पहाड़ी घर की आत्मीयता और सरलता की झलक
कविता:
ठौर
पाथर वाला घर
उसमें दो छोटे-छोटे कमरे
एक कमरे के एक कोने में चुलान
दूसरे कोने में देवता की थाई
दूसरे कमरे के एक कोने में
गेहूँ, मड़वा पीसने की चक्की
असोज में
एक कोने में मड़वा, मादरा
चार भाई बहिन, ईजा, आमा
साल में दो महीने की छुट्टी आते
फौजी पापा
एक बिल्ली और उसके बच्चें
नीचे गौठ में गौठ भर जानवर
आते जाते पोन-पाछी
बारिश में टप्प टप्प करती छत
खाना बनाते हुए होलपट्ट
फिर भी असज नहीं हुआ कभी
मन और रिश्ते बड़े थे और दिखावा छोटा
तो ठौर हो ही जाती थी।
अर्थ और विश्लेषण:
राजू पाण्डेय की कविता "ठौर" पहाड़ी जीवन के एक सरल, लेकिन आत्मीय चित्रण को सामने लाती है। यह कविता हमें उस जीवनशैली का एहसास कराती है जहां सीमित संसाधनों के बावजूद, रिश्तों की गर्मी और आत्मीयता जीवन को सहज बनाती थी।
सादगी और आत्मीयता:
कविता में पहाड़ी घर के छोटे-छोटे हिस्सों का वर्णन किया गया है, जो कि जीवन के साधारण लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को उजागर करता है। पाथर वाला घर, जिसमें सीमित स्थान के बावजूद, मन और रिश्ते इतने बड़े होते थे कि घर में हर किसी के लिए जगह बन ही जाती थी।संघर्ष और संतोष:
बारिश में टप्प-टप्प करती छत और होलपट्ट के बावजूद, जीवन में असजता नहीं थी। यह दर्शाता है कि कठिनाइयों के बावजूद, संतोष और खुशी घर के अंदर बसे रिश्तों और आत्मीयता में निहित होती थी।परिवार का महत्व:
फौजी पापा के दो महीने की छुट्टी में आने पर पूरे परिवार का एकजुट होना, आमा और ईजा के साथ समय बिताना, और पालतू जानवरों के साथ घर की रौनक, परिवार के महत्व और एकजुटता को दर्शाता है।प्राकृतिक जीवन:
चक्की में गेहूँ और मड़वा पीसना, मड़वा और मादरा का संग्रह, गौठ में जानवरों का होना - ये सब जीवन की प्राकृतिकता और सरलता को सामने लाते हैं। यह जीवनशैली आज के आधुनिक जीवन से भले ही अलग हो, लेकिन इसमें एक गहरी आत्मीयता और स्थायित्व है।स्थायित्व और ठौर:
कविता का अंत इस बात को रेखांकित करता है कि कैसे इस साधारण जीवन में मन और रिश्तों की स्थायित्व थी। जब मन और रिश्ते बड़े होते हैं, तो छोटी-छोटी असुविधाएँ भी ठौर बन जाती हैं। यही ठौर, यानि वह जगह, सच्चे सुख और संतोष का स्रोत बनती है।
Keywords:
- पहाड़ी जीवन
- पारिवारिक आत्मीयता
- साधारण जीवन की सरलता
- पहाड़ी घर का वर्णन
- ठौर की महत्ता
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