उत्तराखंड की विरासत: पिछोड़ा और नथ - Heritage of Uttarakhand: Pichora and Nath

उत्तराखंड की विरासत: पिछोड़ा और नथ

उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में महिलाओं के मांगलिक परिधान और आभूषणों में प्रमुख स्थान रखने वाले पिछोड़ा और नथ का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अत्यधिक है। जब भी परिवार में कोई उत्सव, संस्कार, या मांगलिक कार्य होते हैं, इन दोनों परिधानों का प्रयोग खासतौर से वैवाहिक महिलाओं द्वारा किया जाता है।

1. नथ (Nath) या नथुली:

नथ एक शादीशुदा महिला के शुहाग का प्रतीक मानी जाती है। यह न केवल एक आभूषण के रूप में, बल्कि एक सांस्कृतिक और धार्मिक प्रतीक के रूप में भी महत्वपूर्ण है।
🙏🌹 नथ का इतिहास और महत्व 🌹🙏
भारत में नथ का प्रयोग प्राचीन काल से होता आया है, जिसका प्रमाण लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। हालांकि, पर्वतीय क्षेत्रों में यह पिछले दो सौ सालों से अत्यधिक लोकप्रिय हो चुकी है। नथ को खास अवसरों पर महिलाओं का अनिवार्य अलंकरण माना जाता है।
आयुर्वेद के अनुसार, नथ को महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी माना गया है। इतिहासकारों के अनुसार, टिहरी रियासत के राजपरिवार की महिलाओं द्वारा रत्नजड़ित नक्काशी वाली नथ का प्रयोग पूरे पर्वतीय समाज में एक शौभाग्यसूचक आभूषण के रूप में लोकप्रिय हुआ।
समय के साथ नथ का आकार और वजन समाज में आर्थिक हैसियत का प्रतीक बन चुका है। कुछ परिवारों में परंपरा थी कि जैसे-जैसे परिवार समृद्ध होता जाता, नथ का आकार और वजन बढ़ा दिया जाता था। सामान्य तौर पर एक नथ का वजन 100 ग्राम होता था।

कैसे बनाई जाती है नथ:
अल्मोड़ा के परंपरागत स्वर्ण आभूषण निर्माता बताते हैं कि नथ में चंदक, किरकी, अठपहल दाना, लटकन, मोती, जालियां, दो धारिया, ईकार, चैन और पवर जैसे भाग होते हैं। सबसे पहले चंदक, लटकन और किरकियों का निर्माण किया जाता है, जिनमें आठ छोटे-छोटे रत्न जड़े होते हैं। चंदक के वजन से ही नथ का वजन संतुलित किया जाता है। इसके बाद सभी भागों को जोड़कर नथ को अंतिम रूप दिया जाता है।


2. पिछोड़ा या रंगवाली:

पिछोड़ा, जिसे कुमाऊं की शान माना जाता है, एक महत्वपूर्ण पारंपरिक परिधान है। यह खासतौर पर विवाह, नामकरण, व्रत, त्योहार और धार्मिक कार्यों में महिलाएं पहनती हैं।
🙏🌹 पिछोड़े का महत्व 🌹🙏
पिछोड़ा कुमाऊं की संस्कृति का अभिन्न अंग है और इसे मुख्य रूप से सुहागिन महिलाओं के सुहाग का प्रतीक माना जाता है। यह विशेष रूप से शादी समारोह में उपहार के रूप में दिया जाता है। पिछोड़ा आमतौर पर गहरे पीले और सुर्ख लाल रंग से सुसज्जित होता है, जो सुनहरे गोटे की किनारी से सजे होते हैं। यह स्वस्तिक, ॐ और शंख के आकार से सुसज्जित होता है, जो इसे शुभ मानते हैं।
पिछोड़े के रंगों का धार्मिक महत्व है:

  • लाल रंग: वैवाहिक जीवन की संयुक्तता और अच्छे स्वास्थ्य का प्रतीक है।
  • पीला और सुनहरा रंग: संसार के दर्शन को दर्शाता है।
  • स्वस्तिक, शंख, घंटा और सूर्य: ये सभी शुभ संकेत को दर्शाते हैं।

पिछोड़ा पहले घर पर मलमल या सूती कपड़े पर तैयार किया जाता था, लेकिन अब इसे बाजार से खरीदा जा सकता है।
पहले समय में इसे केवल दुल्हन को ही पहनाया जाता था, ताकि वह सबसे सुंदर और अलग नजर आए। आजकल सभी महिलाएं इसे शुभ कार्यों में पहनती हैं, और यह एक अनिवार्य परिधान बन चुका है।

पिछोड़े में बने प्रतीक:
पिछोड़े के केंद्र में एक स्वस्तिक और चारों चतुर्थांश में स्वस्तिक, शंख, सूर्य और बेल के साथ ॐ और देवी के प्रतीक बनाए जाते हैं।

  • स्वस्तिक: समृद्धि का प्रतीक, और सूर्य की पूजा का संकेत।
  • शंख: पूजा के समय यह ध्वनि के माध्यम से बुराई को दूर करता है।
  • बेल: पूजा में उपयोग किया जाता है और यह शुभता का प्रतीक है।

समापन:

उत्तराखंड की पारंपरिक विरासत में पिछोड़ा और नथ जैसे आभूषणों का महत्व सदियों से बना हुआ है। यह न केवल महिलाओं के सौंदर्य को बढ़ाते हैं, बल्कि इनका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी अत्यधिक है। इन परिधानों के माध्यम से हम उत्तराखंड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित रखते हैं।

आपसे अनुरोध है:
हमने यह जानकारी विभिन्न स्रोतों से जुटाई है। यदि इस लेख में कोई त्रुटि हो, तो कृपया हमें बताएं। हमें आपके सुझावों का स्वागत है। 🌹🙏

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