जनपद रुद्रप्रयाग पीडीएफ - District Rudraprayag PDF

जनपद - रुद्रप्रयाग

  1. मान्यतानुसार भगवान शंकर द्वारा महर्षि नारद को यहीं संगीत शिक्षा दी थी।
  2. रुद्र हिमालय का प्रवेश द्वार कहलाता है।
  3. पुराना नाम पुनाड़ था।
  4. 30 सितम्बर, 1989 को तहसील बनी।
  5. 16 सितम्बर, 1997 को जनपद बना।
  6. 12 जनवरी, 1921 को ककोड़ाखाल में बेगार प्रथा विरोधी आन्दोलन जिसका नेतृत्व अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने किया।
  7. कोड़ाखाल के सफल आन्दोलन के चलते डिप्टी कमिश्नर पी0 मेसन ने दशजूला पट्टी की सभी सरकारी सेवा बन्द करवा दी।
  8. एकमात्र प्रयाग है जो शिव से सम्बन्धित है।
  9. मुख्यालय- रुद्रप्रयाग
  10. स्थापना वर्ष - 1997
  11. पड़ोसी जिले/देश/राज्य
  12. पूर्व में-चमोली
  13. पश्चिम में-टिहरी
  14. उत्तर में-उत्तरकाशी
  15. दक्षिण में-पौड़ी
  16. क्षेत्रफल- 1984 वर्ग किमी
  17. जनसंख्या- 242285 (2.40%)
  18. पुरुष-114589
  19. ग्रामीण-223288
  20. महिला- 127696
  21. शहरी-18997
  22. जनघनत्व-122
  23. साक्षरता-81.3%
  24. पुरुष-93.9%
  25. महिला-70.04%
  26. लिंगानुपात- 1114
  27. शिशु लिंगानुपात-905

विधानसभा सीटें- 02

  1. केदारनाथ एवं 
  2. रुद्रप्रयाग

तहसीलें- 

  1. रुद्रप्रयाग
  2. ऊखीमठ
  3. बसुकेदार
  4. जखोली

विकासखण्ड- 

  1. ऊखीमठ
  2. जखोली
  3. अगस्तमुनि

रुद्रप्रयाग में पाण्डव नृत्य और बगड़वाल नृत्य

रुद्रप्रयाग क्षेत्र में "पाण्डव नृत्य" और "बगड़वाल नृत्य" विशेष रूप से प्रसिद्ध हैं। ये नृत्य शैली यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर को प्रदर्शित करती है और धार्मिक तथा सामाजिक उत्सवों का एक अभिन्न अंग हैं।

  • पाण्डव नृत्य: महाभारत की कथाओं और पाण्डवों के जीवन पर आधारित नृत्य है, जो स्थानीय लोककथाओं और संगीत के साथ प्रस्तुत किया जाता है।
  • बगड़वाल नृत्य: यह पारंपरिक गढ़वाली नृत्य है जो त्योहारों और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है।

रुद्रप्रयाग ज़िले की प्रमुख नदियाँ और उनकी जानकारी

रुद्रप्रयाग ज़िला उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र का एक प्रमुख धार्मिक और सांस्कृतिक स्थल है, जहाँ कई नदियाँ और उनकी सहायक धाराएँ मिलकर यहाँ की प्राकृतिक सुंदरता को बढ़ाती हैं। इस क्षेत्र की नदियाँ न केवल धार्मिक महत्व रखती हैं, बल्कि यहाँ की सांस्कृतिक धरोहर और परंपराओं में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आइए जानते हैं रुद्रप्रयाग ज़िले की प्रमुख नदियों के बारे में विस्तार से:

1. मंदाकिनी नदी

  • स्रोत: मंदाकिनी नदी का उद्गम चौराबाड़ी ताल (चौखम्बा ग्लेशियर) से होता है। इसे "गांधी सरोवर" भी कहा जाता है, क्योंकि यहाँ महात्मा गांधी की अस्थियाँ विसर्जित की गई थीं।
  • महत्व: मंदाकिनी नदी का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, क्योंकि यह केदारनाथ धाम से होकर बहती है, जो चारधामों में से एक है।

2. दूध (क्षीर) गंगा

  • स्रोत: यह बासुकी ताल से निकलती है।
  • संगम: केदारनाथ में मंदाकिनी नदी में मिलती है।

3. मधु गंगा

  • स्रोत: मधु गंगा परशुराम गुफा से निकलती है।
  • संगम: केदारनाथ में मंदाकिनी नदी में मिल जाती है।

4. लस्तर नदी

  • स्रोत: यह पंवाली कांठा और त्रिजुगीनारायण के पीछे से निकलती है।
  • संगम: सुमाड़ी में मंदाकिनी नदी में मिलती है।
  • विशेष जानकारी: इस संगम स्थल को "सूर्य प्रयाग" भी कहा जाता है।

5. तोशी नदी

  • संगम: सोनप्रयाग में सोन नदी के साथ मिलकर मंदाकिनी में शामिल होती है। तीन नदियों के इस संगम को "त्रिविक्रमा" भी कहा जाता है।

6. सोन नदी (वासुकी नदी)

  • स्रोत: वासुकी ताल से निकलती है।
  • संगम: सोनप्रयाग में मंदाकिनी नदी से मिलती है।

7. रुच्छ गंगा

  • स्रोत: चिलौण्ड नामक स्थान से निकलती है।
  • संगम: कालीमठ के नजदीक सरस्वती नदी में मिलती है।

8. राक्षी नदी

  • स्रोत: मक्कूमठ के ऊपर स्थित राक्षी जंगल से निकलती है।
  • संगम: आकाशकामिनी नदी में शामिल होती है।

9. आकाशकामिनी नदी

  • स्रोत: तुंगनाथ क्षेत्र से निकलती है।
  • संगम: सिलगोठ में राक्षी नदी में मिलती है।

10. कुसुम गंगा

  • विशेषता: इस नदी का नाम "कुशा" घास के कारण पड़ा है, जो इसके उद्गम क्षेत्र में पाई जाती है।
  • संगम: भीरी में मंदाकिनी नदी में शामिल होती है।

11. रावण गंगा

  • स्रोत: तुलंगा के ऊपर से निकलती है।
  • संगम: बांसवाड़ा में मंदाकिनी में मिलती है।

12. लण गाड़

  • स्रोत: घंगासू बांगर क्षेत्र से निकलती है।
  • संगम: बांसवाड़ा में मंदाकिनी में शामिल होती है।

13. हिलाऊं नदी

  • स्रोत: धनकुराली से निकलती है।
  • संगम: पैंय्याताल में लस्तर नदी में शामिल होती है।

14. क्यूंजागाड़

  • विशेषता: यह नदी चार धाराओं से निकलती है।
  • संगम: चन्द्रापुरी में मंदाकिनी में मिलती है।

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प्रमुख तीर्थ

केदारनाथ

  • केदारनाथ भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है और चार धामों में तीसरे स्थान पर आता है।
  • 'केदार' का संस्कृत में अर्थ 'सेम', 'दलदली भूमि' या 'धान की खेती वाला क्षेत्र' है।
  • यह स्थल उत्तराखंड के केदारखंड में स्थित है, जिसका उल्लेख स्कन्दपुराण में मिलता है और इसका पहला ऐतिहासिक संदर्भ 1193 में अशोकचल्ल के गोपेश्वर लेख में पाया गया है।
  • मंदिर नागर शैली में निर्मित है और मंदाकिनी नदी के बाएं तट पर स्थित है।
  • यहां भृगुपंथ शिखर, शंकराचार्य की समाधि, अमृत कुण्ड, ईशानेश्वर महादेव मंदिर और भीमशिला के साथ अन्य स्थल दर्शनीय हैं।
  • इसके समीप स्थित अन्नपूर्णा मंदिर और भैरव शिला मंदिर धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।
  • केदारनाथ का शीतकालीन पूजा स्थल ऊखीमठ का ओंकारेश्वर मंदिर है, जहां अन्नकूट मेला आयोजित होता है।

मध्य महेश्वर (मद्महेश्वर)

  • समुद्र तल से 9700 फीट की ऊँचाई पर चौखम्बा की गोद में स्थित है। इसे भगवान शिव की नाभि का मंदिर माना जाता है।
  • यह ऊखीमठ से 30 किलोमीटर दूर है, और इसके निकट हिंवाली देवी, क्षेत्रपाल और बूढ़ा मध्यमहेश्वर के मंदिर भी स्थित हैं।
  • शीतकाल में मद्महेश्वर की पूजा ऊखीमठ के ओंकारेश्वर मंदिर में होती है, जिसे स्थानीय लोग 'मयो' कहते हैं।

तुंगनाथ

  • यह पंचकेदारों में तीसरे स्थान पर आता है, जहां भगवान शिव के हाथों की पूजा होती है।
  • तुंगनाथ पहाड़ी से तीन धाराओं का उद्गम होता है, जो अक्षकामिनी नदी का निर्माण करती हैं।
  • तारा पर्वत पर स्थित इस मंदिर के निकट चन्द्रशिला पर्वत और रावण शिला जैसी स्थल भी दर्शनीय हैं।
  • शीतकालीन पूजा मक्कूमठ या मार्कण्डेय मंदिर में होती है।

ओंकारेश्वर मंदिर, ऊखीमठ

  • शंकराचार्य द्वारा निर्मित यह मंदिर बाणासुर की पुत्री ऊषा और अनिरुद्ध के विवाह स्थल के रूप में भी जाना जाता है।
  • केदारनाथ और मद्महेश्वर का शीतकालीन पूजा स्थल भी यहीं है।

कोटेश्वर महादेव

  • यह तीर्थ रुद्रप्रयाग से 3 किमी पूर्व अलकनंदा के तट पर स्थित है और गुफा के भीतर अनगिनत शिवलिंग पाए जाते हैं।

गुप्तकाशी

  • गुप्तकाशी शिव की लीला-स्थली के रूप में विख्यात है, जहां वाराणसी और उत्तरकाशी के विश्वनाथ मंदिर के समान महत्व वाला विश्वनाथ मंदिर है।
  • यहाँ अर्द्धनारीश्वर मंदिर भी है, जो कत्यूरी शैली में निर्मित है।

मक्कूमठ

  • पाण्डवकालीन इस मंदिर का पुनर्निर्माण 1803 के भूकंप के बाद कत्यूरी शैली में किया गया।
  • यहां मार्कण्डेय ऋषि ने तपस्या की थी।

त्रियुगी नारायण मंदिर

  • यज्ञ पर्वत पर 7 हजार फीट की ऊँचाई पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह स्थल के रूप में विख्यात है।

कार्तिकेय स्वामी

  • यह मंदिर कनकचौंरी के निकट क्रांच पर्वत पर स्थित है और इसे ग्राम चापड़ के हिम्मत सिंह बुटोला द्वारा स्थापित किया गया।

अगस्त्यमुनि

  • यह मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित है और अगस्त्य मुनि की तपोभूमि के रूप में जाना जाता है।

जाख देवता मंदिर

  • नारायणकोटी के निकट देवशाल में स्थित इस मंदिर में जाख यानि यक्ष देवता की पूजा होती है।

अन्य महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल

  • कालीमठ: यह मां शक्ति के शक्तिपीठों में से एक है और कहा जाता है कि यहां देवी काली ने शुम्भ-निशुम्भ का वध किया था।
  • हरियाली देवी: जसौली गांव में स्थित यह मंदिर हरियाली कांठा में स्थित है।
  • रच्छ महादेव: महाकवि की जन्मस्थली कविल्ठा गांव के निकट स्थित इस मंदिर का भी विशेष धार्मिक महत्व है।
  • ललिता देवी: नाला गांव में स्थित यह मंदिर राजा नल और दमयंती से जुड़ा हुआ है।

अन्य मंदिर -

रुद्रनाथ, पद्मावती देवी(ग्राम धार), उफरैं देवी(ग्राम दरमोला), गौरा देवी, राजराजेश्वरी देवी, कुष्मांडा देवी(ग्राम कुमणी), नारी देवी मंदिर(सतेराखाल), दुणगैरा देवी(सिद्धचौड़), इन्द्रासनी देवी(कण्डाली गांव), कुर्मासनी देवी, विंध्य वासिनी देवी, चौरादेवी मंदिर, कालिंका देवी, अनिरूद्ध मंदिर, जमदग्नि मंदिर, साणेश्वर महादेव मंदिर(ग्राम सिल्ला), बाणासुर गढ़ मंदिर(लमगौड़ी वामसु), शाकम्बरी देवी मंदिर, जमदग्नेश्वर जामू मंदिर इत्यादि।

यहाँ भी पढ़े

  1. उत्तराखंड का आधुनिक इतिहास
  2. उत्तराखण्ड के जन-आन्दोलन - बहुविकल्पीय प्रश्न
  3. उत्तराखंड का मध्यकालीन इतिहास
  4. उत्तराखण्ड का सामान्य परिचय
  5. पृथक राज्य के रूप में उत्तराखंड की स्थापना

भौगोलिकी

हिमालय दुनिया के नवीनतम पर्वतों में से एक है, जो प्रारंभिक मेसोज़ोइक काल या द्वितीयक भूगर्भीय अवधि के दौरान उभरे थे। यह क्षेत्र टेथिस समुद्र से घिरा हुआ था। हालांकि, हिमालय के उत्थान की सटीक तिथि निर्धारित करना अभी भी चुनौतीपूर्ण है। यहां की चट्टानों का सही डेटिंग करना कठिन है, क्योंकि ये प्राचीन क्रिस्टलीय और तलछटी चट्टानों के मिश्रण से मिलकर बनी हैं। अलकनंदा नदी जिले को गहराई तक काटती है, और इसका बहाव अपने सहायक नदियों की तुलना में कहीं अधिक विकसित है। इस क्षेत्र में कुछ हिस्सों में मध्य-प्लीस्टोसिन के बाद से भौगोलिक रूप से काफी उत्थान हुआ है।

जलवायु

जिले की जलवायु ऊँचाई के अनुसार भिन्न होती है, जो 800 मीटर से 8000 मीटर तक फैली हुई है। सर्दियों का मौसम नवंबर मध्य से मार्च तक रहता है। चूंकि यह क्षेत्र बाहरी हिमालय की दक्षिणी ढाल में स्थित है, मानसून की हवाएं आसानी से यहां पहुंच सकती हैं, जिससे जून से सितंबर के दौरान भारी वर्षा होती है।

वर्षा

जिले में 70-80% वर्षा दक्षिणी हिस्से में होती है, जबकि उत्तरी हिस्से में 55-65% तक सीमित होती है। मानसून का दौर मुख्य रूप से जून से सितंबर तक चलता है।

तापमान

सर्दियों में तापमान शून्य डिग्री सेल्सियस तक गिर सकता है, जबकि गर्मियों में यह 34 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है। ऊँचाई के अनुसार तापमान में भिन्नता आती है, और पश्चिमी विक्षोभ के कारण तापमान में गिरावट हो सकती है।

आर्द्रता

मानसून के दौरान आर्द्रता 70% से अधिक होती है, जबकि मानसून से पहले की अवधि में यह 35% तक गिर जाती है। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में सर्दियों के दौरान नमी बढ़ सकती है।

बादल

मानसून के महीनों में आसमान में भारी बादल रहते हैं, जबकि बाकी समय हल्के बादल दिखाई देते हैं।

खनिज

जिले में कई प्रकार के खनिज पाए जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • एस्बेस्टोस: इसका प्रयोग सीमेंट, ईंटों, और अन्य निर्माण सामग्री में किया जाता है।
  • मैग्नेस्टिक: औसत गुणवत्ता का होता है और क्रिस्टलीय डोलोमाइट के साथ जुड़ा हुआ है।
  • कॉपर (तांबा): हिंदू और गोरखा काल के दौरान तांबे की खानें प्रमुख थीं, लेकिन अब ये लुप्त हो चुकी हैं।
  • लोहा: हेमेटाइट और साइडेराइट जैसे लौह अयस्क यहां मिलते हैं, लेकिन इनका आर्थिक महत्व सीमित है।
  • ग्रेफाइट: पहले इसका उपयोग रंग के रूप में होता था, लेकिन अब इसे कम मात्रा में ही पाया जाता है।
  • जिप्सम: नदी किनारों पर पाया जाता है और इसे प्लास्टर ऑफ पेरिस के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।
  • लेड (सीसा): पहले इसकी अच्छी मात्रा में खनन होता था, लेकिन अब यह कम ही पाया जाता है।
  • निर्माण पत्थर: रेत का पत्थर और गनीस जैसी चट्टानें निर्माण कार्यों के लिए उपयोगी होती हैं।
 

जिले के प्रमुख बुग्याल (ऊँचाई वाले घास के मैदान)

  1. खाम-मनणी बुग्याल: सुंदर घास के मैदानों के साथ यह बुग्याल ट्रेकर्स के बीच लोकप्रिय है।
  2. बूढा मदमहेश्वर बुग्याल: यह बुग्याल मदमहेश्वर मंदिर के पास स्थित है और यहाँ से शानदार पहाड़ी दृश्य दिखाई देते हैं।
  3. केदारनाथ बुग्याल: केदारनाथ क्षेत्र में स्थित यह बुग्याल प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर है और धार्मिक यात्रियों के साथ-साथ प्रकृति प्रेमियों को भी आकर्षित करता है।
  4. तुंगनाथ बुग्याल: तुंगनाथ मंदिर के पास स्थित इस बुग्याल में ऊँचे घास के मैदान और हिमालयी वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
  5. कसनी बुग्याल: एक शांत और खूबसूरत घास का मैदान जो स्थानीय पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है।
  6. बर्मी बुग्याल: यह बुग्याल ऊँचाई वाले हरे-भरे मैदानों के लिए जाना जाता है और प्रकृति प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र है।
  7. चोपता बुग्याल: इसे "गढ़वाल का स्विट्जरलैंड" कहा जाता है। यह एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और तुंगनाथ की यात्रा का शुरुआती बिंदु है।

जिले की प्रमुख तालें (झीलें)

  1. नन्दीकुण्ड: यह झील पवित्र और धार्मिक महत्व रखती है और यहाँ आसपास की प्राकृतिक सुंदरता दर्शनीय है।
  2. वासुकी ताल: यह झील केदारनाथ मंदिर से आगे स्थित है और ट्रेकिंग के लिए एक लोकप्रिय गंतव्य है।
  3. बधाणीताल: यह ताल अपने विभिन्न रंगों की मछलियों के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ बैसाखी के समय मेला भी आयोजित होता है।
  4. देवरिया ताल: 8,000 फीट की ऊँचाई पर स्थित यह ताल ऊखीमठ से 7 किमी पूर्व में है और यह उत्तराखंड की सबसे ऊँचाई पर स्थित तालों में से एक है।
  5. चौराबाड़ी ताल (गांधी सरोवर): इसे शरावदी ताल भी कहा जाता है और यह सुमेरू पर्वत की गोदी में स्थित है। यहाँ से मंदाकिनी नदी का उद्गम होता है।
  6. पैंयाताल: यह ताल प्राकृतिक सुंदरता और शांति का प्रतीक है, जो पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
  7. यमताल: एक पवित्र झील जो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है।
  8. देवताल: हिमालय की गोद में स्थित इस ताल का वातावरण बहुत ही शांत और मनमोहक है।
  9. सिद्धताल: यह ताल पवित्रता और प्राकृतिक सुंदरता का मिश्रण है।
  10. बनियाकुण्ड: यह झील और आसपास का क्षेत्र हरे-भरे जंगलों से घिरा हुआ है।
  11. बिसरीताल: यह ताल अपने आकर्षक परिदृश्य और अद्वितीय सुंदरता के लिए जाना जाता है।

जिले के प्रमुख मेले

  1. तोष या नागेश्वर मेला: यह मेला तोष गांव में मनाया जाता है और इसमें स्थानीय लोग भाग लेते हैं। यह धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व का होता है।

  2. मठियाणा मेला: यह मेला मठियाणा क्षेत्र में आयोजित होता है, जहाँ स्थानीय लोग उत्सव मनाते हैं और विभिन्न सांस्कृतिक गतिविधियाँ होती हैं।

  3. वासुदेव का मेला: यह मेला वासुदेव भगवान की पूजा के लिए आयोजित किया जाता है और इसमें भक्ति और धार्मिकता का माहौल होता है।

  4. सैजा कौथिग: यह मेला स्थानीय समुदाय के बीच सांस्कृतिक धरोहर को मनाने का एक महत्वपूर्ण अवसर है।

  5. कालीकाठ मेला: यह मेला कालीकाठ क्षेत्र में आयोजित होता है और इसमें स्थानीय देवी काली की पूजा की जाती है।

  6. मनणा माई की जात: यह मेला मनणा देवी की पूजा के लिए आयोजित होता है, जिसमें स्थानीय लोग उत्साह के साथ भाग लेते हैं।

  7. जाख मेला: जाख मेला एक प्रमुख धार्मिक मेला है जो श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है।

  8. मैखण्डा मेला: यह मेला मैखण्डा क्षेत्र में आयोजित होता है और सांस्कृतिक उत्सव का प्रतीक है।

  9. पांगरी थल्ल मेला: पांगरी थल्ल क्षेत्र में आयोजित यह मेला स्थानीय त्योहारों का हिस्सा है।

  10. वामसू मेला: यह मेला वामसू क्षेत्र में आयोजित होता है, जहाँ स्थानीय लोग अपनी संस्कृति और परंपराओं को मनाते हैं।

  11. रच्छ महादेव मेला: रच्छ महादेव की पूजा के लिए आयोजित यह मेला श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है।

  12. सिल्ला शाणेश्वर मेला: यह मेला सिल्ला शाणेश्वर क्षेत्र में आयोजित होता है, जिसमें भक्ति और श्रद्धा का माहौल होता है।

  13. फेग बनियात मेला: यह मेला फेग क्षेत्र में स्थानीय परंपराओं को मनाने के लिए आयोजित किया जाता है।

  14. रणजीत मेला: यह मेला स्थानीय समुदाय की सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक है और इसमें लोग सक्रिय रूप से भाग लेते हैं।

  15. गैंडा मेला: गैंडा मेला एक विशेष धार्मिक मेला है जो स्थानीय लोगों के बीच लोकप्रिय है।

  16. कुमासैण मेला: यह मेला कुमासैण क्षेत्र में आयोजित होता है और स्थानीय परंपराओं को मनाने का अवसर प्रदान करता है।

  17. दूणगैरा मेला: दूणगैरा क्षेत्र में मनाया जाने वाला यह मेला स्थानीय संस्कृति और धर्म को समर्पित होता है।

  18. हरियाली देवी मेला: यह मेला हरियाली देवी की पूजा के लिए आयोजित किया जाता है और इसमें भक्ति और समर्पण का माहौल होता है।

संस्कृति और विरासत

रुद्रप्रयाग की संस्कृति उसकी भौगोलिक विषमताओं में भी जीवित है। यहाँ के लोग अपनी लोककथाओं, परंपराओं और धार्मिक मान्यताओं को संजोए रखते हैं। यहाँ के प्रमुख मेले और त्योहार स्थानीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं।

प्रमुख मेले

  1. हरियाली देवी मेला:
    हर साल नवरात्र के दौरान हरियाली देवी मंदिर में आयोजित होता है। भक्त देवी की पूजा करने और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहाँ एकत्र होते हैं।

  2. बैशाखी मेला:
    अप्रैल की 13-14 तारीख को मंदाकिनी घाटी में मनाया जाता है। यह सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने का उत्सव है।

  3. मदमहेश्वर मेला:
    यह मेला उखीमठ में आयोजित होता है, जब भगवान मदमहेश्वर की डोली वापस लौटती है। यहाँ बड़ी संख्या में श्रद्धालु एकत्र होते हैं।

  4. पाण्डव नृत्य:
    महाभारत के कौरव-पाण्डवों के नृत्य और संगीत पर आधारित यह नृत्य रुद्रप्रयाग में अत्यंत लोकप्रिय है।

प्रमुख त्योहार

  • रामनवमी:
    श्री राम के जन्मदिन पर भक्त भजन गाते हैं और पूजा करते हैं।

  • होली:
    रंगों का उत्सव मनाते हैं और होलिका के इर्द-गिर्द नाचते हैं।

  • शिवरात्रि:
    भगवान शिव की पूजा और भक्ति गीतों के साथ मनाया जाता है।

  • नागपंचमी:
    नाग देवता का धन्यवाद करने के लिए मनाया जाता है, जहाँ नागों को दूध की पेशकश की जाती है।

इसके अलावा रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, दिवाली और दशहरा जैसे अन्य प्रमुख त्योहार भी यहाँ धूमधाम से मनाए जाते हैं।


प्रमुख धार्मिक स्थल

  1. गुप्तकाशी:
    यहाँ प्राचीन विश्वनाथ और अर्धनारेश्वर मंदिर हैं, जो धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

  2. ओमकारेश्वर मंदिर (उखीमठ):
    सर्दियों में भगवान केदारनाथ यहीं विराजमान रहते हैं।

  3. चोपता:
    यह एक प्राकृतिक सौंदर्य से भरी जगह है, जो गोपेश्वर-उखीमठ रोड पर स्थित है।

  4. कार्तिकस्वामी मंदिर:
    रुद्रप्रयाग-पोखरी रोड पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय को समर्पित है।

  5. कालीमठ:
    यह क्षेत्र के सिद्ध पीठों में से एक है, जहाँ देवी काली की पूजा की जाती है।

  6. त्रियुगीनारायण:
    भगवान विष्णु को समर्पित इस मंदिर की वास्तुकला केदारनाथ मंदिर के समान है।

  7. इंद्रासणी मनसा देवी:
    यह मंदिर अद्भुत वास्तुकला से बना है और देवी मनसा का पूजन होता है।

  8. मदमहेश्वर:
    यह शिव मंदिर दूसरा केदार माना जाता है और शांति से भरा हुआ है।

  9. तुंगनाथ:
    यह मंदिर 3680 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और पांडवों की कथा से जुड़ा हुआ है।

  10. ओमकेश्वर मंदिर (उखीमठ):
    यहाँ भगवान शिव की भव्य मूर्तियाँ हैं और यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है।

कैसे पहुंचें

वायु द्वारा:
रुद्रप्रयाग का निकटतम हवाई अड्डा जोली ग्रांट एयरपोर्ट, देहरादून (अनुमानित 160 किमी) है।

रेल द्वारा:
रुद्रप्रयाग का निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो 140 किमी दूर है।

सड़क से:
रुद्रप्रयाग सड़क के माध्यम से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। निकटतम शहरों की दूरी इस प्रकार है:

  • ऋषिकेश: 140 किमी
  • हरिद्वार: 160 किमी
  • टिहरी: 112 किमी
  • पौड़ी: 62 किमी
  • नैनीताल: 273 किमी

FAQ for Rudraprayag District

1. रुद्रप्रयाग किसके लिए प्रसिद्ध है?

रुद्रप्रयाग भगवान शिव के प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है, जहां केदारनाथ धाम स्थित है। यह क्षेत्र धार्मिक, सांस्कृतिक, और प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है।

2. रुद्रप्रयाग का पुराना नाम क्या था?

रुद्रप्रयाग का पुराना नाम 'पुनाड़' था।

3. रुद्रप्रयाग में प्रमुख नदियाँ कौन-कौन सी हैं?

रुद्रप्रयाग में प्रमुख नदियाँ मंदाकिनी, दूध गंगा, मधु गंगा, लस्तर नदी, तोशी नदी, और सोन नदी हैं। ये नदियाँ धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखती हैं।

4. रुद्रप्रयाग के प्रमुख तीर्थ स्थल कौन से हैं?

रुद्रप्रयाग के प्रमुख तीर्थ स्थलों में केदारनाथ, मद्महेश्वर, तुंगनाथ, और ओंकारेश्वर मंदिर शामिल हैं।

5. रुद्रप्रयाग की जलवायु कैसी है?

रुद्रप्रयाग की जलवायु पर्वतीय है, जिसमें गर्मियों में हल्की गर्मी और सर्दियों में बर्फबारी होती है। मानसून के दौरान यहां अधिक वर्षा होती है।

6. रुद्रप्रयाग का क्षेत्रफल और जनसंख्या क्या है?

रुद्रप्रयाग का क्षेत्रफल 1984 वर्ग किमी है और जनसंख्या लगभग 242,285 है।

7. रुद्रप्रयाग में कौन सी सांस्कृतिक परंपराएँ प्रसिद्ध हैं?

रुद्रप्रयाग में 'पाण्डव नृत्य' और 'बगड़वाल नृत्य' प्रमुख हैं। ये नृत्य महाभारत की कथाओं और स्थानीय लोककथाओं पर आधारित हैं।

8. रुद्रप्रयाग कब जनपद बना?

रुद्रप्रयाग 16 सितंबर, 1997 को एक जनपद के रूप में स्थापित हुआ।

9. रुद्रप्रयाग में साक्षरता दर क्या है?

रुद्रप्रयाग की साक्षरता दर 81.3% है, जिसमें पुरुषों की साक्षरता 93.9% और महिलाओं की 70.04% है।

10. रुद्रप्रयाग का प्रशासनिक मुख्यालय कहाँ है?

रुद्रप्रयाग का प्रशासनिक मुख्यालय रुद्रप्रयाग नगर में स्थित है।

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