रशुलन दीबा मंदिर मैं सुबह के 4 बजे शुर्योदय के दर्शन होते है (Rasulan Diba You will also be surprised to read the story of this goddess's miracle)
रशुलन दीबा इस देवी के चमत्कार की कहानी पढ़कर आप भी हो जाओगे हैरान!
मां रशुलन दीबा आज भी अपने अनोखे चमत्कार के लिए विख्यात है माता के मंदिर के इर्द गिर्द ऐसी शक्तियां हैं कि हर कोई हैरान हो जाता है। माँ रशुलन दीबा का ये मंदिर पौड़ी के पट्टी किमगडी गढ़ पोखरा ब्लॉक के झलपड़ी गावं के ऊपर घने जंगल से होते हुए रशुलन दीबा माता मंदिर पड़ता है। यदि आप भी दीबा माता के दर्शन को आना चाहते हैं तो आपको सबसे पहले पौड़ी जिले के कोटद्वार शहर पहुँचना पड़ता है। कोटद्वार से निकलते हुए आपको अब सतपुली बाज़ार पहुँचना होता है इसके लिए बस और टेक्सी दोनों मिल जाती हैं रास्ते में घुमखाल, लेंसडॉन छावनी के मनमोहक रास्तों से गुजरना होता है।
सतपुली से आपको चौबट्टाखाल गवानी आना पड़ता है। जहाँ से झालपड़ी गावं नजदीक पड़ता है झालपड़ी गावं से रास्ता यह करीब 15 किलोमीटर दूरी पर है। झाल्पड़ी गावं से रास्ता जंगल के रास्ते होकर दुर्गम पहाड़ी से होकर माता के मंदिर पहुंचता है। जीवन का यह पल यादगार होता है लोग यहाँ का सफ़र रात में करते हैं क्योंकि माना जाता है की यहाँ से सूर्य भगवान के अद्दभुत, अकल्पनीय दर्शन होते हैं।
इस जगह पर सुबह के 4 बजे शुर्योदय के दर्शन होते है।
हिमालय और कैलास पर्वत के बीच से जब सूरज निकलता है, तो वह तीन रंगों में अपना स्वरुप बदलता है भगवान सूर्य का यह रूप अनोखा होता है। जसमे पहले लाल रंग, फिर केसरिया और अंत में चमकीले सुनहरे रंग में आता है। भगवान सूर्य के इस विलक्षण रूप को देखने के लिए लोग यहाँ रात को ही बसेरा लगा देते हैं। इतना ही नहीं माता रानी के आशीर्वाद से रात को यहाँ के जंगलों से आदमी अकेला भी गुजर जाता है।
गॉव से काफी दूर इस मंदिर में गावं ख़त्म होते ही आदमी को अपनी सुविधा पे जाना होता है। लोग यहाँ उपरी जगह पर खाने और रहने के इनजाम के साथ जाते हैं यहाँ पर मई और जून के महीने में जाना उचित माना जाता है। इन महीनों में भी यहाँ पर बड़ी कडाके की ठंड पड़ती है इसलिए अपने साथ कम्बल और गर्म कपड़ों की व्यवस्था के साथ जाना पड़ता है।
माता के मंदिर की लोग पूजा अर्चना करते हैं और नारियल और गुड यहाँ का प्रसाद होता है। माता के मंदिर में रशूली नाम के वृक्ष के पते में प्रसाद लेना शुभ माना जाता है। लेकिन इस पेड़ को लेकर एक मान्यता है कि इस पेड़ पर कभी हथियार नहीं चलाया जाता है। इसलिए लोग इस पेड़ की पत्तियों को हाथ से तोड़कर माता का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
मान्यता यह भी है कि जब बहुत साल पहले गढ़वाल पर गोरखाओं का आक्रमण हुआ था, तो माँ ने अपने भक्तों को आवाज लगा कर सचेत किया था कहा ये भी जाता है कि गोरखा इस मंदिर से वापिस लौट गए थे। उस समय में माता ने गोरखाओं को वापिस जाने के लिए कहा था।
धारणाओं के मुताबित गुत्तू घनसाली के भूटिया और मर्छ्या जनजाति के लोग यहाँ माँ दीबा के दर्शन के लिए आते हैं जिनमे भूटिया जनजाति के लोग बकरियां चराने जब यहाँ आते हैं। तो माता का आशीर्वाद लेना नहीं भूलते हैं क्योंकि जंगलों में रहकर वो माँ के नाम का सुमिरन करते हैं जिसकी वजह से रात रात जंगलों में वो सुरक्षित रहते हैं।
पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस मंदिर को पर्यटन से जोड़ने को आश्वासन दिया है। अब जल्दी ही मंदिर को पर्यटन से जोड़े जाने की कवायत तेज हो गयी हैं।
माँ देवी की कृपा सब पर बनी रही यही मनोकामना हम करते हैं।-
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