घुघुती( Ghughuti, a bird of Uttrakhand)
घुघुती( Ghughuti, a bird of Uttrakhand)
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घुघुती उत्तराखंड में पाए जाने वाला एक अद्भुत, बहुत ही प्यारा, सीधा साधा पक्षी है और इसकी सुरीली आवाज भी उतनी ही सुहावनी लगती है। घुघूती की आवाज सुनने के लिए लोग तरस जाते हैं, जो एक बार की घुघुती के सुरीली घुरून( आवाज) सुन ले, वो कभी भी घुघुती को भूल नहीं सकता है और इसकी उस सुरीली आवाज को सुनने के लिए बार बार जी करता है।
घुघुती अधिकतर उत्तराखंड की पहाडियों में पायी जाती है, इसकी सुरीली आवाज केवल चैत के महीने से सुननी शुरु हो जाती है, प्रसिद्ध कुमाऊँनी लोकगायक स्वर्गीय #गोपाल_बाबू_गोस्वामी जी ने अपनी सुरीली आवाज में घुघूती पर एक गीत गया है:-
"घुघुती ना बासा, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा, तेर घुरु घुरू सुनी मै लागू उदासा
स्वामी मेरो परदेसा, बर्फीलो लदाखा, घुघुती ना बासा
घुघुती ना बासा, आमे कि डाई मा घुघुती ना बासा।"
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[ घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की, बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु,ऋतु चैत की ] [ घुघुती( Ghughuti, a bird of Uttrakhand) ] [ घुघुती पक्षी (उत्तराखंड का शांत और सुंदर पक्षी घुघूति, इस पर पहाड़ी गीतों की कईं पंक्तियाँ में से कुछ )] [ भिटौली " " हमारी सांस्कृतिक पहचान "] [ भिटौली – उत्तराखण्ड में महिलाओं को समर्पित एक विशिष्ट परम्परा] [ भिटौली " " हमारी सांस्कृतिक पहचान "]
घुघुती( Ghughuti, a bird of Uttrakhand) |
घुघुती क्या है?
- पहाड़ी घुघुती का रूप कबूतर से काफी मिलता है।
- यह आकर में कबूतर से छोटी होती है।
- इसके पंख में सफ़ेद चित्तिदार धब्बे होते है।
घुघुती से जुड़ी लोकगाथा
कहते है कि प्राचीनकाल में एक भाई अपनी बहन से मिलने उसके ससुराल गया था। जब वह बहन के घर पँहुचा तब बहन गहन निंद्रा में थी। उसकी नींद में खलल डालना भाई को अच्छा नहीं लगा। भाई रातभर घर के बाहर बहन के जागने की प्रतीक्षा करता रहा। बहन जागी नहीं तो उसे सोता हुआ छोड़कर वापिस लौट गया। जब बहन की नींद खुली तो उसने अपनी माँ के बनाए पाकवान और मिष्ठान रखे देखें। लोगो ने उसे बताया कि उसका भाई आया था। वह प्रतीक्षा करता रहा और अंत में भूखे पेट ही लौट गया। इस बात से बहन को इतना दुःख हुआ कि उसने आत्मग्लानी के चलते अपने प्राण त्याग दिए।
कहते है कि यही बहन बाद में घुघुती बनी। आज भी घुघुती की आवाज़ में वहीं दर्द और पीड़ा झलकती है। कुमाऊँ अन्चल में मकर सक्रन्ती का त्यौहार भी घुघुती त्यौहार के रूप में मनाया जाता है। घुघुती पहाड़ के सबसे लोकप्रिय लोकगीतों का हिस्सा है।
घुघुती लोकगीत (किशन महिपाल)
पिंगर का झाला घुगुती ..पांगर का डाला घुगुती
ले घुर घुरान्दी घुगुती ..ले फुर उड़ान्दि घुगुती
ले टक लगान्दी घुगुती ..के रेंदी बिगांदी घुगुती ..
के देश की होली घुगुती ..के देश बे आई घुगुती ..
किंगर का झाला......होए होए ..
किंगर का झाला घुघूती ..पांगर का डाला घुघूती ..
ले घुर घुरन्दी घुघूती ..ले फुर उड़ान्दि घुगुती
तू कब बसदी घुगुती..तू कन बसानी घुगुती ...
तू मालु झाले की...होए होए ..
तू मालु झाले की घुगुती ..तू मालु रंग की घुगुती ..
बल चैत बैशाख घुगुती ..तू घुर घुरांदी घुगुती
जहांँ तक गढ़वाली लोकगीतों की शैली का प्रश्न है, सभी गीतों में शैली की एक सूत्रता नहीं मिलती। प्रत्येक वर्ग के गीतों की अपनी पृथक शैली होती है किंतु स्थूल रूप से प्रवधात्मक, वर्णात्मक, भावात्मक नामों के अंतरगर्त रखा जा सकता है।
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