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हरा पिसी लूँण: गाँव की परंपराओं का जीवंत चित्रण
हमारी पारंपरिक जीवनशैली और संस्कृति की गहराई को समझना और संजोना महत्वपूर्ण है। आपकी कविता "हरा पिसी लूँण" इस बात का एक सुंदर उदाहरण है कि कैसे एक साधारण लेकिन महत्वपूर्ण खाद्य सामग्री हमारे अतीत की यादें और परंपराएँ संजोए हुए होती है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम आपकी कविता के माध्यम से गाँव की पुरानी यादों और परंपराओं को फिर से जीवंत करेंगे।
गाँव की पारंपरिक यादों और हरे पिसी लूँण की कहानी: एक कवि की दृष्टि
हरा पिसी लूँण
सिल में पिसती हरी खुशयाणी,
चम्मच भर जीरा, हरे धनिया
की पत्तियाँ, लहसन,
अदरक, और काला नमक,
सिर्फ इतने से नहीं बनता
हरा पिसी लूँण
और भी मिलता है बहुत कुछ
इसमें दिखती है.....
पानी लाती पन्यारी की गागरी,
घास लाती घस्यारी की दरांती,
खाना पकाती रस्यारी के चूल्हे से निकला धूँआ।
हरा पिसी लूँण
सजाता है मड़ुवे की रोटी को
घ्यौं दगड़,
सानता है ठुल से नींबू को
चटपटे स्वाद संग,
काकड़ी, मालटा, सेब, खूँबानी
सब के गुरूर को बढ़ाता है
हरा पिसी लूँण।
समेट लेता है
खुशयाणी पिसती आम्मा
के बौय्याट को,
माट दगड़ खेल रहे
ननतिनों के चिच्याट को,
कैंजा, काकी, ईजा, आम्मा
के सिस्याट को।
जो बरसो तलक
बल, पहाड़ों की माली बनी हुई है।
हरा पिसी लूँण
दूर हो रहा अब
रसोई के डब्बों से,
गुम हो चुका
अम्मा के साड़ी की गांठ से ,
जैसे गुम हो रही पूर्वजों की सौगाध,
जैसे पहाड़ों से धूमिल हो रहे
हरे-भरे संस्कार,
हरा पिसी लूँण
आम्मा के साड़ी की गांठ से
समा चुका प्लास्टिक के पालीथीन में।
जैसे आम्मा का नाती
समा चुका स्वादहीन हो चुकी
सभ्यता के नगरों में।
विश्लेषण और भावना:
इस कविता में आपने हरे पिसी लूँण के माध्यम से गाँव की पारंपरिक जीवनशैली और संस्कृति को चित्रित किया है। सिल में पिसी हरी सामग्री, घर के कामकाज की पारंपरिक वस्त्र, और रसोई में झलकती पुरानी परंपराएँ सभी मिलकर एक जीवंत चित्रण प्रस्तुत करती हैं।
आपने कविता के माध्यम से यह भी दर्शाया है कि कैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ और वस्त्र आधुनिकता के प्रभाव में बदलते जा रहे हैं। प्लास्टिक और स्वादहीनता की ओर बढ़ते समाज के साथ, पुरानी परंपराएँ और खाद्य पदार्थों की महत्ता कम होती जा रही है।
यह कविता हमें याद दिलाती है कि हमारी संस्कृति और परंपराओं को संजोना कितना महत्वपूर्ण है, ताकि हम अपनी पहचान और इतिहास को खोने से बचा सकें।
निष्कर्ष:
"हरा पिसी लूँण" केवल एक खाद्य सामग्री का वर्णन नहीं है, बल्कि यह एक जीवनशैली, एक संस्कृति, और एक समय की कहानी है। इस कविता के माध्यम से हम अपने अतीत की गहराई को समझ सकते हैं और इसे संजोने का प्रयास कर सकते हैं।
यहाँ भी पढ़े
- कविता का शीर्षक है आपणी गौ की पुराणी याद(The title of the poem is Purana Yaad of Aapni Gau )
- इस कविता द्वारा घर #गाँव की #भूली #बिसरी #पुरानी यादो को स्मरण करने का प्रयास किया गया है।
- कविता का शीर्षक है "आपणी गौ की पुराणी याद"
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