तुंगनाथ की महिमा और इतिहास
समुद्र तल से लगभग 3480 मीटर की ऊंचाई पर तुंगनाथ का मंदिर बना हुआ है. यह मन्दिर उत्तराखंड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है. हिमालय की ख़ूबसूरत प्राकृतिक सुन्दरता के बीच बना यह मन्दिर तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र है. जो लोग केदारनाथ के दर्शन के लिए आते हैं वे यहां भी जरूर आते हैं. तुंगनाथ मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा शिव मंदिर है, इस मंदिर को 1000 वर्ष पुराना माना जाता है. यहां शिव की भूजाएं और दिल की पूजा होती है. पौराणिक मान्यताएं हैं कि भगवान राम ने यहां एकांत में कुछ समय बिताया था, जिसके बाद इसकी महिमा और विख्यात हो गई. तुंग मतलब हाथ और नाथ मतलब भगवान शिव का प्रतीक है. ये मंदिर बर्फ से ढका रहता है इसलिए ज्यादा ठंड में जाने से दर्शन करना मुश्किल है
तुंगनाथ मंदिर |
उत्तराखंड को ऐसे ही नहीं देवभूमि कहा जाता है, यहां शिव अलग अलग रूप में विराजमान है. केदारनाथ से लेकर बद्रीनाथ (Kedarnath to Badrinath) तक यहां कई प्रसिद्ध मंदिर हैं, जहां शिव के ज्योर्तिलिंग को बैठाकर पूजा होती है. इसलिए यहां एक केदारनाथ नहीं बल्कि पंच केदार है, मतलब भगवान शिव के पांच मंदिर हैं, जिसमें केदारनाथ,तुंगनाथ,रुद्रनाथ,मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर का नाम शामिल है. आज हम Shiv के सबसे बड़े मंदिर तुंगनाथ की बात कर रहे हैं.
ये सभी मंदिर भोलेनाथ को समर्पित हैं, ये पवित्र जगहें हैं जो उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में मौजूद है. ऐसा माना जाता है कि इन पांच मंदिरों का इतिहास महाभारत से जुड़ा है. जब पांडव लंबे समय से एक जगह से दूसरी जगह भगवान शिव की खोज कर रहे थे, तब उन्हें महादेव पांच अलग-अलग हिस्सों में दिखाई दिए थे, इसलिए पंच केदार नाम से पांच मंदिर बन गए.
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तुंगनाथ मंदिर |
तुंगनाथ:पांडवों से जुड़ा है तुंगनाथ मंदिर का इतिहास,
उत्तराखंड के चार धाम बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री ग्रीष्म काल के लिए खुल गए हैं। इन मंदिरों में केदारनाथ शिव जी का धाम है। इसके साथ ही उत्तराखंड में 4 शिव मंदिर और हैं, जिनका इतिहार बहुत पुराना है। शिव जी के इन पांच मंदिरों को पंच केदार कहा जाता है।
पंच केदार में केदारनाथ, तुंगनाथ, रुद्रनाथ, मध्यमहेश्वर और कल्पेश्वर मंदिर शामिल हैं। तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में करीब 3600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। ये शिव मंदिर सबसे ऊंचाई पर स्थित है। यहां का प्राकृतिक वातावरण इस मंदिर की खासियत है। ट्रैकिंग पसंद करने वाले लोगों को ये क्षेत्र काफी लुभाता है। तुंगनाथ दर्शन के लिए सोनप्रयाग पहुंचना होता है। इसके बाद गुप्तकाशी, उखीमठ, चोपटा होते हुए तुंगनाथ मंदिर पहुंच सकते हैं।
मंदिर से जुड़ी मान्यताएं
इस मंदिर का इतिहास हजारों साल पुराना है। इस जगह का संबंध महाभारत काल से भी है। मंदिर के बारे में कथा प्रचलित है कि इसे पांडवों ने बनावाया था। महाभारत युद्ध में मारे गए लोगों की वजह से पांडव काफी दुखी थे। वे शांति पाने के लिए हिमालय आए थे। उस समय उन्होंने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया था। एक अन्य मान्यता के मुताबिक माता पार्वती ने भी यहां तप किया था।
तुंगनाथ मंदिर से करीब 1.5 किमी दूर चंद्रशिला पीक है। इसकी ऊंचाई करीब 4000 मीटर है। चोपटा से तुंगनाथ एक ओर की ट्रेकिंग में करीब 1.30 घंटे का समय लगता है। तुंगनाथ उत्तराखंड में गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में एक पर्वत पर स्थित है।
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तुंगनाथ मंदिर |
तुंगनाथ मंदिर का रहस्य
तुंगनाथ मंदिर विश्व का सबसे ऊंचाई पर स्थित शिव जी का मंदिर है आप सोच ही सकते हैं इसकी ऊंचाई समुद्र तल से लगभग 12000 फीट है | यह मंदिर आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा बनवाया गया था|
तुंग का अर्थ है भगवान शिव
तुंग का अर्थ होता है: पर्वत, पर्वत शिखर, ऊंचाई आदि। इसका एक मतलब शिव भी है। इस प्रकार तुंगनाथ के रूप में भगवान शिव हिमालय शिखर के देवता हैं।
ये हैं पंचकेदार से जुड़ी खास बातें
केदारनाथ धाम - पंच केदार में से एक केदारनाथ मंदिर उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में है। केदारनाथ बारह ज्योतिर्लिंग में से एक है। ये राज्य के चारधाम में भी शामिल है।
तुंगनाथ मंदिर - तुंगनाथ मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में है। पंच केदार में ये मंदिर सबसे ऊंचाई पर स्थित है।
रुद्रनाथ मंदिर - रुद्रनाथ मंदिर उत्तराखण्ड के चामोली जिले में है। रुद्रनाथ मंदिर में शिवजी के एकानन यानी मुख की पूजा की होती है।
मध्यमहेश्वर मंदिर - ये मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में है। यहां शिवजी की नाभि की पूजा की जाती है।
कल्पेश्वर मंदिर - इस मंदिर में शिवजी की जटाओं की पूजा की जाती है। ये मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में स्थित है।
तुंगनाथ मंदिर कहां है?
भगवान शिव का प्राचीन तुंगनाथ मंदिर उत्तराखंड के गढ़वाल के रुद्रप्रयाग जिले में ऊंचे पर्वत पर स्थित है। तुंगनाथ मंदिर महादेव के पंच केदारों में से एक है, जो चारों तरफ से बर्फ से ढका रहता है।
मां पार्वती ने की तपस्या
स्थानीय लोगों का कहना है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की थी। मंदिर से जुड़ी एक कथा यह भी है कि भगवान राम ने रावण के वध के बाद स्वयं को ब्रह्महत्या के शाप से मुक्त करने के लिए इसी स्थान पर तपस्या की। इस कारण इस जगह को चंद्रशिला भी कहते हैं।
कैसे पहुंचे तुंगनाथ मंदिर
तुंगनाथ मंदिर पहुंचने के लिए यात्री उखीमठ के रास्ते जा सकते हैं, जहां उन्हें सड़क मार्ग के जरिए मंदाकिनी घाटी में प्रवेश करना होता है। आगे बढ़ने पर अगस्त्य मुनि नाम का एक छोटा कस्बा मिलता है, जहां से हिमालय की नंदा खाट चोटी देखने को मिलती है। इसके अलावा चोपता से तुंगनाथ मंदिर की दूरी महज तीन किलोमीटर है। बस से चोपता पहुंचकर मंदिर तक पैदल यात्रा कर सकते हैं।
तुंगनाथ मंदिर कब जाएं
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तुंगनाथ मंदिर |
नवंबर के बाद से इस स्थान पर बर्फबारी होने लगती है और मंदिर बर्फ की सफेद चादर से ढक जाता है। तुंगनाथ मंदिर जाने के लिए सबसे उपयुक्त समय जुलाई-अगस्त का होता है। इन महीनों में यहां की खूबसूरती अधिक बढ़ जाती है। आसपास हरियाली और बुरांश के फूल देखने को मिल जाते हैं।
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