गढ़वाल के लोक गीत एवं लोक नृत्य: विवाह गीत / Folk Songs and Folk Dances of Garhwal: Wedding Songs

 गढ़वाल के लोक गीत एवं लोक नृत्य: विवाह गीत 

विवाह गीत

मंगल स्नान और वस्त्राभरण के बाद बारात का आगमन, वैवाहिक कृत्यों में मुख्य आकर्षण होता है। उस समय होता है। उस समय के मांगल गीतों में बारात की शोभा, वर की झलक और स्वागत की तैयारियों का उल्लेख होता है। द्वार पर बारातियों का स्वागत द्वार—चार के माध्यम से होता है। वर को देखने की उत्सुकता बनी रहती है। ऐसे अवसर पर कन्या पक्ष की ओर से कहा जाता है कि 'बारातियों तनिक हटो, हमें दूल्हा देखने दो।'

'धूल्यर्ध किसे दिया जाय?' वर को देखकर कन्या की सहेलियां व्यंग्य करती हुई गाती हैं कि तुम्हारा बेटा काला कलूटा है। हमारी बेटी गौर सरूप है। इस समय गीतों में वर, वर के पिता और अन्य सम्बन्धियों को मीठी—मीठी गालियां भी दी जाती हैं। गालियों का क्रम बारातियों के भोजन करते समय भी चलता है।

कन्यादान और सप्तपदी संस्कारों के बीच स्तंभ—पूजा, गोत्रोच्चार, समंजन, प्रतिबंध, कंकड—बंधन, पाणिग्रहण और अश्वारोहण आदि कई संस्कार सम्पादित किये जाते हैं। इन सभी संस्कारों के सम्पन्न करते समय उसी प्रकार के मंगल—गीत गाये जाते हैंं। हिन्दू विधि के अनुसार जैसे—जैसे संस्कार होते रहते हैं वैसे—वैसे मंगलगीत संकारानुसार गाये जाते हैं।

विवाह में सप्तपदी संस्कार के साथ विवाह संपन्न माना जाता है। इस अवसर पर भी मंगल गीत गाया जाता है, उसमें सप्तपदी की प्रत्येक भांवर का उल्लेख इस प्रकार बताया गया है:

पैलो फेरो फेरो लाडी, कन्या च कुंवारी,
दूजो फेरो फेरी लाडी, कन्या च मां की दुलारी,
तीजो फेरो फेरी लाडी, कन्य च भाइयों की लड्याली, 
चौथो फेरो फेरी लाडी, कन्य न मैत छोड्याली।
पांचो फेरो फेरी लाडी, सैसर की च त्यारी,
छठो फेरो फेरी लाडी, सासु की च ब्वारी,
सातो फेरो फेरी लाडी, लाडी हवै चूके तुमारी।

'इस प्रकार पहली भांवर में कन्या कुमारी, दूसरी भांवर में मां की दुलारी, तीसरी भांवर में कन्या भाइयों की दुलारी, चौथी भांवर में कन्या मायके से बिछुड़ने को तैयार हो जाती है। पांचवी भांवर में ससुराल की तैयारी कर छठी में सास की बहू बनकर सातवीं भावर में वह वर का पत्नीत्व स्वीकार कर सबको छोड़कर उसी की हो जाती है।'

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