टिहरी रियासत के समय प्रमुख वन आंदोलनों और सामाजिक प्रथाएं पीडीएफ के साथ - During the time of the Tehri state, major forest movements and social practices were associated with the PDF.
टिहरी रियासत के समय प्रमुख वन आंदोलनों और सामाजिक प्रथाएं

प्रमुख वन आंदोलनों
टिहरी रियासत के दौरान विभिन्न वन आंदोलनों ने क्षेत्र की सामाजिक और राजनीतिक धाराओं को प्रभावित किया। इनमें से कुछ प्रमुख आंदोलनों का उल्लेख नीचे किया गया है:
कुंजणी वन आन्दोलन (1904)
- नेता: अमर सिंह
- विशेष जानकारी: यह आंदोलन कीर्तिशाह के समय हुआ और अंग्रेज सरकार द्वारा टैक्स में वृद्धि के विरोध में हुआ। इसमें स्वयं कीर्तिशाह ने आकर समझौता किया था।
खास पट्टी वन आन्दोलन (1907)
- विशेष जानकारी: 1906-07 में नए भूमि बन्दोबस्त के विरोध में यह स्वतः स्फूर्त आंदोलन हुआ। इसे बेलमती देवी, भगवान सिंह बिश्ट एवं भरोसाराम ने नेतृत्व किया। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप कीर्तिशाह द्वारा किसान बैंक का गठन किया गया।
असहयोग वन आन्दोलन (1919-22)
- विशेष जानकारी: यह आंदोलन मुख्यतः चमोली और पौड़ी में फैल गया। 1915 में गोपाल सिंह राणा ने सौण्या सेर एवं बिसाऊ प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया। इसे आधुनिक किसान आंदोलनों का जनक माना जाता है। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप 13 अप्रैल, 1921 को पी. विंडम की अध्यक्षता में फॉरेस्ट ग्रीवेंस कमेटी गठित हुई।
राजगढ़ी (बड़कोट) वन आन्दोलन (1926-30)
- विशेष जानकारी: 1926 में वर्किंग प्लान ऑफ टिहरी गढ़वाल स्टेट नामक कड़ा बन्दोबस्त लाया गया, जिसे 1929 के वन बन्दोबस्त के नाम से जाना गया। इसके सृजनकार पद्म दत्त रतूड़ी थे।
जौनपुर की प्रमुख सामाजिक प्रथाएं
जौनपुर क्षेत्र की विभिन्न सामाजिक प्रथाओं ने यहाँ की संस्कृति और सामाजिक ढांचे को आकार दिया है। इनमें शामिल हैं:
- पड़ियाल प्रथा: गांवों में आपसी सहयोग हेतु श्रमदान की प्रथा।
- ज्वाड़ प्रथा: महिलाओं को सम्पत्ति के अधिकार से संबंधित प्रथा।
- छूट प्रथा: विवाह विच्छेद से संबंधित महिला अधिकार।
- बहुपति प्रथा: जौनसार-जौनपुर की प्राचीन प्रथा, जो वर्तमान में समाप्ति की ओर है।
- सल्टवाड़ा प्रथा: लड़के के जन्म पर उसे मामा के घर ले जाने की प्रथा।
- मात प्रथा: बन्धुआ मजदूरी के तौर पर प्रचलित प्रथा।
- खलिक प्रथा: निम्न वर्ग के कामगारों को फसल के समय अनाज देने की प्रथा।
- बुड़ियात प्रथा: रात भर जागरण या जागड़ा लगाने की प्रथा।
- चोहते प्रथा: खुशी या शोक में विशेष प्रकार का संगीत बजाने की प्रथा।
- ओड़ाल प्रथा: लड़की को भगाकर विवाह करने की प्रथा।
राज्य में स्थित प्रमुख तपोवन
टिहरी क्षेत्र में कई प्रमुख तपोवन स्थित हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
- तपोवन - मुनि की रेती
- तपोवन - देहरादून
- ढाक तपोवन - जोशीमठ
- तपोवन लंगसी - जोशीमठ
- तपोवन कलाप बदरी - मणिभद्रपुर
- तपोवन - धारचूला
- कलाप तपोवन - नेटवाड़
- तपोवन - गंगोत्री
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टिहरी रियासत के प्रमुख वन आंदोलनों के नाम क्या हैं?
- प्रमुख वन आंदोलनों में कुंजणी वन आन्दोलन (1904), खास पट्टी वन आन्दोलन (1907), असहयोग वन आन्दोलन (1919-22), और राजगढ़ी वन आन्दोलन (1926-30) शामिल हैं।
कुंजणी वन आन्दोलन का उद्देश्य क्या था?
- कुंजणी वन आन्दोलन का उद्देश्य अंग्रेज सरकार द्वारा टैक्स में वृद्धि के खिलाफ विरोध करना था, जो कि कीर्तिशाह के समय हुआ था।
खास पट्टी वन आन्दोलन के प्रमुख नेता कौन थे?
- इस आंदोलन का नेतृत्व बेलमती देवी, भगवान सिंह बिश्ट और भरोसाराम ने किया था।
असहयोग वन आन्दोलन का विस्तार कहाँ तक हुआ?
- यह आंदोलन मुख्यतः चमोली और पौड़ी जिलों में फैला, जिसमें गोपाल सिंह राणा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
राजगढ़ी वन आन्दोलन का प्रमुख कारण क्या था?
- 1926 में वर्किंग प्लान ऑफ टिहरी गढ़वाल स्टेट नामक कड़ा बन्दोबस्त लाने के कारण यह आंदोलन शुरू हुआ था।
जौनपुर क्षेत्र की प्रमुख सामाजिक प्रथाएं कौन सी हैं?
- प्रमुख सामाजिक प्रथाओं में पड़ियाल प्रथा, ज्वाड़ प्रथा, छूट प्रथा, बहुपति प्रथा, सल्टवाड़ा प्रथा, मात प्रथा, खलिक प्रथा, बुड़ियात प्रथा, चोहते प्रथा, और ओड़ाल प्रथा शामिल हैं।
पड़ियाल प्रथा क्या है?
- यह एक श्रमदान प्रथा है जिसमें गांवों में आपसी सहयोग के लिए श्रमदान किया जाता है।
ज्वाड़ प्रथा महिलाओं के लिए क्या सुनिश्चित करती है?
- ज्वाड़ प्रथा महिलाओं को सम्पत्ति का अधिकार प्रदान करती है।
टिहरी क्षेत्र में प्रमुख तपोवन कौन से हैं?
- प्रमुख तपोवन में तपोवन - मुनि की रेती, तपोवन - देहरादून, ढाक तपोवन - जोशीमठ, तपोवन लंगसी - जोशीमठ, तपोवन कलाप बदरी - मणिभद्रपुर, तपोवन - धारचूला, और तपोवन - गंगोत्री शामिल हैं।
राजगढ़ी वन आन्दोलन का क्या परिणाम हुआ?
- राजगढ़ी वन आन्दोलन के परिणामस्वरूप क्षेत्र में वन संबंधी नीतियों में बदलाव आया और स्थानीय वन संरक्षण के लिए जागरूकता बढ़ी।
निष्कर्ष
टिहरी रियासत के दौरान हुए ये वन आंदोलन और सामाजिक प्रथाएं न केवल क्षेत्र की संस्कृति को दर्शाती हैं, बल्कि उस समय के सामाजिक संघर्षों और विकास की कहानी को भी बयां करती हैं। इन आंदोलनों ने न केवल स्थानीय लोगों की आवाज को उठाया, बल्कि सामाजिक न्याय और अधिकारों के लिए भी एक मंच प्रदान किया।
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