गढ़वाल के लोक गीत एवं लोक नृत्य: संस्कार गीत संस्कार / Folk Songs and Folk Dances of Garhwal: Sanskar Geet Sanskar
गढ़वाल के लोक गीत एवं लोक नृत्य: संस्कार गीत संस्कार
संस्कार गीत: विवाह गीत
मंगल - स्नान विवाह की प्रमुख क्रियाओं में माना जाता है। लग्न के अनुसार चर अथवा कन्या का मंगल स्नान अपने - अपने घरों पर कराया जाता है। मंगल—स्नान करवाने के लिए भी सुहागिनों एवं कुमारियों को आमंत्रित किया जाता है। मां, चाची, भाभी, सहेलियों के अलावा सुहागिन महिलाएं भी इस पवित्र कार्य में भाग लेती हैं पांच - सात अथवा ग्यारह महिलाएं मंगल—स्नान करने से पूर्व वर अथवा कन्या की वन्दना करती हैं। वन्दना के लिए दूब के गुच्छों को दोनों हाथों में लेकर हल्दी के पुड़कों में डुबोकर कन्या अथवा वर के पैरों, घुटनों, कंधों और सिर पर छुआते हुए अपने सिर पर लगाती हैं। यह क्रिया प्रत्येक वन्दना करने वाली सुहागिन पांच या सात बार करती है। हिन्दी क्षेत्र में इसके लिए 'बान' शब्द का प्रयोग होता है। वर—कन्या को देवी और देवता के रूप में पूजा जाता है। सम्पूर्ण गढ़वाल में वर को शिवजी के रूप में और कन्या को पार्वती के रूप में स्वीकारा जाता है। मंगल—स्नान के बाद कन्या का रूप और भी निखर जाता है। पार्वती के माध्यम से कन्या के रूप की व्यंजना मांगल गीत में इस प्रकार हुई है
कैसो देखेलो पार्वती कोे रूप,
ऐसो देखेलो, ऐसो देखेलो पार्वती को रूप,
धार मां की जोन जसी, दिवा जनी जोत,
ऐसो देखेलो, ऐसो देखेलो, पार्वती को रूप।
फेलोरे त देखेली, दूबी सी मुंगेरे,
जांगुड़ी त देखेली, केला सी गोलकी,
कमरी देखेली, हिरणी समान,
छाती देखेली, कैलासू का मान,
ओठड़ी त देखेली, बुरांसी को फूल,
दातुंड़ी देखेली, दालिमा की—सी दाणी,
आंखी त देखेली, कमल—नी पांखुड़ी,
केश त देखेला, सौंण की—सी रिमझिम।
बधू वेश में मंगल स्नान के बाद हमारी पार्वती (वधू—कन्या) कैसी दिखाई देगी? मंगल्यानियां, मंगल गीत गाती हुई कहती हैं कि हमारी पार्वती (कन्या) पर्वत श्रेणी पर उगे पूर्ण चन्द्रमा की तरह दिखेगी। वह तो दीपक की जोत के समान उजेली है न? उसके टखने दूब की डाली की तरह हैं। जांघ केले के गोलकों की तरह दिखाई दे रहे हैं। उसकी कमर तो हिरणी की तरह चमकदार है। उसकी छातियां कैलास पर्वत के समान उठी हुई हैं। होंठ बुरांस के फूल की तरह रक्त वर्ण के हैं। दंत—पंक्ति् अनारदानों को भी जला रही है। कमल के पंखुड़ियों की तरह हमारी पार्वती (कन्या) की आंखें हैं। सावन की काली घटा में जब रिमझिम वर्षा होती है और उस समय जैस दिााई देात है वैसा ही हमारी पार्वती (कन्या) के बालों की छटा भी दिखाई दे रही है।
पार्वती (कन्या) को वस्त्र धारण करने को कहा जाता है। उस समय के 'मांगल' गीतों में कन्या की ओर से माता—पिता से आग्रह किया जाता है कि वे अच्छे—से—अच्छे वस्त्र दें।
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