कविता कोश एक होली ये भी

कविता कोश "एक होली ये भी"

एक होली ये भी

एक होली ये भी 

मलते ही गुलाल 
हुआ मलाल
रंगना था चेहरा 
रंग दिए गाल 
मलना था किस पे 
मला किसको
हंगामा हो गया 
पकडो पकडो इसको !

बीच चोराहे में पकडा गया
ठुकम ठुकाई होते होते 
भया ठुक गाया !

मित्रो ....
जैसे ही उनसे छुटा 
पत्त्नी ने आकर कुट्टा 
पकड़कर कालर बोली ...
कौन थी वो .......
जिस पर मलने गुलाल तुम
गली छोड़ , मोहला छोड़ 
यहाँ तक आये हो !

मै बोला., अरी भागवान ....
मै उसे जानता तक नहीं
पहिचानता तक नहीं 
मेरा यकीन करलो
कसम खलालो ...
या मुर्गा बनालो !

सच कहूँ तो ...
उपर से नीचे तक वो 
रंगों में रंगी थी 
बाल काले पीले हो रखे थे
मुह पर कालिख माली थी 
कुछ देखी नही दे रहा था 
इसे में मैंने सोचा तू ही थी 
बस्स ...................
आओ देखा न ताऊ 
गुलाल मल दिया !

लगाते ही गुलाल 
अहसाश हुआ 
कही ना कही 
धोखा हो गया 
मेरी वो ...
वो तो इसी तो न थी 
ये कौन है ??
ये क्या होगया !

जो होना था सो हो गया
उसपे रंग चदा गया था 
मेरा रंग उड़ गया 
क्या क्या ब्यान करू 
क्या क्या हुआ नहीं
उसके बाद जो हुआ 
वो तुम से छुपा नहीं !

जो होना था सो हो गया
उसपे रंग चदा गया था 
मेरा रंग उड़ गया 
क्या क्या ब्यान करू 
क्या क्या हुआ नहीं
उसके बाद जो हुआ 
वो तुम से छुपा नहीं !
होली के रंग ने 
एसे रंग दिए 
मुझो दिन में ही तारे दिखाई दिए !


उत्तराखंड के जगलो मैं कुछ इस तरह की आवाज केवल काफल फल पकने पर अति हैं
उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाएं श्रीमती बसंती बिष्ट 

टिप्पणियाँ