हिमाचल प्रदेश जिला किन्नौर में मंदिर लाब्रांग किला - Temple Labrang Fort in Himachal Pradesh District Kinnaur
हिमाचल प्रदेश जिला किन्नौर में मंदिर लाब्रांग किला - Temple Labrang Fort in Himachal Pradesh District Kinnaur
14वीं शताब्दी की शुरुआत में किन्नौर क्षेत्र सात भागों में बंटा हुआ था, जिन्हें स्थानीय तौर पर 'सत खुंड' कहा जाता था, जो लगातार संघर्ष में उलझा रहता था। लाबरंग, मोरंग और कामरू के किले हमें इतिहास के इस तूफानी समय के बारे में बहुत कुछ बताते हैं।
हाल के इतिहास में किन्नौर बुशहर रियासत का हिस्सा था। ऐसा माना जाता है कि बुशहर की स्थापना 472 संवत में दक्कन के एक राजपूत दानबर सिंह ने की थी।
किन्नौर में मंदिर लाब्रांग किला |
किले में की गई कलाकृतियां
लाबरंग किले के अंदर आज भी हजारों वर्ष पुरानी तलवारें दिखती है, जिसे ग्रामीणों ने संभाल कर रखा है. लाबरंग किले के पुजारी का कहना है कि हजारों वर्ष पूर्व जब ठाकुरों का शासन हुआ करता था. ठाकुर इस किले से अपने इलाकों की तपतिश किया करते थे और दुश्मनों पर नजर रखते थे. इस किले के अंदर से दुश्मनों को देखने के लिए खुफिया खिड़कियां है. इन गुप्त खिड़कियों से तीर से हमला कर ठाकुर दुश्मनों को किले की ओर आने से रोकते थे. खिड़कियों की खासियत यही है कि किले के अंदर से तीर बाहर मारा जा सकता है, लेकिन बाहर से अंदर की ओर दुश्मन तीर व हथियारों से हमला नहीं कर पाते थे, जिसके कारण ठाकुर हमेशा युद्ध जीत जाते थे. किले के अंदर कुछ पत्थर व अन्य धातुओं की मूर्तियां भी हैं जो ठाकुरों के इष्ट देवता माने जाते हैं. माना जाता है कि ठाकुरों के देवता आज भी किले की रक्षा कर रहे हैं.
लाबरंग के लोगों ने बताया कि किले पर जब ठाकुरों का शासन लगभग खत्म हो गया था और ठाकुरों की विरासत खत्म हो गयी थी तो रामपुर रियासत के राजाओं ने इस किले पर आधिपत्य जमा लिया. किले का इतिहास बाद में राजा कहर सिंह व पदम सिंह से भी जोड़ा गया. बताया जाता है कि कहर सिंह व पदम सिंह ने इस किले को अपने अधीन कर लाबरंग के बिष्ट परिवार को किले का पुजारी निर्धारित कर पूजा करने का अधिकार दिया था.
बता दें कि जब इस किले में ठाकुरों का शासन खत्म हुआ था तो लाबरंग के ग्रामीणों ने किले के समक्ष ठाकुरों के पुराने मकान राशन भंडारण पर भी बोली लगाकर दे दिया था और मुख्य किले को सुरक्षित रखा गया. इस किले को देखने व शोध के लिए आज भी हजारों लोग लाबरंग गांव आते हैं. लाबरंग किले का इतिहास आज भी शोध का विषय बना हुआ है, किले का निर्माण पांडवों ने किया था या ठाकुरों ने, अभी तक इस बात का खुलासा नहीं हो पाया है.
किन्नौर में मंदिर लाब्रांग किला |
किले का इतिहास व किवदन्ती
किन्नौर के लाबरंग में स्थित इस किले का इतिहास आज तक कोई इतिहासकार नहीं बता पाया है. स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं कि यह किला पांडवों ने अपने अज्ञातवास के दौरान बनाया था. जबकि किन्नौर का कुछ पढ़ा-लिखा तबका इस बात का कटाक्ष कर कहते हैं कि किले के अंदर बने कक्ष बहुत छोटे हैं, जिनमें पांडवों जैसे बड़े शरीर वाले लोग नहीं रह सकते और अज्ञातवास के दौरान पांडव गुप्त इलाकों में रहते थे, जबकि किला चारों ओर से दिखता है.
वहीं, स्थानीय लोगों का कहना है कि हजारों साल पूर्व लाबरंग गांव में ठाकुरों का राज था और ठाकुरों ने इस किले का निर्माण किया था. किले से ठाकुर अपने इलाके से चारों तरफ दुश्मनों पर नजर रख सकते थे. लाबरंग के लोग बताते हैं कि इस किले के साथ और भी किले थे जिन्हें बाद में ग्रामीणों ने ध्वस्त कर दिया.
लाबरंग शासित ठाकुरों के पास काफी सोना-चांदी होता था, जिसके साक्ष्य आज भी किले के अंदर हैं. किले के आसपास ठाकुरों के पुराने लकड़ी के मकान व राशन भंडारण के छोटे-छोटे घर आज भी देखने को मिलते है, जिससे ये साबित होता है कि ठाकुर शासन लाबरंग गांव में भरपूर फूल रहा था. ठाकुरों का राज पहले लाबरंग से लेकर कई अन्य ग्रामीण क्षेत्रों तक होता था.
किन्नौर में मंदिर लाब्रांग किला |
किले की नक्काशी व आकार
तीन हजार फीट की ऊंचाई पर बने इस किले को पुराने पत्थर व लकड़ियों से बनाया गया है. लाबरंग के लोगों का कहना है कि इस किले का निर्माण एक ही रात में हुआ था. किले को बड़े-बड़े लकड़ी के जोड़ व पत्थरों की चिनाई कर बनाया गया है. बताया जाता है कि पहले ये किला सात मंजिल का था, लेकिन कई वर्ष पूर्व किले के पास रहने वाले जमीनदार के मकान में आग लगते देख स्थानीय लोगों ने किले को बचाने के लिए ऊपर की दो मंजिलों की मिट्टी निकालकर इस आग पर काबू पाया था, जिसके बाद किला पांच मंजिला रह गया. किले में सरकार द्वारा मिट्टी की जगह स्लेट की छत का नवनिर्माण किया गया. किले के मुख्य द्वार पर लोहे के मोटे जंजीर लगा हुआ है, जो ऊपर के अंतिम कक्ष तक जुड़ा होता था और जब मुख्य द्वार को खोला जाता था तो ऊपरी कक्ष में इसका पता चल जाता था. किले के दरवाजे में अंदर से भी एक पौराणिक कला की लकड़ी का छह फीट लंबा ताला बना है.
लाबरंग किले का आकार देखने में चौखट है, जो चारों तरफ से देखने पर बराबर नजर आता है. इसका छत पत्थरों के स्लेट से बना है. किले की सबसे निचली मंजिल से एक गुप्त मार्ग है, जो करीब 100 मीटर लंबा है और सीधे लाबरंग गांव के जमीन के अंदर से होते हुए एक प्राकृतिक जल स्त्रोत व वस्त्र धोने के घाट पर निकलता है. बताया जाता है कि ठाकुरों के समय में उनके नौकर इस गुप्त मार्ग से ठाकुरों के लिए जल लाने व वस्त्रों को धोने के लिए घाट तक जाते थे.
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