घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की, बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु,ऋतु चैत की ( ghughuti ghurunn lagi myara maith ki, boudi-baudi agai ritu,ritu chait ki)

घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की, बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु,ऋतु चैत की ( ghughuti ghurunn lagi myara maith ki, boudi-baudi agai ritu,ritu chait ki)

घुघुती उत्तराखंड में देखा जाने वाला एक मनमोहक पक्षी है जो कि उत्तराखंड के गावो में आमतौर पर देखने को मिलता है। घुघुती की घुरुन की आवाज मनमोहित करने वाली होती है जिसको सुनने के बाद सायद ही भुला जा सके। उत्तराखंड के आम जनो में घुघुती के प्रति एक अलग प्रकार का प्रेम देखने को मिल जाता है। सांस्कृतिक लोकगीतों में भी घुघुती का बहुत अच्छा वर्णन मिलता है।

किंगर का झाला घुघूती, पांगर का झाला घुघूती,

घुघुती पक्षी 

नि बासा घुघुती 

चौकस निगाहें। अपने घोल (घोसले) में बैठी घुघुती (फाख्ता)। पहाड़ का प्यारा पक्षी है। असल में खुदेड़ गीतों की नायिका है घुघुती। घुघती घुरौण लेगे मेरा मैता कि... और घुघुती न बासा आमा कि डाइ मा घुघुती न बासा.. जैसे लोकगीत हर पहाड़ी के मन को झंकृत करते हैं।

घुघुती पक्षी 

घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की, बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु,ऋतु चैत की 
घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की, बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु,ऋतु चैत की, ऋतु,ऋतु चैत की 
डांणी कांठ्यूं को ह्यूं, गौली गै होलो, म्यारा मैता को बौण, मौली गै होलो 
डांणी कांठ्यूं को ह्यूं, गौली गै होलो, म्यारा मैता को बौण, मौली गै होलो 
चाकुला घोलू छोड़ि उड़णा ह्वाला, चाकुला घोलू छोड़ी उड़णा ह्वाला 
बैठुला मेतुड़ा कु, पैटणा ह्वाला 
घुघूती घुरूंण लगी हो… . 
घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु,ऋतु चैत की, ऋतु, ऋतु चैत की 
डाण्यूं खिलणा होला बुरसी का फूल, पाख्यूं हैंसणी होली फ्योली मुल-मुल 
डाण्यूं खिलणा होला बुरसी का फूल, पाख्यूं हैंसणी होली फ्योली मुल-मुल 
कुलारी फुल-पाति लैकि दैल्यूं- दैल्यूं जाला, कुलारी फुल-पाति लेकी, दैल्यूं- दैल्यूं जाला 
दगड़्या भग्यान थड़या-चौंफला लगाला 
घुघूती घुरूंण लगी हो… 
घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु,ऋतु चैत की, ऋतु, ऋतु चैत की 
तिबरि मां बैठ्या ह्वाला बाबाजी उदास, बाटु हैनी होली मांजी लागी होली सास 
तिबरि मां बैठ्या ह्वाला बाबाजी उदास, बाटु हैनी होली मांजी लागी होली सास 
कब म्यारा मैती औजी दिसा भैटि आला, कब म्यारा मैती औजी, दिसा भैटि आला 
कब म्यारा भै-बैंणों की राजि-खुशि ल्याला 
घुघूती घुरूंण लगी हो… 
घुघूती घुरूंण लगी म्यारा मैत की बौड़ी-बौड़ी ऐगै ऋतु ,ऋतु चैत की, ऋतु, ऋतु चैत की 
ऋतु, ऋतु चैत की, ऋतु, ऋतु चैत की ऋतु, ऋतु चैत की ऋतु, ऋतु चैत की
घुघुती पक्षी 

भावार्थ - फिर से चैत का महीना लौट आया है और मेरे मायके की घुघुती अपनी उदासी भरी आवाज में "घुंराणे" (आवाज करने) लगी है। मेरे मायके के सामने दिखने वाले पहाड़ों की बर्फ अब शायद पिघलने लगी होगी और जंगल पुन: पल्लवित होने लगे होंगे। नवजात पक्षी अब अपने घोंसलों से निकलकर उड़ने लगे होंगे, जंगलों में सुन्दर लाल बुरांश के फूल खिलने लगे होंगे। फूल और पत्तियां लेकर गांव के बच्चे सभी घरों की देहरियों पर जाकर पूजन कर रहे होंगे। [फूलदेई पर्व में देहरियाँ पूजी जाती हैं] और मेरे सौभाग्यशाली सहेलियां मिलकर उत्साह और उमंग से भरे थड़्या और चौंफुला नृत्यों में मग्न होंगी। मेरे मायके वाले घर की चौखट पर बैठे मेरे पिताजी उदास बैठे होंगे और मेरी बीमार माँ मेरी राह देखती होगी। मेरे मायके की तरफ़ से आने वाला कोई आदमी मेरे भाई-बहनों की राजी-खुशी की खबर ले आता तो कुछ तसल्ली मिलती।

पांख्यु हैसनी होली , फ्योली मुल मुल
डाँडो खिलना होला , बुरांसी का फूल
पांख्यु हैसनी होली , फ्योली मुल मुल
घुघुती घुरोण लगी मेरा मैत की..
बौडी बौडी एय गी ऋतू , ऋतू चेत की..
घुघुती घुरोण लगी मेरा मैत की..
बौडी बौडी एय गे ऋतू , ऋतू चेत की..

Frequently Asked Questions (FAQs)


1. घुघुती पक्षी क्या है?

उत्तर: घुघुती उत्तराखंड का एक मनमोहक पक्षी है, जो खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी आवाज, जिसे "घुरुन" कहा जाता है, सुनने में बहुत मीठी और आकर्षक होती है। यह पक्षी खास तौर पर लोकगीतों में अपनी उपस्थिति के लिए प्रसिद्ध है।

2. घुघुती की आवाज क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर: घुघुती की "घुरुन" आवाज को पहाड़ों में रहने वाले लोग बहुत पसंद करते हैं। यह आवाज इतनी प्यारी और हलकी होती है कि लोग इसे सुनकर मोहित हो जाते हैं। लोकगीतों में इसकी आवाज को लेकर कई भावनाएँ और यादें जुड़ी होती हैं।

3. "घुघुती घुरूंण लगी म्यारा मैत की" गाने का क्या मतलब है?

उत्तर: इस गीत का अर्थ है कि घुघुती का घुरुन अब फिर से सुनाई देने लगा है, जो चैत के महीने में होता है। यह गीत एक लड़की की भावनाओं को दर्शाता है, जो अपने मायके के बारे में सोच रही है, जहां घुघुती की आवाज फिर से गूंजने लगी है।

4. घुघुती और उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान में क्या संबंध है?

उत्तर: घुघुती पक्षी उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान का एक अभिन्न हिस्सा है। लोकगीतों और परंपराओं में इसे श्रद्धा और प्यार से देखा जाता है। इसका घुरुन जैसे गीतों में वर्णन होता है, जो पहाड़ी जीवन, प्रकृति और पारिवारिक संबंधों को दर्शाते हैं।

5. "भिटौली" का क्या अर्थ है और इसका घुघुती से क्या संबंध है?

उत्तर: "भिटौली" उत्तराखंड में महिलाओं को समर्पित एक विशेष परंपरा है। यह एक सांस्कृतिक पहचान है, जो खासकर पहाड़ी क्षेत्र की महिलाएं निभाती हैं। घुघुती और भिटौली का संबंध इस बात से है कि दोनों ही लोक गीतों में महिलाओं की भावनाओं और पर्वों को प्रमुखता से दर्शाया गया है।

6. "घुघुती घुरूंण लगी म्यारा मैत की" गाने में किस ऋतु का उल्लेख किया गया है?

उत्तर: इस गीत में "ऋतु चैत की" का उल्लेख है, जो वसंत ऋतु का समय है। यह समय जब नए फूल खिलते हैं और मौसम बदलता है, घुघुती की आवाज इस समय अधिक सुनाई देती है।

7. घुघुती के बारे में उत्तराखंड के लोकगीतों में क्या वर्णन मिलता है?

उत्तर: उत्तराखंड के लोकगीतों में घुघुती की आवाज का विशेष स्थान है। "घुघुती घुरूंण लगी म्यारा मैत की" जैसे गीतों में घुघुती की मीठी आवाज और उसकी उपस्थिति को पहाड़ी जीवन से जुड़ी भावनाओं और पारिवारिक रिश्तों के साथ जोड़ा गया है।

8. "घुघुती घुरूंण लगी म्यारा मैत की" गीत में "बौड़ी-बौड़ी ऐगै" का क्या मतलब है?

उत्तर: "बौड़ी-बौड़ी ऐगै" का मतलब है कि ऋतु का परिवर्तन हो रहा है, और खासकर चैत का महीना आ गया है, जो उत्तराखंड में खुशहाली और प्राकृतिक पुनर्निर्माण का प्रतीक है।

9. घुघुती की आवाज का उत्तराखंड में क्या सांस्कृतिक महत्व है?

उत्तर: उत्तराखंड में घुघुती की आवाज को एक सांस्कृतिक प्रतीक माना जाता है। इसे अक्सर प्रेम, मिलन, और पारिवारिक रिश्तों के साथ जोड़ा जाता है। इसके गीतों में पहाड़ी जीवन की सादगी और प्राकृतिक सुंदरता का विशेष रूप से चित्रण किया जाता है।

10. घुघुती की आवाज को सुनने पर क्यों लोग इसे कभी नहीं भूलते?

उत्तर: घुघुती की आवाज बहुत ही मीठी और मनमोहक होती है। यह आवाज प्रकृति के साथ एक विशेष संबंध स्थापित करती है और लोगों के दिलों में घर कर जाती है, जिससे इसे सुनने के बाद कोई भी इसे भूल नहीं पाता।

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