पलेठी सूर्य मंदिर: उत्तराखंड का प्राचीन और अद्भुत धरोहर (Palehti Sun Temple: An ancient and wonderful heritage of Uttarakhand.)
पलेठी सूर्य मंदिर: उत्तराखंड का प्राचीन और अद्भुत धरोहर
उत्तराखंड में स्थित एक अद्भुत सूर्य मंदिर का इतिहास बहुत कम लोगों को ज्ञात है। यह मंदिर टिहरी जिले के हिंडोलाखाल विकासखंड के पलेठी गांव में स्थित है और इसे उत्तराखंड के सबसे प्राचीन सूर्य मंदिरों में गिना जाता है। इसका स्थापत्य काल पुरातत्वविदों द्वारा छठी से सातवीं शताब्दी के बीच माना जाता है। पलेठी सूर्य मंदिर की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए, यह मंदिर न केवल धार्मिक बल्कि सांस्कृतिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
मंदिर का इतिहास और स्थापना
पलेठी सूर्य मंदिर की स्थापना के बारे में विशेषज्ञों का मानना है कि इसका निर्माण 675 से 700 ईस्वी के मध्य हुआ था। यह मंदिर फांसणा शैली में निर्मित है और इसका शिखर 12 क्षैतिज पत्थरों से बना हुआ है। मंदिर की कुल ऊंचाई 7.50 मीटर है। इस मंदिर का सबसे आकर्षक हिस्सा है, मंदिर के प्रवेश द्वार पर सात घोड़ों के रथ पर सवार सूर्यदेव की पत्थर से बनी भव्य मूर्ति। इस मूर्ति की ऊंचाई लगभग 1.2 मीटर है और यह अपने आप में अद्भुत और कलात्मक है।
इस मंदिर में अन्य देवताओं की मूर्तियाँ भी हैं, जिनमें सूर्यदेव के अलावा शिव, पार्वती और अन्य प्रमुख देवताओं की छोटी-छोटी प्रतिमाएं शामिल हैं। मंदिर का शिलालेख, जो ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है, यह संकेत देता है कि यह क्षेत्र प्राचीन भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल था।
मंदिर का महत्व और संरक्षा
इस मंदिर के महत्व को देखते हुए, 1968 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधिकारियों ने इस स्थल का निरीक्षण किया और इसके बाहरी रखरखाव का जिम्मा तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार को सौंपा। इसके बावजूद, यह मंदिर आज भी जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है। मंदिर का शिलालेख और अन्य संरचनाएँ भले ही समय के साथ नष्ट हो गईं हों, लेकिन मंदिर की भव्यता और ऐतिहासिक महत्व आज भी जिंदा है।
स्थानीय निवासियों और शोधकर्ताओं के अनुसार, इस मंदिर में पूजा का आयोजन होता है, लेकिन समय के साथ यह पूजा स्थल अब लगभग बंद हो चुका है। मंदिर परिसर में कुछ खंडहर भी पाए जाते हैं, जो अन्य देवताओं के मंदिरों के अवशेष हो सकते हैं।
आधुनिक विकास और यात्रा
हालांकि, पलेठी सूर्य मंदिर की स्थिति नाजुक है, लेकिन हाल ही में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत मंदिर के 70 मीटर नजदीक तक सड़क का निर्माण किया गया है, जिससे यहां आने वाले श्रद्धालुओं और शोधार्थियों के लिए यात्रा आसान हो गई है। यह विकास स्थानीय समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण बन चुका है, जिससे भविष्य में मंदिर के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।
सूर्य देवता की पूजा और आस्था
पलेठी सूर्य मंदिर में सूर्य देवता की पूजा मुख्य रूप से माघ महीने में सूर्य षष्ठी के दिन होती है, जब विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन, गांव वाले अपनी नई फसल सूर्य देवता को समर्पित करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। इसके अलावा, मंदिर के आस-पास के लोग सूर्य देवता के चमत्कारी प्रभावों के प्रति आस्था रखते हैं और मानते हैं कि सूर्य देवता की पूजा से उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
निष्कर्ष
पलेठी सूर्य मंदिर उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस मंदिर का स्थापत्य और ऐतिहासिक महत्व इसे न केवल उत्तराखंड बल्कि पूरे भारत के प्राचीन मंदिरों के बीच एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। हालांकि वर्तमान में इसका संरक्षण एक बड़ी चुनौती है, फिर भी इसके ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए इसे बचाने के लिए और कदम उठाए जाने की आवश्यकता है।
यह मंदिर न केवल स्थानीय लोगों के लिए बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक अमूल्य धरोहर है, जो भारतीय संस्कृति और धार्मिक विश्वासों को सशक्त बनाता है।
पलेठी सूर्य मंदिर से संबंधित Frequently Asked Questions (FQCs)
पलेठी सूर्य मंदिर कहाँ स्थित है?
- पलेठी सूर्य मंदिर उत्तराखंड के टिहरी जिले के हिंडोलाखाल विकासखंड के पलेठी गांव में स्थित है। यह मंदिर वनगढ़ क्षेत्र में 5 किलोमीटर की दूरी पर है।
पलेठी सूर्य मंदिर का इतिहास क्या है?
- इस मंदिर की स्थापना छठी से सातवीं शताब्दी के बीच मानी जाती है। पुरातत्वविदों का मानना है कि मंदिर का निर्माण 675 से 700 ईस्वी के बीच हुआ था।
पलेठी सूर्य मंदिर का स्थापत्य क्या है?
- यह मंदिर फांसणा शैली में बना है और इसका शिखर 12 क्षैतिज पत्थरों से निर्मित है। मंदिर की कुल ऊंचाई 7.50 मीटर है। प्रवेश द्वार पर सात घोड़ों के रथ पर सूर्यदेव की एक भव्य मूर्ति स्थित है।
पलेठी सूर्य मंदिर के शिलालेख में क्या लिखा है?
- मंदिर के शिलालेख में राजा कल्याण बर्मन और आदि बर्मन का उल्लेख है, जिसे ब्राह्मी लिपि में लिखा गया है। यह लिपि छठी से सातवीं शताब्दी के दौरान प्रचलित थी।
क्या पलेठी सूर्य मंदिर में पूजा होती है?
- हां, पलेठी सूर्य मंदिर में सूर्य देवता की पूजा मुख्य रूप से माघ महीने में सूर्य षष्ठी के दिन होती है। इस दिन, स्थानीय लोग विशेष पूजा आयोजित करते हैं।
पलेठी सूर्य मंदिर तक कैसे पहुँचा जा सकता है?
- पलेठी सूर्य मंदिर तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के तहत 70 मीटर तक सड़क का निर्माण कार्य पूरा हो चुका है।
क्या पलेठी सूर्य मंदिर के आस-पास और अन्य मंदिर भी हैं?
- हाँ, पलेठी सूर्य मंदिर के अलावा वहां एक शिव मंदिर भी है। इसके अलावा, कुछ छोटे खंडहर भी मंदिर परिसर में स्थित हैं, जो अन्य देवताओं के उपासना स्थल हो सकते हैं।
पलेठी सूर्य मंदिर का संरक्षण किसके द्वारा किया जा रहा है?
- पलेठी सूर्य मंदिर का बाहरी रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन है। हालांकि, मंदिर की हालत जीर्ण-शीर्ण हो चुकी है, लेकिन इसे संरक्षित रखने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं।
पलेठी सूर्य मंदिर का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व क्या है?
- पलेठी सूर्य मंदिर भारतीय संस्कृति और धार्मिक आस्थाओं का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। यह मंदिर स्थानीय लोगों के लिए आस्था का केंद्र है और भारतीय प्राचीन मंदिरों का एक अद्वितीय उदाहरण प्रस्तुत करता है।
क्या पलेठी सूर्य मंदिर के शिलालेख को संरक्षित किया जा रहा है?
- पलेठी सूर्य मंदिर का शिलालेख जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, लेकिन इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए, इसके संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं।
- पलेठी सूर्य मंदिर का शिलालेख जीर्ण-शीर्ण अवस्था में है, लेकिन इसके ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए, इसके संरक्षण के प्रयास किए जा रहे हैं।
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