सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी: पहाड़ी खानपान की संजीवनी - Sisoon ki sabzi aur Manduve ki roti: The lifeline of Pahari food

सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी: पहाड़ी खानपान की संजीवनी

देवभूमि उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में कई प्राकृतिक तत्वों का खानपान में विशेष स्थान रहा है। सिसूण (बिच्छू घास) और मंडुवा (रागी) ऐसी ही दो खास खाद्य सामग्रियां हैं, जो न केवल स्वादिष्ट होती हैं, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी बेहद लाभकारी हैं। सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी जाड़ों के मौसम में दवा का काम करती हैं और इस पारंपरिक खानपान को उत्तराखंड के लोग आज भी बड़े गर्व से अपनाते हैं।

मंडुवा (रागी): पहाड़ों का पौष्टिक अनाज

मडुआ

पहले कभी मंडुवा को गरीबों का भोजन माना जाता था, लेकिन अब इसकी पौष्टिकता को जानकर यह बहुत लोकप्रिय हो गया है। मंडुवे में आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर की भरपूर मात्रा होती है, जो शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है और हड्डियों को मजबूत बनाता है। यही कारण है कि यह अब बाजार में गेहूं से भी महंगा हो गया है। मंडुवा खाने से न केवल शरीर को पौष्टिक तत्व मिलते हैं, बल्कि यह वजन नियंत्रित रखने और पाचन तंत्र को स्वस्थ बनाए रखने में भी मददगार होता है।

आज मंडुवे का आटा और साबुत दाना न केवल भारत में बल्कि विदेशों में भी आसानी से उपलब्ध है। उत्तराखंड, कर्नाटक, बिहार, और महाराष्ट्र के विभिन्न भागों में इसके बिस्कुट और अन्य व्यंजन भी बनाए जा रहे हैं। मंडुवे की बढ़ती लोकप्रियता ने इसके उत्पादन को भी प्रोत्साहित किया है।

सिसूण (बिच्छू घास): आयुर्वेदिक गुणों से भरपूर

सिसूण को उत्तराखंड के लोग एक औषधीय पौधा मानते हैं, जो कई स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करता है। इसमें आयरन, फोरमिक एसिड, एसटिल कोलाइट, और विटामिन ए जैसे तत्व प्रचुर मात्रा में होते हैं, जो खून की कमी दूर करते हैं। सिसूण के सेवन से पीलिया, पेट के रोग, खांसी-जुकाम, और मोटापे जैसी समस्याओं में राहत मिलती है। यह किडनी संबंधी बीमारियों में भी फायदेमंद साबित होता है। पुराने समय में उत्तराखंड के लोग नियमित रूप से सिसूण का सेवन करते थे, जिससे उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती थी और वे लंबी उम्र तक स्वस्थ जीवन जीते थे।

सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी का महत्व

सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी का सेवन खासकर जाड़ों के मौसम में शरीर को गर्म रखने और विभिन्न बीमारियों से बचाव में मदद करता है। इन पारंपरिक व्यंजनों को न केवल स्वाद के लिए, बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी महत्व दिया जाता है। इन दोनों का संयोजन उत्तराखंड के पहाड़ी जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है।

सिसूण पर एक सुंदर कविता

सिसूंण
उल्ट लै सुल्ट लै,
सिसूंणक पात।
बचि बे रया हो
बुकै द्यौल हात।
भ्यो पन बाड़ पन
बुडि़ आमाक छान पन
सिसूंणाक बुज हुनी
गद्ध्याराक किनार पन।
सिसूंण छुगुंनै मैस
बौयी ज जानी
के लैक न्है यकै
मुख को लगूनी।
तसि बात न्है हो
यैक गुण गाओ
सिसूंणक साग तुम
ह्यून में खाओ।
बिलैंत में मैस यैक
रस लै पिनी पै
हमार यां मैस यकं
ल्याखै नि लगून पै।
कस कस नानतिन
सिसूंणल सुधारी भै
छौ छाइ सबै यैकं
देखि भाजनेर भै।
कस कस भिसूंण लै
सिसूंण खाय भाजनी
बचै बे धरिया यकं
यौ पहाडै़कि संजीवनी।

निष्कर्ष

सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी उत्तराखंड के पहाड़ी खानपान का अभिन्न हिस्सा हैं। इनका सेवन स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभकारी है और यह पहाड़ी लोगों की लंबे समय तक स्वस्थ जीवन जीने की एक प्रमुख वजह भी रही है। आज के युग में भी हमें इन पारंपरिक खाद्य पदार्थों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए, ताकि हम भी उनके औषधीय गुणों का लाभ उठा सकें।

FAQ's सिसूण की सब्जी और मंडुवे की रोटी (Nettle Soup) - पहाड़ी खानपान की संजीवनी 

प्रश्न 1: सिसूण की सब्जी क्या है, और इसे खाने के क्या लाभ हैं?
उत्तर: सिसूण की सब्जी उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाने वाली बिच्छू घास से बनाई जाती है। इसमें आयरन, फोरमिक एसिड, एसटिल कोलाइट, और विटामिन ए होते हैं, जो खून की कमी दूर करने, हड्डियों को मजबूत बनाने और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार होते हैं।

प्रश्न 2: मंडुवे की रोटी में कौन-कौन से पोषक तत्व होते हैं?
उत्तर: मंडुवे की रोटी में आयरन, कैल्शियम, प्रोटीन और फाइबर की अच्छी मात्रा होती है। यह शरीर को ऊर्जा देने के साथ हड्डियों को भी मजबूत बनाती है और पाचन तंत्र को स्वस्थ रखती है।

प्रश्न 3: जाड़ों में सिसूण और मंडुवे का सेवन विशेष रूप से फायदेमंद क्यों माना जाता है?
उत्तर: जाड़ों में सिसूण और मंडुवे का सेवन शरीर को गर्म रखने में मदद करता है और सर्दी-खांसी जैसी मौसमी बीमारियों से बचाव में सहायक होता है। इनके औषधीय गुण और पोषण तत्व ठंड के मौसम में शरीर को अतिरिक्त ताकत प्रदान करते हैं।

प्रश्न 4: क्या मंडुवा अब केवल पहाड़ी क्षेत्रों तक सीमित है?
उत्तर: नहीं, मंडुवा (रागी) की पौष्टिकता को जानकर अब इसे पूरे भारत में और विदेशों में भी पसंद किया जा रहा है। इसका आटा और अन्य उत्पाद बाजारों में आसानी से उपलब्ध हैं, और लोग इसे अपनी डाइट में शामिल कर रहे हैं।

प्रश्न 5: सिसूण की सब्जी बनाने की विधि क्या है?
उत्तर: सिसूण की कोमल पत्तियों को अच्छी तरह धोकर कड़ाही में तेल, प्याज, और मसाले के साथ पकाया जाता है। जब यह अच्छी तरह से गल जाती है, तो इसे पराठों, चावल या मंडुवे की रोटी के साथ परोसा जाता है।

प्रश्न 6: मंडुवे की रोटी को नियमित आहार में क्यों शामिल करना चाहिए?
उत्तर: मंडुवे की रोटी आयरन और फाइबर से भरपूर होती है, जो हृदय स्वास्थ्य के लिए अच्छी है और वजन नियंत्रित करने में भी सहायक होती है। इसे नियमित आहार में शामिल करने से शरीर को आवश्यक पोषण मिलता है और लंबे समय तक तंदुरुस्त रहने में मदद मिलती है।

प्रश्न 7: क्या सिसूण का सेवन करने से कोई सावधानी रखनी चाहिए?
उत्तर: सिसूण के पत्तों में कांटे होते हैं, इसलिए इन्हें अच्छी तरह धोकर और पकाकर ही खाना चाहिए। इसे सीधे हाथ से छूने पर खुजली हो सकती है, इसलिए हाथों पर दस्ताने पहनना बेहतर होता है।

प्रश्न 8: मंडुवा और गेहूं में क्या अंतर है?
उत्तर: मंडुवा गेहूं की तुलना में अधिक पोषक होता है, खासकर कैल्शियम और फाइबर के मामले में। यह आसानी से पचता है और मधुमेह के रोगियों के लिए भी उपयुक्त माना जाता है, जबकि गेहूं का सेवन हर व्यक्ति के लिए नहीं होता।

प्रश्न 9: सिसूण पर आधारित कविता का क्या महत्व है?
उत्तर: सिसूण पर आधारित कविता में सिसूण के महत्व और उसकी विशेषता को दर्शाया गया है। यह कविता पहाड़ी संस्कृति और परंपराओं को संजोए रखने का एक प्रयास है।

प्रश्न 10: सिसूण और मंडुवा उत्तराखंड के पारंपरिक खानपान का महत्वपूर्ण हिस्सा क्यों माने जाते हैं?
उत्तर: सिसूण और मंडुवा उत्तराखंड के कठिन जीवन और ठंडी जलवायु के अनुसार उपयुक्त भोजन हैं। इनके औषधीय और पोषक तत्व पहाड़ी लोगों को ठंड से बचाने और स्वस्थ रखने में सहायक होते हैं

यहाँ भी पढ़े

  1. सर्दियों में भट्ट की दाल के अलग-अलग जायके - Different flavours of bhatt dal in winter
  2. पहाड़ी पिज्जा (मडुआ का पिज्जा)- Pahari Pizza (Madua's Pizza)

टिप्पणियाँ

Popular Posts

Pahadi A Cappella 2 || Gothar Da Bakam Bham || गोठरदा बकम भम || MGV DIGITAL

एक कहानी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की

Pahadi A Cappella 2 || Gothar Da Bakam Bham || गोठरदा बकम भम || MGV DIGITAL

कुमाऊँनी/गढ़वाली गीत : धूली अर्घ (Kumaoni/Garhwali Song : Dhuli Argh)

माँगल गीत : हल्दी बान - मंगल स्नान ( Mangal Song : Haldi Ban - Mangal Snan)