फूल देई मनाने की विधि | Phool Dei Festival 2025

फूल देई मनाने की विधि | Phool Dei Festival 2025

फूल देई उत्तराखंड का एक प्रसिद्ध लोक पर्व है, जिसे विशेष रूप से कुमाऊं क्षेत्र में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व खासतौर पर बच्चों के लिए होता है, जो इस दिन घर-घर जाकर फूलों की माला डालते हैं और लोकगीत गाते हैं। फूल देई न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है, बल्कि यह क्षेत्र की समृद्धि और शुभता की कामना का प्रतीक भी है।

फूल देई मनाने की विधि

फूल देई के दिन, छोटे-छोटे बच्चे सबसे पहले वन से ताजे फूल तोड़कर लाते हैं, जिनमें विशेष रूप से प्योंली और बुरांस के फूल शामिल होते हैं। ये फूल बच्चों द्वारा घरों के दरवाजों पर चढ़ाए जाते हैं। घरों में गृहणियां सुबह-सुबह उठकर साफ-सफाई करती हैं और चौखट को ताजे गोबर और मिट्टी से लीपकर शुद्ध करती हैं।

सुप्रभात गीत:

बच्चे जब घर-घर जाते हैं, तो वे अपनी थाली में फूल और चावल रखकर फूल देई के गीत गाते हैं। उनका प्रिय गीत है:

"फूलदेई छम्मा देई,
दैणी द्वार भर भकार,
यो देली सो बारम्बार।।
फूलदेई छम्मा देई,
जातुके देला, उतुके सई।।"

इस गीत के माध्यम से बच्चे घरों में शुभता की कामना करते हैं और बदले में चावल, गुड़ और पैसे प्राप्त करते हैं। गृहणियां उनकी थालियों में गुड़ और पैसे डालकर उन्हें आशीर्वाद देती हैं।

पकवानों की विशेषता

फूल देई के दिन प्राप्त आशीर्वाद और भेंटों का उपयोग बच्चों के लिए विशेष पकवान बनाने में किया जाता है। प्राप्त चावलों को भिगोकर, गुड़ मिलाकर और पैसों से घी या तेल खरीदकर विभिन्न प्रकार के पकवान जैसे हलवा, छोई, शाइ और अन्य स्थानीय व्यंजन तैयार किए जाते हैं।
भोटान्तिक क्षेत्रों में, चावल की पिठ्ठी और गुड़ से साया नामक विशेष पकवान बनता है, जो इस दिन की विशेषता है।

विभिन्न क्षेत्रों में फूल देई

उत्तराखंड के विभिन्न क्षेत्रों में फूल देई का पर्व अलग-अलग तरीके से मनाया जाता है।

  • केदार घाटी में यह पर्व चैत्र संक्रांति से लेकर चैत्र अष्टमी तक मनाया जाता है। इस दौरान बच्चे ताजे फूलों से देहरी सजाते हैं और "जय घोघा माता, प्यूली फूल, जय पैंया पात!" का उच्चारण करते हैं।
  • गढ़वाल मंडल में यह पर्व पूरे चैत्र माह भर मनाया जाता है। बच्चे इस दौरान विभिन्न फूलों की कंडियों में फूल भरकर पानी के छींटे डालते हैं और उन्हें खुले स्थानों पर रखते हैं। अगले दिन वे प्योली के पीताम्भ फूलों के लिए कंडियों में फूल लेकर बाहर जाते हैं और गाते हैं:
    "ओ फुलारी घौर।
    झै माता का भौंर।
    क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर।।"

फूल देई का अंतिम दिन और घोघा माता की पूजा

फूल देई के इस लंबे पर्व का समापन बैसाखी के दिन होता है, जब बच्चे फूलों को एकत्र करके एक डोली बनाते हैं और उसकी पूजा करते हैं। इस दिन हर घर से विभिन्न पकवानों (जैसे स्यावंले या पकोड़े) का भोग लगाकर डोली को सजाया जाता है। डोली को एक स्थान पर विसर्जित किया जाता है।
उत्तराखंड के कुछ हिस्सों में इसे फुलारी त्योहार के नाम से भी जाना जाता है। अंतिम दिन, बच्चे घोघा माता की डोली सजाकर उसकी पूजा करते हैं और फूलों की देवी, घोघा माता को भोग अर्पित करते हैं। यह पूजा केवल बच्चे ही कर सकते हैं, और उन्हें इस दिन गुड़ और चावल मिलते हैं, जिनसे वे अपना भोग बनाते हैं।

घोघा माता को फूलों की देवी माना जाता है और उनका आशीर्वाद पूरे साल भर घर में सुख-समृद्धि लाता है। इस दिन को विशेष रूप से फुलारी कहा जाता है, और इसे बच्चों द्वारा मनाया जाता है।

फूल देई उत्तराखंड की लोकसंस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा है और यह समृद्धि, खुशी और प्यार का संदेश देता है।

फूल देई त्योहार के गीत | Phool Dei Festival Songs

फूल देई उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र का एक प्रसिद्ध पारंपरिक त्योहार है, जिसे विशेष रूप से बच्चों द्वारा मनाया जाता है। इस दिन, बच्चे घर-घर जाकर फूलों की माला डालते हैं और लोकगीत गाते हैं, साथ ही परिवारों को शुभकामनाएं और आशीर्वाद भी देते हैं। फूल देई का यह उत्सव एकता और समृद्धि की प्रतीक है, जिसमें लोग अपने रिश्तों को प्रगाढ़ करते हैं और जीवन में खुशियाँ लाने की कामना करते हैं।

कुमाऊनी में फूल देई के गीत:

"फूलदेई छम्मा देई,
दैणी द्वार भर भकार।
यो देली सो बारम्बार।।
फूलदेई छम्मा देई,
जातुके देला, उतुके सई।।"

यह गीत बच्चों के द्वारा गाया जाता है, जब वे घरों के दरवाजे पर फूल डालने जाते हैं। गीत के बोल में फूलों के आशीर्वाद की बात की जाती है, साथ ही यह भी कहा जाता है कि यह आशीर्वाद हमेशा बना रहे।

गढ़वाली में फूलारी के गीत:

"ओ फुलारी घौर।
झै माता का भौंर।
क्यौलिदिदी फुलकंडी गौर।
डंडी बिराली छौ निकोर।
चला छौरो फुल्लू को।
खांतड़ि मुतड़ी चुल्लू को।
हम छौरो की द्वार पटेली।
तुम घौरों की जिब कटेली।"

यह गीत गढ़वाली भाषा में गाया जाता है, जिसमें फूलारी और विभिन्न प्रकार के फूलों का जिक्र किया जाता है। यह गीत विशेष रूप से गढ़वाल क्षेत्र में प्रसिद्ध है, जिसमें महिलाएँ और बच्चे फूलों की माला और ताज पहनाकर घर-घर जाते हैं।

फूल देई का त्योहार न केवल उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का एक तरीका है, बल्कि यह बच्चों को लोकगीतों और परंपराओं से जोड़ने का भी एक सुंदर अवसर है। इस दिन की खुशियाँ, हर घर में उमंग और ताजगी लाती हैं, और समाज में समृद्धि और सुख-शांति का संचार होता है।

फूल देई की यह पारंपरिक कविता और गीत उत्तराखंड की लोकसंस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं और इस पर्व को और भी खास बनाते हैं।

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