श्री गंगा चालीसा | Shri Ganga Chalisa in Hindi with Vidhi

श्री गंगा चालीसा | Shri Ganga Chalisa in Hindi 

लेखक: जयदेवभूमि टीम | www.jaidevbhumi.com


🔱 श्री गंगा चालीसा पाठ की विधि (Shri Ganga Chalisa Paath Vidhi)

"श्री गंगा चालीसा" का पाठ करने से समस्त पापों का नाश होता है, पुण्य की प्राप्ति होती है और मोक्ष मार्ग सुलभ होता है। नीचे गंगा चालीसा पाठ की विधि दी गई है:

✅ पाठ की विधि:

  1. शुभ मुहूर्त: प्रातःकाल या संध्या समय उपयुक्त माना जाता है। सोमवार, पूर्णिमा, गंगा दशहरा, कार्तिक स्नान के दिन विशेष फलदायी होते हैं।

  2. स्थान चयन: स्वच्छ एवं शांत स्थान पर आसन लगाकर बैठें।

  3. गंगा माता की मूर्ति/चित्र के समक्ष दीपक जलाएं।

  4. स्नान एवं शुद्धि: पहले स्नान करें, फिर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।

  5. कलश पूजन: गंगाजल से भरे कलश की पूजा करें।

  6. श्री गंगा चालीसा का पाठ करें: श्रद्धा व भक्ति भाव से पाठ करें।

  7. आरती करें और प्रसाद बाँटें।

  8. ध्यान रखें: पाठ के समय मन को शांत रखें, पूरी एकाग्रता से पाठ करें।


🌺 श्री गंगा चालीसा (Shri Ganga Chalisa) 🌺

॥ दोहा ॥

जय जय जय जग पावनी जयति देवसरि गंग ।
जय शिव जटा निवासिनी अनुपम तुंग तरंग ॥

॥ चौपाई ॥

जय जग जननि हरण अघ खानी, आनन्द करनि गंग महारानी ।
जय भागीरथ सुरसरि माता, कलिमल मूल दलनि विख्याता ।

जय जय जय हनु सुता अघ हननी, भीषम की माता जग जननी ।
धवल कमल दल मम तनु साजे, लखि शत शरद चन्द्र छवि लाजे ।

वाहन मकर विमल शुचि सोहै, अमिय कलश कर लखि मन मोहै ।
जड़ित रत्न कंचन आभूषण, हिय मणि हार, हरणितम दूषण ।

जग पावनि त्रय ताप नसावनि, तरल तरंग तंग मन भावनि ।
जो गणपति अति पूज्य प्रधाना, तिहुँ ते प्रथम गंग अस्नाना ।

ब्रह्म कमण्डल वासिनि देवी, श्री प्रभु पद पंकज सुख सेवी ।
साठि सहत्र सगर सुत तारयो, गंगा सागर तीरथ धारयो ।

अगम तरंग उठयो मन भावन, लखि तीरथ हरिद्वार सुहावन ।
तीरथ राज प्रयाग अक्षैवट, धरयौ मातु पुनि काशी करवट ।

धनि धनि सुरसरि स्वर्ग की सीढ़ी, तारणि अमित पितृ पद पीढ़ी ।
भागीरथ तप कियो अपारा, दियो ब्रह्म तब सुरसरि धारा ।

जब जग जननी चल्यो हहराई, शंभु जटा महँ रह्यो समाई ।
वर्ष पर्यन्त गंग महारानी, रहीं शंभु के जटा भुलानी ।

मुनि भागीरथ शंभुहिं ध्यायो, तब इक बून्द जटा से पायो ।
ताते मातु भई त्रय धारा, मृत्यु लोक, नभ अरु पातारा ।

गई पाताल प्रभावति नामा, मन्दाकिनी गई गगन ललामा ।
मृत्यु लोक जाह्नवी सुहावनि, कलिमल हरणि अगम जग पावनि ।

धनि मइया तव महिमा भारी, धर्म धुरि कलि कलुष कुठारी ।
मातु प्रभावति धनि मन्दाकिनी, धनि सुरसरित सकल भयनासिनी ।

पान करत निर्मल गंगा जल, पावत मन इच्छित अनन्त फल ।
पूरब जन्म पुण्य जब जागत, तबहिं ध्यान गंगा महं लागत ।

जई पगु सुरसरि हेतु उठावहि, तइ जगि अश्वमेध फल पावहि ।
महा पतित जिन काहु न तारे, तिन तारे इक नाम तिहारे ।

शत योजनहू से जो ध्यावहिं, निश्चय विष्णु लोक पद पावहिं ।
नाम भजत अगणित अघ नाशै, विमल ज्ञान बल बुद्धि प्रकाशै ।

जिमि धन मूल धर्म अरु दाना, धर्म मूल गंगाजल पाना ।
तव गुण गुणन करत दुख भाजत, गृह गृह सम्पति सुमति विराजत ।

गंगहि नेम सहित नित ध्यावत, दुर्जनहूँ सज्जन पद पावत ।
बुद्धिहीन विद्या बल पावै, रोगी रोग मुक्त है जावे ।

गंगा गंगा जो नर कहहीं, भूखे नंगे कबहुँ न रहहीं ।
निकसत ही मुख गंगा माई, श्रवण दाबि यम चलहिं पराई ।

महाँ अधिन अधमन कहँ तारें, भए नर्क के बन्द किवारे ।
जो नर जपै गंग शत नामा, सकल सिद्ध पूरण है कामा ।

सब सुख भोग परम पद पावहिं, आवागमन रहित है जावहिं ।
धनि मइया सुरसरि सुखदैनी, धनि धनि तीरथ राज त्रिवेणी ।

ककरा ग्राम ऋषि दुर्वासा, सुन्दरदास गंगा कर दासा ।
जो यह पढ़े गंगा चालीसा, मिलै भक्ति अविरल वागीसा ।


॥ समापन दोहा ॥

नित नव सुख सम्पति लहैं, धेरै, गंग का ध्यान ।
अन्त समय सुरपुर बसै, सादर बैठि विमान ॥

सम्वत् भुज नभ दिशि, राम जन्म दिन चैत्र ।
पूरण चालीसा कियो, हरि भक्तन हित नैत्र ॥


🌼 श्री गंगा चालीसा का महत्व

  • श्री गंगा चालीसा पाठ से समस्त पापों का क्षय होता है।

  • गंगाजल का सेवन और स्मरण रोग नाशक, बुद्धिवर्धक और मोक्षदायक है।

  • मृत्यु के समय "गंगा" नाम का स्मरण आत्मा को परम गति देता है।

  • गंगा माता का स्मरण कलियुग में अत्यंत फलदायक माना गया है।


📜 निष्कर्ष (Conclusion)

गंगा माता केवल एक नदी नहीं बल्कि संपूर्ण भारतीय संस्कृति की आत्मा हैं। उनका जल केवल शरीर नहीं, आत्मा को भी शुद्ध करता है। श्री गंगा चालीसा का नियमित पाठ आपके जीवन में पुण्य, शांति और आध्यात्मिक उन्नति लाता है।

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