श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् - shree suryamandalastotram

श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम्

नमः सवित्रे जगदेकचक्षुषे जगत्रसूतिस्थिति नाशहेतवे।
त्रयीमयाय त्रिगुणात्मधारिणे विरञ्चि नारायणशङ्करात्मने ॥१॥

यन्मण्डलं दीप्तिकरं विशालं रत्नप्रभं तीव्रमनादिरूपम्‌।
दारिद्र्यदुःक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुवरेण्यम्‌ ॥२॥

यन्मण्डलं देवगणैः सुपूजितं विप्रः स्तुतं भावनमुक्ति कोविदम्‌।
तं देवदेवं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुवरेण्यम्‌ ॥३॥

यन्मण्डलं ज्ञानघनं त्वगम्यं त्रैलोक्यपूज्यं त्रिगुणात्मरूपम्‌।
समस्ततेजोमयदिव्यरूपं पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्‌ ॥४॥

यन्मण्डलं गूढमति प्रबोधं धर्मस्य वृद्धि कुरुते जनानाम्‌।
यत्सर्वपापक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुवरेण्यम्‌ ॥५॥

यन्मण्डलं व्याधिविनाशवक्षं यदुग्यज्ः सामसु सम्प्रगीतम्‌।
प्रकाशितं येन च भूर्भुवः स्वः पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्‌ ॥६॥

यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्धसज्ञाः।
यद्योगिनो योगजुषां च सङ्गा पुनातु मां तत्सवितुवरेण्यम्‌ ॥७॥

यन्मण्डलं सर्वजनेषु पूजितं ज्योतिश्च कुर्यादिह मर्त्यलोके।
यत्काल कल्पक्षयकारणं च पुनातु मां तत्सवितुवरेण्यम्‌ ॥८॥

यन्मण्डलं विश्वसृजां प्रसिद्मुत्पत्तिरक्षाप्रलयप्रगल्भम्‌।
यस्मिन्‌ जगत्‌ संहरतेऽखिलं च पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्‌ ॥९॥

यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा परं धाम विशुद्धतत्त्व।
सूक्ष्मान्तरैर्योगपथानुगम्यं पुनातु मां तत्सवितुर्वरण्यम्‌ ॥१०॥

यन्मण्डलं वेदविदो वदन्ति गायन्ति यच्चारणसिद्वसङ्घाः।
यन्मण्डलं वेदविदः स्मरन्ति पुनातु मां तत्सवितुवरेण्यम्‌ ॥११॥

यन्मण्डलं वेदविदोपगीतं यघोगिनां योगपथानुगम्यम्‌।
तत्सर्ववेदं प्रणमामि सूर्य पुनातु मां तत्सवितुर्वरेण्यम्‌ ॥१२॥

मण्डलात्मकमिद पुण्यं यः पठेत्‌ सततं नरः।
सर्वपापविशुद्धात्मा सूर्यलोके महीयते ॥१३॥

इति श्रीमदादित्य हृदये मण्डलात्मकं स्तोत्रं सम्पूर्णम्‌ ॥


श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम्‌ - भगवान सूर्य के महात्म्य का स्तोत्र

भगवान सूर्य, जो जगत्‌ के एकमात्र नेत्र (प्रकाशक) हैं, संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के कारण हैं, उन वेदत्रयीस्वरूप, सत्त्वादि तीनों गुणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन रूप धारण करने वाले भगवान सूर्य को नमस्कार है।

यह स्तोत्र भगवान सूर्य के दिव्य रूप और उनकी शक्ति का वर्णन करता है। सूर्यमण्डलस्तोत्रम् के माध्यम से हम भगवान सूर्य से आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं, जो जीवन के सभी अंधकार को दूर करते हुए आत्मा को शुद्ध करते हैं।

सूर्यमण्डलस्तोत्रम् के श्लोक

  1. श्लोक 1: जो जगत्‌ के एकमात्र नेत्र (प्रकाशक) हैं, संसार की उत्पत्ति, स्थिति और प्रलय के कारण हैं, उन वेदत्रयीस्वरूप, सत्त्वादि तीनों गुणों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश नामक तीन रूप धारण करने वाले भगवान सूर्य को नमस्कार है।

  2. श्लोक 2: जो प्रकाश करने वाला, विशाल रत्नों के समान प्रभाव वाला, तीव्र, अनादिरूप और दारिद्रथ-दुःख के नाश का कारण है, भगवान सूर्य का वह श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  3. श्लोक 3: जिनका मण्डल देवगण से अच्छी प्रकार पूजित है, ब्राह्मणों से स्तुत है, और भक्तों को मुक्ति देने वाला है, उन देवाधिदेव भगवान सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ, उनका वह श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  4. श्लोक 4: जो ज्ञानघन, अगम्य, त्रिलोकीपूज्य, त्रिगुणस्वरूप, तेजोमय और दिव्यरूप है, वह भगवान सूर्य का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  5. श्लोक 5: जो सूक्ष्म बुद्धि से जानने योग्य है और सम्पूर्ण मनुष्यों के धर्म की वृद्धि करता है तथा जो सम्पूर्ण पापों का नाश करता है, भगवान सूर्य का वह श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  6. श्लोक 6: जो रोगों का विनाश करने में समर्थ है, तथा ऋक्‌, यजुः और साम-इन तीनों वेदों में सम्यक रूप से गाया गया है एवं जिसने भूः, भुवः और स्वः-इन तीनों लोकों को प्रकाशित किया है, वह भगवान सूर्य का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  7. श्लोक 7: वेदज्ञाता लोग जिसका वर्णन करते हैं, चारणों और सिद्धों के समूह ने जिसका गान किया है तथा योग का सेवन करने वाले और योगी लोग जिसका गुणगान करते हैं, भगवान सूर्य का वह श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  8. श्लोक 8: जो समस्त जनों में पूजित है, इस मर्त्यलोक में प्रकाश करता है तथा काल और कल्प के क्षण का कारण भी है, वह सूर्य भगवान का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  9. श्लोक 9: जो संसार की सृष्टि करने वाले ब्रह्मा आदि में प्रसिद्ध है, जो संसार की उत्पत्ति, रक्षा एवं प्रलय करने में समर्थ है और जिसमें समस्त जगत् लीन हो जाता है, वह भगवान सूर्य का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  10. श्लोक 10: जो सर्वान्तर्यामी भगवान विष्णु की आत्मा, विशुद्ध तत्त्व वाला परमधाम है और सूक्ष्म बुद्धि वालों के द्वारा योगमार्ग से गमन करने योग्य है, वह भगवान सूर्य का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  11. श्लोक 11: वेद के जानने वाले जिसका वर्णन करते हैं, चारण और सिद्धगण जिनको गाते हैं और वेदज्ञलोग जिसका स्मरण करते हैं, वह सूर्य भगवान का श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  12. श्लोक 12: जिनका मण्डल वेदवेत्ता के द्वारा गाया गया है और जो योगियों से योगमार्ग द्वारा अनुगमन करने योग्य है, उन सब वेदों के स्वरूप भगवान सूर्य को प्रणाम करता हूँ। उनका वह श्रेष्ठ मण्डल मुझे पवित्र करे।

  13. श्लोक 13: जो पुरुष परम पवित्र इस सूर्यमण्डलात्मक स्तोत्र का पाठ करता है, वह सब पापों से मुक्त हो विशुद्धचित्त होकर सूर्यलोक में प्रतिष्ठा पाता है।

अर्थ एवं महत्व:

श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् सूर्य के महान प्रभाव और दिव्य गुणों का गान करता है। यह स्तोत्र सूर्य के प्रकाश और शक्ति के विभिन्न पहलुओं का वर्णन करता है, जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में त्रिगुणात्मा हैं। इस स्तोत्र में सूर्य के उस परम मण्डल की पूजा की जाती है, जो ज्ञान, स्वास्थ्य, शक्ति, और समृद्धि का कारण है।

यह स्तोत्र न केवल शारीरिक, मानसिक, और आध्यात्मिक शुद्धि का कारण है, बल्कि यह पापों के नाश और आत्मा की शुद्धि का भी एक उत्तम उपाय है। यह सूर्य के मण्डल को प्रणाम करने और उसकी शक्ति से शुद्धि प्राप्त करने के लिए अत्यंत लाभकारी है।

यदि कोई व्यक्ति नियमित रूप से इस स्तोत्र का पाठ करता है, तो वह सूर्य लोक में प्रतिष्ठित होता है और सभी पापों से मुक्त होकर अत्यधिक पुण्य प्राप्त करता है।


नोट: इस स्तोत्र का पाठ करते समय न केवल शारीरिक स्वास्थ्य में सुधार होता है, बल्कि मानसिक और आत्मिक उन्नति भी होती है। सूर्य की उपासना से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और व्यक्ति के सभी कार्य सफल होते हैं।

FAQs (Frequently Asked Questions) – श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम्

Q1: श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् क्या है?
Ans: श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् भगवान सूर्य को समर्पित एक पवित्र स्तोत्र है, जिसमें सूर्यदेव के दिव्य स्वरूप, उनकी शक्ति, और उनके आशीर्वाद का वर्णन किया गया है। यह स्तोत्र भक्तों को आत्मा की शुद्धि, स्वास्थ्य, और आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करता है।


Q2: श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् का पाठ करने के लाभ क्या हैं?
Ans:

  • शारीरिक रोगों से मुक्ति
  • मानसिक शांति और शक्ति की प्राप्ति
  • आत्मा की शुद्धि और पापों का नाश
  • सकारात्मक ऊर्जा का संचार
  • सूर्यलोक में स्थान प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करता है

Q3: इस स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
Ans:

  • इस स्तोत्र का पाठ सूर्योदय के समय, स्नान के बाद, पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।
  • पाठ के दौरान भगवान सूर्य को जल चढ़ाना (अर्घ्य देना) शुभ माना जाता है।
  • नियमित रूप से पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।

Q4: क्या यह स्तोत्र सभी पढ़ सकते हैं?
Ans: हाँ, श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् सभी के लिए है। इसे किसी भी जाति, धर्म, और लिंग के लोग पढ़ सकते हैं। इसका उद्देश्य सभी के लिए ज्ञान, शांति, और उन्नति प्रदान करना है।


Q5: क्या सूर्यमण्डलस्तोत्रम् का वैज्ञानिक लाभ भी है?
Ans:

  • सूर्य उपासना से विटामिन डी की प्राप्ति होती है।
  • मानसिक तनाव कम होता है।
  • सकारात्मक सोच और ऊर्जा में वृद्धि होती है।
  • शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है।

Q6: श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् का धार्मिक महत्व क्या है?
Ans:

  • यह त्रिगुणात्मक सूर्यदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की शक्ति का गान करता है।
  • यह स्तोत्र वैदिक ज्ञान का संकलन है और मोक्ष प्राप्ति का साधन है।
  • यह व्यक्ति के जीवन में धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष को संतुलित करता है।

Q7: क्या श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् के साथ विशेष अनुष्ठान करना आवश्यक है?
Ans: नहीं, यह स्तोत्र अपने आप में पूर्ण है। लेकिन यदि इसे विशेष अनुष्ठानों (जैसे सूर्य अर्घ्य, हवन) के साथ किया जाए, तो यह अधिक प्रभावशाली हो सकता है।


Q8: श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् में कितने श्लोक हैं?
Ans: इस स्तोत्र में कुल 13 श्लोक हैं, जो सूर्यदेव के विभिन्न स्वरूपों और उनकी महिमा का वर्णन करते हैं।


Q9: श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् को किसने रचा?
Ans: श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् के रचनाकार का सटीक उल्लेख नहीं है, लेकिन इसे वैदिक परंपरा का हिस्सा माना जाता है और यह प्राचीन ऋषियों द्वारा रचित है।


Q10: क्या यह स्तोत्र पापों का नाश करता है?
Ans: हाँ, इस स्तोत्र का नियमित पाठ व्यक्ति के सभी पापों का नाश करता है और उसे शुद्ध हृदय के साथ आध्यात्मिक प्रगति की ओर ले जाता है।


Q11: क्या यह स्तोत्र धन-समृद्धि में मदद करता है?
Ans: हाँ, श्री सूर्यमण्डलस्तोत्रम् का पाठ जीवन से दरिद्रता और कष्टों को दूर करता है, और व्यक्ति को धन-समृद्धि और सफलता प्रदान करता है।


Q12: क्या इस स्तोत्र को सूर्य ग्रहण के दौरान पढ़ा जा सकता है?
Ans: सूर्य ग्रहण के दौरान किसी भी प्रकार के मंत्र, स्तोत्र या जप को करने से अधिक फल प्राप्त होता है। इसलिए इस स्तोत्र का पाठ शुभ होता है।


Q13: क्या इस स्तोत्र को पाठ करने से मोक्ष प्राप्त हो सकता है?
Ans: हाँ, यह स्तोत्र व्यक्ति को मोक्ष मार्ग पर ले जाने में सहायक है, क्योंकि यह आत्मा की शुद्धि और जीवन के बंधनों को काटने में सहायक है।

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