गद्दी पर बैठाया गया। इस प्रकार, मेदनीशाह को राजा बनने का अवसर नहीं मिला।

निष्कर्ष

गढ़वाल के इतिहास में पृथ्वीपतशाह और रानी कर्णावती का शासनकाल वीरता, त्याग और रणनीतिक बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। उनकी नीतियों ने न केवल गढ़वाल को सशक्त बनाया, बल्कि मुगलों के सामने एक अजेय गढ़ के रूप में स्थापित किया।


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