धतिया नगाड़ा: गढ़वाल-कुमाऊं की प्राचीन संचार परंपरा - Dhatia Nagada: The Ancient Communication Tradition of Garhwal-Kumaon
धाद (आवाज लगाना) और धतिया नगाड़ा: गढ़वाल-कुमाऊं की प्राचीन संचार परंपरा
उत्तराखंड के गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में प्राचीन समय में सूचनाओं का प्रसारण आज के जैसे साधनों के अभाव में एक विशेष तरीके से किया जाता था। धाद (जोरदार आवाज) लगाना और धतिया नगाड़ा बजाना उस दौर का संचार माध्यम था। चाहे राजा को अपने राज्य में आपदा की चेतावनी देनी हो या किसी विशेष कार्य की सूचना प्रसारित करनी हो, धतिया नगाड़ा एक प्रभावी तरीका था। इस लेख में हम धतिया नगाड़े की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्ता पर प्रकाश डालते हैं।
धतिया नगाड़ा: प्राचीन सूचना प्रणाली
धतिया या धदिया शब्द का अर्थ है ऐसी जोरदार ध्वनि उत्पन्न करना जो दूर-दूर तक सुनाई दे। यह ध्वनि किसी विशेष कार्य की सूचना देने के लिए या आपदा की चेतावनी के रूप में प्रयोग की जाती थी। गढ़वाल-कुमाऊं के राजवंशों जैसे रोहिल्ला, कत्यूरी, चंद और पंवार के दौर में यह नगाड़ा बजाकर सूचना प्रसारित की जाती थी। इसे "दैन दमु" भी कहा जाता था क्योंकि इसे दाहिनी ओर से बजाया जाता था। वर्तमान में यह प्राचीन परंपरा अब कुछ ही स्थानों पर जीवित है।
15 किलो से अधिक वजनी नगाड़े
धतिया नगाड़ा दिखने में सामान्य नगाड़े की तरह ही होता था, लेकिन इसका आकार कहीं अधिक बड़ा और भारी होता था। इसका वजन अमूमन 15 किलो से अधिक होता था और पुड़े का व्यास लगभग डेढ़ फीट हुआ करता था। कुमाऊं के जागेश्वर धाम में चंद राजाओं द्वारा चढ़ाया गया 16 किलो का नगाड़ा आज भी देखा जा सकता है। इसे "धती ढुंग" नामक पत्थर पर रखकर बजाया जाता था, जिससे इसकी ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई देती थी।
धती ढुंग: नगाड़े के लिए विशेष स्थान
धतिया नगाड़ा बजाने के लिए विशेष स्थान निर्धारित होते थे, जिन्हें "धती ढुंग" कहा जाता था। इन स्थानों को इसलिए चुना जाता था ताकि ध्वनि अधिकतम दूरी तक सुनाई दे सके। इसे लकड़ी के दो मोटे सोटों (लांकुड़) से बजाया जाता था, और इसकी ध्वनि दूर तक पहुंचती थी।
सहायक वाद्य यंत्र
धतिया नगाड़े के साथ अन्य वाद्य यंत्र भी बजाए जाते थे जैसे ढोल, दमाऊ, तुरही, नागफणी, रणसिंघा, भंकोर और कंसेरी। इन वाद्यों की ध्वनि नगाड़े के साथ मिलकर एक विशेष वीरता का माहौल बनाती थी, जिसे राजा की शक्ति और शासन की पहचान माना जाता था। इसे बजाने से पहले वाद्यों की विधिवत पूजा की जाती थी।
भैंसे की खाल से बनता था नगाड़े का पुड़ा
धतिया नगाड़े का पुड़ा भैंस की खाल से तैयार किया जाता था। इसके लिए 4-5 साल के भैंसे की खाल को चुना जाता था। खाल को तेल में भिगाकर नर्म और मजबूत किया जाता था ताकि डंडे की मार से फटे नहीं। पुड़ा की नरमी बरकरार रखने के लिए साल में 3-4 बार इस पर तेल या घी लगाया जाता था।
पिथौरागढ़ का सबसे बड़ा नगाड़ा
पिथौरागढ़ के कनार गांव में स्थित भगवती कोकिला मंदिर में उत्तराखंड का सबसे बड़ा धतिया नगाड़ा मौजूद है। इसका वजन 22 धानी (एक विशेष माप) है और इसे मंदिर के मेले के दौरान बजाया जाता है। यह नगाड़ा मां भगवती की पूजा के समय बजाया जाता है और इस नगाड़े की ध्वनि क्षेत्र में प्रतिष्ठा और परंपरा का प्रतीक है।
नगाड़े पर लगती है नौबत
उत्तराखंड के प्रमुख मंदिरों में आज भी नौबत (नौ प्रकार की ध्वनि) लगाने के लिए नगाड़ा बजाने की परंपरा जारी है। नौबत बजाने का मुख्य उद्देश्य लोक को जागृत करना है। पुराने समय में आपदा, उत्सव या अनुष्ठान के दौरान नगाड़े की ध्वनि से सूचना प्रसारित की जाती थी। आज भी मंदिरों में यह प्राचीन परंपरा जीवित है, जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।
निष्कर्ष
धतिया नगाड़ा न केवल एक वाद्य यंत्र है, बल्कि यह प्राचीन संचार प्रणाली और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है। गढ़वाल-कुमाऊं की पारंपरिक जीवनशैली में इसका महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हालांकि, आधुनिक संचार साधनों के आ जाने के बाद इसकी प्रासंगिकता कम हो गई है, लेकिन इसके ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
Frequently Asked Questions (FAQs) "धाद (आवाज लगाना) और धतिया नगाड़ा: गढ़वाल-कुमाऊं की प्राचीन संचार परंपरा"
1. धतिया नगाड़ा क्या है?
धतिया नगाड़ा एक विशेष वाद्य यंत्र है जिसे गढ़वाल और कुमाऊं क्षेत्रों में प्राचीन समय में सूचना प्रसारण के लिए बजाया जाता था। इसका मुख्य उद्देश्य आपदा की चेतावनी देना या किसी विशेष कार्य की सूचना लोगों तक पहुँचाना था।
2. धतिया नगाड़ा क्यों बजाया जाता था?
धतिया नगाड़ा को राजाओं के शासनकाल में आपदा की चेतावनी देने, युद्ध की तैयारी, और महत्वपूर्ण सूचना प्रसारित करने के लिए बजाया जाता था। यह प्राचीन संचार प्रणाली का एक प्रभावी तरीका था।
3. धतिया नगाड़े का आकार और वजन कितना होता था?
धतिया नगाड़ा आम तौर पर 15 किलो से अधिक भारी होता था और इसका पुड़ा लगभग डेढ़ फीट व्यास का होता था। यह बड़े और भारी आकार का होता था ताकि इसकी ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई दे सके।
4. धतिया नगाड़ा कहां बजाया जाता था?
धतिया नगाड़ा बजाने के लिए विशेष स्थान तय किए जाते थे, जिन्हें "धती ढुंग" कहा जाता था। ये स्थान अधिकतम ध्वनि प्रसारण के लिए उपयुक्त होते थे।
5. नगाड़े का पुड़ा किससे बनता था?
नगाड़े का पुड़ा भैंस की खाल से बनता था, जिसे तेल में भिगोकर मजबूत और लचीला बनाया जाता था ताकि डंडे से मारने पर यह फटे नहीं।
6. क्या धतिया नगाड़े के साथ अन्य वाद्य यंत्र बजाए जाते थे?
हां, धतिया नगाड़े के साथ ढोल, दमाऊ, तुरही, रणसिंघा, भंकोर जैसे वाद्य यंत्र भी बजाए जाते थे, जो इसकी ध्वनि को और भी प्रभावी बनाते थे।
7. पिथौरागढ़ में सबसे बड़ा धतिया नगाड़ा कहां स्थित है?
पिथौरागढ़ के कनार गांव में स्थित भगवती कोकिला मंदिर में उत्तराखंड का सबसे बड़ा धतिया नगाड़ा है, जिसका वजन 22 धानी है। इसे मंदिर के मेले के दौरान बजाया जाता है।
8. क्या आज भी धतिया नगाड़ा बजाने की परंपरा जारी है?
हां, आज भी उत्तराखंड के प्रमुख मंदिरों में नगाड़े की ध्वनि सुनाई देती है, खासकर नौबत बजाने की परंपरा में, जिसका उद्देश्य लोक को जागृत करना और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखना है।
9. क्या धतिया नगाड़ा आजकल भी उपयोग में है?
आजकल धतिया नगाड़े का उपयोग कम हो गया है क्योंकि आधुनिक संचार साधन विकसित हो गए हैं, लेकिन इसका ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व अभी भी बनाए रखा गया है।
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