bharat uttarakhand rudraprayag (sab kuchh) (भारत उत्तराखंड रुद्रप्रयाग (सब कुछ))

 भारत उत्तराखंड रुद्रप्रयाग (सब कुछ)  India Uttarakhand Rudraprayag (Everything) 

रुद्रप्रयाग Rudraprayag

जनपद - रुद्रप्रयाग

➣ मान्यतानुसार भगवान शंकर द्वारा महर्षि नारद को यहीं संगीत शिक्षा दी थी।

➣ रुद्र हिमालय का प्रवेश द्वार कहलाता है।

➣ पुराना नाम पुनाड़ था।

➣ 30 सितम्बर, 1989 को तहसील बनी।

➣ 16 सितम्बर, 1997 को जनपद बना।

➣ 12 जनवरी, 1921 को ककोड़ाखाल में बेगार प्रथा विरोधी आन्दोलन जिसका नेतृत्व अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने किया।

➣ कोड़ाखाल के सफल आन्दोलन के चलते डिप्टी कमिश्नर पी0 मेसन ने दशजूला पट्टी की सभी सरकारी सेवा बन्द करवा दी।

➣ एकमात्र प्रयाग है जो शिव से सम्बन्धित है।


मुख्यालय- रुद्रप्रयाग

स्थापना वर्ष - 1997

पड़ोसी जिले/देश/राज्य
पूर्व में-चमोली
पश्चिम में-टिहरी
उत्तर में-उत्तरकाशी
दक्षिण में-पौड़ी

क्षेत्रफल- 1984 वर्ग किमी
जनसंख्या- 242285 (2.40%)
पुरुष-114589
ग्रामीण-223288
महिला- 127696
शहरी-18997
जनघनत्व-122

साक्षरता-81.3%
पुरुष-93.9%
महिला-70.04%

लिंगानुपात- 1114
शिशु लिंगानुपात-905
विधानसभा सीटें- 02
तहसीलें- रुद्रप्रयाग, ऊखीमठ, बसुकेदार, जखोली
विकासखण्ड- ऊखीमठ, जखोली, अगस्तमुनि

जिले में पाण्डव नृत्य एवं बगड़वाल नृत्य प्रसिद्ध है।
ज़िले की प्रमुख नदियां
मंदाकिनी-चौराबाड़ी ताल (चौखम्बा ग्लेशियर) से निकलती है। गांधी जी की अस्थियां विसर्जित की गई अतः गांधी सरोवर कहते है।

इसकी सहायक नदियां निम्नानुसार है-
दूध (क्षीर) गंगा- बासुकी ताल निकलकर केदारनाथ में मंदाकिनी में मिलती है।

मधु गंगा- परशुराम गुफा से निकलकर केदारनाथ में मंदाकिनी में मिलती है।

लस्तर नदी- पंवाली कांठा त्रिजुगीनारायण के पीछे से निकलकर सुमाड़ी में मंदाकिनी में मिलती है। इसे सूर्य प्रयाग भी कहते है।

तोशी नदी- सोन प्रयाग में सोन एवं मंदाकिनी में शामिल होती है। तीन नदियों के संगम के कारण ही इस संगम को त्रिविक्रमा कहते है।

सोन नदी- इसे वासुकी नदी भी कहते है, वासुकी ताल से निकलती है। इसके मन्दाकिनी संगम को सोनप्रयाग कहा जाता है।

रुच्छ गंगा- चिलौण्ड नामक स्थान से निकलकर कालीमठ के नजदीक सरस्वती में मिलती है।

राक्षी नदी- मक्कूमठ के ऊपर राक्षी जंगल से निकलकर आकाशकामिनी नदी में शामिल ।

आकाशकामिनी नदी- तुंगनाथ क्षेत्र से निकलकर सिलगोठ में राक्षी में शामिल।

कुसुम गंगा- कुशा (घास) से निकलने के कारण नामकरण, भीरी में मंदाकिनी में शामिल होती है।

रावण गंगा- तुलंगा के ऊपर निकलकर बांसवाड़ा में मंदाकिनी में शामिल होती है।

लण गाड़- घंगासू बांगर से निकलकर बांसवाड़ा में मंदाकिनी में शामिल।

हिलाऊं नदी- धनकुराली से निकलकर पैंय्याताल में लस्तर में शामिल।

क्यूंजागाड़- चार धाराओं में निकलती है। चन्द्रापुरी में मंदाकिनी में शामिल।

प्रमुख तीर्थ

केदारनाथ-
➣ शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
➣ चार धामों में से तीसरा धाम है।
➣ सस्कृत में केदार शब्द का अर्थ होता है, सेम या दलदली भूमि अथवा धान की रोपाई वाला खेत।
➣ उत्तराखण्ड का केदारखण्ड भाग ऊंची पर्वत श्रेणियों में हिमालय की गोद में फैला हुआ, स्कन्दपुराण में उल्लिखित है।
➣ केदारखण्ड नाम का सर्वप्रथम उल्लेख अशोकचल्ल के गोपेश्वर लेख में 1193 में मिलता है।
➣ केदारनाथ मंदिर के निकट भृगुपंथ शिखर है जिसे भृगुतुंग/महापंथ नाम से भी जाना जाता है।
➣ शंकराचार्य की समाधि स्थापित है।
➣ मंदाकिनी नदी के बायें तट पर स्थित है।
➣ नागर शैली में निर्मित है।
➣ मंदिर के पीछे अमृत कुण्ड, इवान कोण(ईशानेश्वर महादेव मंदिर), शंकराचार्य - समाधि मंदिर और भीमशिला है।
➣ पूर्व दिशा में भैरव शिला मंदिर है।
➣ इसके सम्मुख अन्नपूर्णा मंदिर दर्शनीय है।
➣ इसके निकट उदक कुण्ड, शिव कुण्ड, गौरी कुण्ड, रूधिर कुण्ड, हंस कुण्ड है।
➣ इसका शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर है।
➣ यहां श्रावण मास में अन्नकूट या भतूज मेले का आयोजन होता है।

मध्य महेश्वर(मद्महेश्वर)-
➣ चौखम्बा की गोद में समुद्रतट से 9700फीट की ऊंचाई पर स्थित। माना जाता है कि यह शिव की नाभि का मंदिर है।
➣ यह ऊखीमठ से 30 किमी की दूरी पर स्थित है।
➣ यहां मंदिर के निकट ही हिंवाली देवी मंदिर, क्षेत्रपाल मंदिर, बूढ़ा मध्यमहेश्वर मंदिर स्थित है।
➣ इसका शीतकालीन पूजा स्थल भी ऊखीमठ ओंकारेश्वर में है, स्थानीय लोग इसे मयो कहते है।

तुंगनाथ-
➣ पंचकेदारों में तृतीय केदार माना जाता है।
➣ यहां शिव के हाथों की पूजा होती है।
➣ तुंगनाथ पहाड़ी से तीन धारायें निकलती है जिनसे अक्षकामिनी नदी बनती है।
➣ मक्कानाथ गांव के स्थानीय ब्राह्मण मैथाणी पुजारी है।
➣ तारा पर्वत पर स्थित है।
➣ यहां अन्य मंदिरों में भूतनी देवी एवं भैरोनाथ मंदिर (बुद्ध प्रतिमा) है।
➣ मंदिर के निकट प्रसिद्ध चन्द्रशिला पर्वत है।
➣ यहां निकट में ही रावण शिला भी है, मान्यता है कि रावण ने यहां शिव की तपस्या की थी।
➣ शीतकालीन पूजा स्थल मक्कूमठ या मार्कण्डेय मंदिर है।

ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ-
➣ इस मंदिर का निर्माण शंकराचार्य ने किया था।
➣ बाणासुर की पुत्री ऊषा एवं अनिरुद्ध का विवाह स्थल माना जाता है।
➣ केदारनाथ एवं मदमहेश्वर का शीतकालीन पूजा स्थल है।

कोटेश्वर महादेव-
➣ रुद्रप्रयाग संगम से 3 किमी. पूर्व में अलकनन्दा तट पर प्रसिद्ध कोटेश्वर तीर्थ है।
➣ इसमें एक सदानीरा गुफा के भीतर करोड़ों शिव लिंग है।

गुप्तकाशी-
➣ भगवान विश्वनाथ की नगरी गुप्तकाशी भगवान शिव की लीला-स्थली है।
➣ यहां नागर शैली में बना मंदिर है, जो वाराणसी विश्वनाथ एवं उत्तरकाशी विश्वनाथ के समान फलदायी माना जाता है।
➣ मंदिर के समीप ही अर्द्धनारीश्वर मंदिर भी है जो कत्यूरी शैली में बना है।
➣ विश्वनाथ मंदिर के सामने ही मणिकर्णिका का विशाल जलकुण्ड है।

मक्कूमठ-
➣ यहां स्थापित तुंगनाथ मंदिर पाण्डवकालीन माना जाता है।
➣ प्राचीन 1803 में आये भूकम्प के कारण ध्वस्त हो गया। इसका पुनर्निर्माण कत्यूरी शैली में किया गया।
➣ यहां मार्कण्डेय ऋषि ने तपस्या की थी।
➣ यह सबसे बड़ा मठ है।

बसुकेदार- यहां नागर शैली में बने 22 मंदिरों का समूह है।

फलेश्वर तुंगनाथ-
➣ फलासी गांव में चोपता बाजार के निकट भगवान तुंगनाथ एवं मां चण्डिका का मंदिर भी है।
➣ मां के मंदिर में प्रति 12 वर्ष में यात्रा होती है।

कैलाश महादेव-
➣ वासुकी ताल से निकलने वाली सोन गगा या वासुकी नदी तथा मंदाकिनी का संगम होता है

भीरी का भीमसेन मंदिर- भीरी में स्थित प्राचीन भीमसेन का मंदिर।

त्रियुगी नारायण मंदिर- ➣ यज्ञ पर्वत पर 7 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है।
➣ यह स्थल माता पार्वती एवं भगवान शिव का विवाह स्थल माना जाता है।

कार्तिकेय स्वामी- क्रांच पर्वत पर कनकचौंरी के निकट स्थित कार्तिकेय स्वामी मंदिर की स्थापना का श्रेय ग्राम चापड़ के श्री हिम्मत सिंह बुटोला को जाता है।

अगस्त्यमुनि- अगस्त्य मुनि की तपोभूमि, मंदाकिनी के मंदिर है।

जाख देवता मंदिर-
➣ जाख यानि यक्ष देवता का यह मंदिर, नारायणकोटी के निकट देवशाल में स्थित है।
➣ बैशाख को 2 गते मेले का आयोजन होता है।

रणजीत महाराज मंदिर- रायड़ी गांव में दक्षिण भारतीय शैली में बना मंदिर महर्षि रणजीत को समर्पित है।

पिल्लू कर्मजीत मंदिर- नागदेवता को समर्पित पिल्लु गाव में स्थित मंदिर, सांप के काटने को निष्क्रिय होने की मान्यता है।

वाणासुरगढ़ मंदिर- लमगौड़ी बामसू में स्थित बाणासुर की राजधानी के तौर पर उल्लिखित है।

कालीमठ- मां शक्ति के शक्तिपीठों में से एक, मां काली का रक्तवर्णी मंदिर है। माना जाता है कि इस मंदिर में शुम्भ-निशुम्भ एवं रक्तबीज की हत्या की थी। यहीं से मां धारी देवी की कहानी भी जुड़ी हुई है।

हरियाली देवी- जसौली गांव में यह मंदिर हरि पर्वत या हरियाली कांठा में स्थित है।

रच्छ महादेव- महाकवि की जन्मस्थली कविल्ठा ग्राम निकट स्थित यह मंदिर।
चन्द्रकल्याणी भगवती राकेश्वरी-
➣ मधुगंगा के तट पर रांसी गांव में है।
➣ प्रति 24 वर्ष मां राकेश्वरी की चल विग्रह उत्सव मूर्ति को मंदिर के गर्भ गृह से बाहर निकाला जाता है।

रणमनणी- रणमण्डना पर्वत पर स्थित, इसके निकट खाम बुग्याल स्थित है।

ललिता देवी-
➣ नाला ग्राम जिसे राजा नल की नगरी के नाम से जाना जाता है में नल-दमन्यती एवं ललिता देवी का प्रसिद्ध मंदिर है।
➣ यह मंदिर कत्यूरी काल से सम्बन्धित है जिन्हें रोहिला आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया था।

बौद्ध स्तूप नाला-➣ नाला ग्राम में ही यह बौद्ध स्तूप माना जाता है कि यह उत्तराखण्ड का प्रथम बौद्ध स्तूप है।आदि गुरू शंकराचार्य के क्षेत्र में आने से पूर्व ही इसका निर्माण हो गया था।

मठियाणा देवी- घेघड़खाल में तिलवाडा के निकट स्थित है।
➣ मठियाणा देवी का उग्र रूप सहजा देवी जो निकट ही सिरवाड़ी गांव में स्थित है।

सिर कटा गणेश मंदिर- सोनप्रयाग के निकट स्थित मंदिर, इसे मुण्डकटिया गणेश के नाम से जाना जाता है

अन्य मंदिर -
रुद्रनाथ, पद्मावती देवी(ग्राम धार), उफरैं देवी(ग्राम दरमोला), गौरा देवी, राजराजेश्वरी देवी, कुष्मांडा देवी(ग्राम कुमणी), नारी देवी मंदिर(सतेराखाल), दुणगैरा देवी(सिद्धचौड़), इन्द्रासनी देवी(कण्डाली गांव), कुर्मासनी देवी, विंध्य वासिनी देवी, चौरादेवी मंदिर, कालिंका देवी, अनिरूद्ध मंदिर, जमदग्नि मंदिर, साणेश्वर महादेव मंदिर(ग्राम सिल्ला), बाणासुर गढ़ मंदिर(लमगौड़ी वामसु), शाकम्बरी देवी मंदिर, जमदग्नेश्वर जामू मंदिर इत्यादि।

जिले के प्रमुख बुग्याल
1. खाम-मनणी बुग्याल
2. बूढा मदमहेश्वर बुग्याल
3. केदारनाथ बुग्याल
4. तुगनाथ बुग्याल
5. कसनी बुग्याल
6. बर्मी बुग्याल
7.चोपता बुग्याल- इसे गढ़वाल का स्विट्जरलैण्ड कहा जाता है।

जिले के प्रमुख तालें अथवा झीलें
1. नन्दीकुण्ड
2. वासुकी ताल
3. बधाणीताल (विविध रंगों की मछली हेतु प्रसिद्ध, बैसाखी को मेला आयोजित होता है।)

4. देवरिया ताल- 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह ताल ऊखीमठ से 7 किमी पूर्व में है। यह ताल उत्तराखण्ड की सबसे ऊंचाई पर स्थित है।

7. यमताल

5. चौराबाड़ी ताल (गांधी सरोवर)-
➣ सुमेरू पर्वत की गोदी में स्थित गई थी, इसे शरावदी ताल भी कहते है।
➣ यहां से मंदाकिनी नदी का उद्गम होता है।

6. पैंयाताल
8. देवताल
9. सिद्धताल
10. बनियाकुण्ड
11. बिसरीताल

जिले के प्रमुख मेले
1. तोष या नागेश्वर मेला
2. मठियाणा मेला
3. वासुदेव का मेला
4. सैजा कौथिग
5. कालीकाठ मेला
6. मनणा माई की जात
8. मैखण्डा मेला
9. पांगरी थल्ल मेला
7. जाख मेला
10. वामसू मेला
11. रच्छ महादेव मेला
12.सिल्ला शाणेश्वर मेला
13. फेग बनियात मेला
14. रणजीत मेला
15. गैंडा मेला
16. कुमासैण मेला
17.दूणगैरा मेला
18. हरियाली देवी मेला

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