श्री आदित्य हृदय स्तोत्रम्: सूर्य उपासना का दिव्य रहस्य (Shri Aditya Hriday Stotra: The Divine Secret of Sun Worship)
श्री आदित्य हृदय स्तोत्रम्: सूर्य उपासना का दिव्य रहस्य
श्री आदित्य हृदय स्तोत्रम्
शतानीक उवाच
कथमादित्यमुद्यन्तमुपतिष्ठेद् दिजोत्तम।
एतन्मे ब्रूहि विप्रेन्द्र प्रपद्ये शरणं तव ॥ १ ॥
श्री शतानीक ने कहा-हे द्विजोत्तम ! उदीयमान सूर्य का उपस्थान कैसे किया जाए, कृपया मुझे बताएं। हे विप्रेन्द्र ! मैं आपकी शरण में हूँ। आप मुझे बताएं ॥ १ ॥
सुमन्तुरुवाच
इदमेव पुरा पृष्टः शंख चक्र गदाधरः।
प्रणम्य शिरसा देवमर्जुनेन महात्मनः ॥ २ ॥
कुरुक्षेत्रे महाराज निवृत्ते भारते रणे।
कृष्णनाथं समासाद्य प्रार्थयित्वाऽब्रवीदिदम् ॥ ३ ॥
श्री सुमन्तु ने कहा-यह बात पहले समय में अर्जुन ने देव श्रीकृष्ण को दण्डवत् प्रणाम करके पूछी थी। हे महाराज ! महाभारत के युद्ध के समाप्त होने पर श्रीकृष्ण से अर्जुन ने प्रार्थना करते हुए पूछा ॥ २-३ ॥
अर्जुन उवाच
ज्ञानं च धर्मशास्त्राणां गुह्याद्गुह्यतरं तथा।
मया कृष्णपरिज्ञातं वाङ्मयं सचराचरम ॥ ४ ॥
सूर्य स्तुतिमयं न्यासं वक्तुमर्हसि माधव।
भक्त्या पृच्छामि देवेश कथयस्व प्रसादतः ॥ ४ ॥
सूर्य भक्तिं करिष्यामि कथं सूर्य ग्रपूज्येत ।
तदह श्रोतुमिच्छामि त्वत्प्रसादेन यादव ॥ ६ ॥
अर्जुन कहता है-हे महाराज कृष्ण ! मैंने धर्मशास्त्रों का अति गोपनीय ज्ञान को पूर्ण रूप से जान लिया है। हे माधव ! आप सूर्य स्तुति तथा न्यास को कहिए। में भक्तिपूर्वक पूछता हूं आप प्रसन्न होकर प्रसाद स्वरूप बताएँ। हे यादव ! मैं सूर्य की भक्ति करना चाहता हूँ अतः आपसे सूर्य की पूजा करने का विधि-विधान सुनना चाहता हँ, आप प्रसाद रूप में मुझे बताएँ ॥ ४-६ ॥
श्री भगवानुवाच
रुद्रादिदैवतैः सर्वैः पुष्टेन कथितं मया।
वक्ष्येऽहं सूर्य विन्यासं शृणु पाण्डवयत्नतः ॥ ७ ॥
अस्माकं यत्त्वया पृष्टमेकचित्तो भवार्जुन।
तदहं संप्रवक्ष्यामि आदि मध्यावसानकम् ॥ ८ ॥
श्री भगवान् ने कहा-हे पाण्डव रुद्र आदि देवताओं के पूछने पर, जो मैंने न्यास कहा था वह मैं विधिपूर्वक कहता हूँ तुम ध्यान से सुनो। हे अर्जुन ! जो तुमने हमसे पूछा है वह मैं तुम्हें आदि, मध्य और अन्त सहित सब कहूँगा। तुम यत्न से सुनो ॥ ७-८ ॥
अर्जुन उवाच
नारायण सुरश्रेष्ठ पृच्छामि त्वां महायशाः।
कथमादित्यमु्न्तमुपतिष्ठेत् सनातनम् ॥ ६ ॥
अर्जुन ने कहा-हे नारायण ! हे सुरश्रेष्ठ ! महाशय मैं आपसे श्री सूर्य भगवान् के 'उपस्थान के विषय में जानना चाहता हूँ ॥ ६ ॥
श्री भगवानुवाच
साधु पार्थ महाबाहो बुद्धिमानसि पाण्डव।
यन्मां पृच्छस्युपस्थानं तत्पवित्रं विभावसोः ॥ १० ॥
श्री भगवान् बोले-हे पार्थ ! हे सखा ! हे महाबाहो ! तुम बुद्धिमान हो क्योंकि तुम मुझसे सूर्य के पवित्र उपस्थान के विषय में पूछ रहे हो, जो कि सबको पवित्र कर देता है ॥ १० ॥
श्री भगवान् उवाच
सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम् ।
सर्वरोगप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् ॥ ११ ॥
अमित्रदमनं पार्थ संग्रामे जयवर्धनम् ।
वरदन धनपुत्राणामादित्यहदयं शृणु ॥ १२ ॥
श्री भगवान् कहते हैं-हे अर्जुन ! यह सब मंगलों में मांगल्य प्रदान करने वाला है। यह सब पापों का नाश करने वाला है। सब प्रकार के रोगों को दूर करने वाला है और आयु को बढ़ाने वाला है। हे पार्थ ! यह शत्रुओं को नष्ट कराने वाला, संग्राम में विजय प्राप्त कराने वाला, धन और पुत्र की वृद्धि कराने वाला है इस आदित्य हृदय स्तोत्र को सुनो ॥ ११-१२ ॥
यच्छुत्वा सर्वपापेभ्यो मुच्यते नात्र संशयः
न्िषुलोकेषु विख्यातं निःश्रेयसकरं परम् ॥ १३ ॥
देव देवं नमस्कृत्य प्रातरुत्थाय चार्जुन।
विघ्नान्यनेक रूपाणि नश्यन्ति स्मरणादपि ॥ १४ ॥
आगे श्री भगवान् कहते हैं कि इसमें कोई सन्देह नहीं है इस स्तोत्र को सुनकर मनुष्यमात्र सब प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है, यह तीनों लोकों में विख्यात और महान् कल्याणकारी है। हे अर्जुन ! सुबह उंठकर सूर्यदेव को प्रणामः करने और दर्शन मात्र से ही सभी विघ्न-बाधाएँ नष्ट हो जाती हैं ॥ १३-१४ ॥
तस्मात् सर्व प्रयत्नेन सूर्यमावाहयेत् सदा
आदित्यहृदयं नित्यं जाप्यं तच्छुणु पाण्डव ॥ १५ ॥
यज्जपान्मुच्यते जन्तुर्दारिद्रयादाशुदुस्तरात् ।
लभते च महासिद्धिं कुष्ठ व्याधि विनाशनम् ॥ १६ ॥
श्री भगवान् अर्जुन को बताते हुए कहते हैं कि सब यत्नों से सूर्य भगवान् की आराधना करनी चाहिए एवं प्रतिदिन आदित्य हृदय का जप व पाठ करना चाहिए। इसके जप करने से साधक को सब प्रकार की विपन्नता दूर होकर सुख-वैभव की प्राप्ति होती है तथा कुष्ठ व अन्य बीमारियाँ भी समूल नष्ट होकर आरोग्य हो जाता है॥ १५-१६ ॥
अस्मिन् मन्त्रे ऋषिशच्छन्दो देवता शक्तिरेव चः
सर्वमेव महाबाहो कथयामि तवाग्रतः ॥ १७ ॥
मया ते गोपितं न्यासं सर्वशास्त्रप्रबोधितम् ।
अय ते कथयिष्यामि उत्तमं मन्त्रमेव च ॥ १८ ॥
श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे महाबाहो ! इस मन्त्र में ऋषि छन्द देवता और शक्ति हैं वह सब कुछ मैं तुमसे कहता हूँ। सभी धर्मशास्त्रों उत्त न्यास एव उत्तम मन्त्र भी मैं तुमको बताता हूँ ॥ १७-१८ ॥
अथ विनियोग मंत्र
ॐ अस्य श्रीआदित्यहदयस्तोत्रमन्त्रस्य।
श्रीकृष्ण ऋषिः श्रीसूर्यात्मा त्रिभुवनेश्वरो देवता।
अनुष्टुप् छन्दः हरित हय रथं दिवाकरं घृणिरिति बीजम्।
नमो भगवते जितवैश्वानर जातवेदसे इति शक्तिः।
ॐ नमो भगवते आदित्याय नमः इति कीलकम्।
ड अग्नि गर्भ देवता इत्यस्त्रम्।
ॐ नमो भगवते तुभ्यमादित्याय नमो नमः।
शरीसूर्यनारायण प्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।
यह विनियोग मंत्र सूर्य देवता की पूजा का मूल मंत्र है, जिसमें सूर्य के मंत्र, उनके रथ, बीज, शक्तियों, और अस्त्र का उल्लेख किया गया है। यह मंत्र सूर्य देव के आशीर्वाद और कृपा के लिए जपते समय प्रयोग किया जाता है।
अथ अङ्गन्यासः
यह अङ्गन्यास मंत्र शरीर के विभिन्न अंगों में सूर्य देवता के प्रभाव को महसूस करने के लिए किया जाता है। यहाँ पर हर अंग के लिए विशेष रूप से मंत्र दिए गए हैं, जिनका जाप अंग अंग में ध्यानपूर्वक किया जाता है।
- हां अहुष्ठाभ्यां नमः
- हीं तर्जनीभ्यां नमः
- हूं मध्यमाभ्यां नमः
- ॐ हैं अनामिकाभ्यां नमः
- हौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः
- हः करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः
- ॐ हां हृदयाय नमः
- हीं शिरसे स्वाहा
- ॐ हूं शिखायै वषट्
- हैं कवचाय हुम्
- ॐ हों नेत्रत्रयाय वोषट्
- हः अस्त्राय फट्
यह न्यास शरीर के विभिन्न अंगों में सूर्य के प्रभाव और आशीर्वाद को समाहित करता है।
अथ ध्यानम्
ध्यान में सूर्य देवता का चित्रण किया गया है। उनके रूप, तेज, आभूषण, और दिव्य शक्ति का बखान किया गया है, ताकि भक्त उन्हें ध्यान में लाकर उनकी आराधना करें।
भास्वद्रत्नाठ्यमौलिः स्फुरदधर रुचारज्जितश्चारू केशो,
भास्वान् यो दिव्यतेजाः करकमलयुतः स्वर्णवर्णप्रभाभिः।
विश्वाकाशावकाशग्रहपति शिखरे भाति यश्चोदयाद्रौ,
सर्वानन्दप्रदाता हरिहरनमितः पातु मां विश्वचक्षुः॥
यह श्लोक सूर्य देव की दिव्य ज्योति और आभा को दर्शाता है, साथ ही यह प्रार्थना भी करता है कि सूर्य देव भक्त की रक्षा करें।
अथ यन्त्रोद्धारः
यंत्रों का निर्माण और उनका उच्चारण सूर्य देव की पूजा में महत्व रखता है। अष्टदल कमल में प्रणव की स्थापना की जाती है और प्रत्येक दल पर सूर्य देवता के नाम अंकित किए जाते हैं।
आदित्यं-भास्करं भानुं रविं सूर्य दिवाकरम्।
मार्तण्डं तपनं चेति दलेष्वष्टसु योजयेत्।
यह यंत्र स्थापित करने के बाद आगे के श्लोकों का जाप किया जाता है।
सूर्य देवता के मंत्र
इन मंत्रों का जप सूर्य देवता की शक्ति और कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। यह उन दिव्य गुणों और शक्तियों का आह्वान करता है जो सूर्य देवता की पूजा में समाहित होते हैं।
दीप्ताः सूक्ष्मा जया भद्रा विभूतिर्विमला तथा।
अमोघा विद्युता चेति मध्ये श्रः सर्वतोमुखी।
यह श्लोक सूर्य देवता की दिव्य शक्ति और उनके गुणों को व्यक्त करता है।
Frequently Asked Questions (FAQ)
1. आदित्य हृदय स्तोत्र क्या है?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र एक महत्वपूर्ण स्तोत्र है जिसे श्री राम ने रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए श्री अग्नि देवता से प्राप्त किया था। इसमें सूर्य देव की स्तुति की जाती है और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए विशेष मंत्र होते हैं।
2. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ किस समय करना चाहिए?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ सूर्योदय के समय या प्रातः काल किया जाता है, जब सूर्य देवता की उपासना का महत्व विशेष रूप से बढ़ जाता है। इसे नियमित रूप से करने से जीवन में सुख-शांति, समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
3. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करने से क्या लाभ होता है?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करने से पापों का नाश होता है, आयु में वृद्धि होती है, रोगों का नाश होता है, और जीवन में सुख-शांति आती है। यह शत्रुओं से विजय प्राप्त करने, धन और संतान की प्राप्ति, और मानसिक शांति के लिए अत्यंत लाभकारी है।
4. क्या आदित्य हृदय स्तोत्र को किसी विशेष परिस्थिति में पढ़ना चाहिए?
उत्तर: हां, आदित्य हृदय स्तोत्र को विशेष रूप से कठिन परिस्थितियों, मानसिक तनाव, या शत्रुओं से लड़ने के लिए पढ़ा जा सकता है। यह एक अत्यंत शक्तिशाली स्तोत्र है जो सभी प्रकार की विघ्न-बाधाओं से मुक्ति दिलाता है।
5. आदित्य हृदय स्तोत्र के कौन से मंत्र महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र के मंत्रों में प्रमुख मंत्र यह हैं:
- "ॐ सूर्याय नमः"
- "ॐ आदित्याय नमः"
- "ॐ भास्कराय नमः" इन मंत्रों का जाप करने से सूर्य देव का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन की समस्याओं का समाधान होता है।
6. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कब से हुआ था?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र का उल्लेख महाभारत के 'आदित्य हृदय' अध्याय में किया गया है, जहां इसे भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया था। इसे महर्षि व्यास द्वारा संकलित किया गया था, और यह सूर्य देव के पूजन और आराधना का अत्यंत महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।
7. आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ के बाद क्या कोई विशेष ध्यान करना चाहिए?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ के बाद भक्त को ध्यान और साधना में संलग्न रहना चाहिए। अपने हृदय में सूर्य देवता की उपस्थिति महसूस कर ध्यान केंद्रित करें, जिससे उनके आशीर्वाद से जीवन में शांति और सकारात्मकता बनी रहे।
8. आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से किस प्रकार की समस्याओं का समाधान होता है?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र के पाठ से शारीरिक और मानसिक रोगों का उपचार, आर्थिक संकट का समाधान, शत्रुओं पर विजय प्राप्ति, और परिवार में सुख-शांति की स्थिति बनती है। यह विशेष रूप से उन लोगों के लिए लाभकारी है जो जीवन में कई प्रकार की समस्याओं का सामना कर रहे हैं।
9. क्या आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप किसी विशेष यंत्र या पूजा विधि के साथ करना चाहिए?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र का जाप सूर्य यंत्र के साथ करना और सूर्य देवता की पूजा विधि का पालन करना उत्तम रहता है। सूर्य यंत्र में सूर्य के बीज मंत्र, रथ और अस्त्र के मन्त्र होते हैं, जो जाप करते समय ध्यान में रखने चाहिए।
10. आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ कितने दिन तक किया जाना चाहिए?
उत्तर: आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ निरंतर किया जा सकता है। हालांकि, यदि कोई विशेष समस्या या संकट हो, तो 21 दिनों तक लगातार इसका जाप करने से सकारात्मक परिणाम मिलते हैं।
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