श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र
श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र
ऋषि: वेदव्यास
छन्द: अनुष्टुप
देवता: सविता (सूर्यदेव)
विनियोग: अभीष्ट सिद्धि के लिए।
स्तोत्र का माहात्म्य
श्लोक 5
य एतदादितः श्रुत्वा संग्रामं प्रविशेन्नरः।
स जित्वा समरे शत्रूनभ्येति गृहमक्षतः॥
अर्थ:
जो वीर पुरुष इस स्तोत्र को संग्राम में जाने से पहले सुनता है, वह शत्रुओं पर विजय प्राप्त करके बिना किसी चोट के अपने घर लौटता है।
श्लोक 6
वन्ध्यानां पुत्रजननं भीतानां भयनाशनम्।
भूतिकारि दरिद्राणां कुष्ठिनां परमौषधम्॥
अर्थ:
यह स्तोत्र बाँझ स्त्रियों को संतान प्रदान करता है, भय से ग्रस्त लोगों का भय नष्ट करता है, दरिद्रों को धन-सम्पत्ति देता है और कुष्ठ रोगियों के लिए श्रेष्ठ औषधि है।
श्लोक 7
बालानां चैव सर्वेषां ग्रहरक्षोनिवारणम्।
पठते संयतो राजन् स श्रेयः परमाप्नुयात्॥
अर्थ:
बालकों को अनिष्ट ग्रहों से मुक्ति दिलाता है। जो संयमपूर्वक इसका पाठ करता है, वह परम कल्याण को प्राप्त करता है।
श्लोक 8
स सिद्धः सर्वसंकल्पः सुखमत्यन्तमश्नुते।
धर्मार्थिभिर्धर्मलुब्धैः सुखाय च सुखार्थिभिः॥
अर्थ:
इसके पाठ से साधक के सभी संकल्प सिद्ध होते हैं, वह अपार सुख प्राप्त करता है। धर्मप्रिय व्यक्ति को धर्म और सुख की चाह रखने वाले को सुख प्रदान करता है।
श्लोक 9
राज्याय राज्यकामैश्च पठितव्यमिदं नरैः।
विद्यावहं तु विप्राणां क्षत्रियाणां जयावहम्॥
अर्थ:
जो राज्य की इच्छा रखते हैं, उन्हें राज्य प्रदान करता है। यह ब्राह्मणों को विद्या और क्षत्रियों को युद्ध में विजय प्रदान करता है।
श्लोक 10
पश्वावहं तु वैश्यानां शूद्राणां धर्मवर्द्धनम्।
पठतां श्रण्वतामेतद् भवतीति न संशयः॥
अर्थ:
वैश्यों को पशुधन और शूद्रों के धर्म का विस्तार करता है। इसका पाठ और श्रवण करने वाले का कल्याण सुनिश्चित है।
श्लोक 11
तच्छूणुष्व नृपश्रेष्ठ प्रयतात्मा ब्रवीमि ते।
नाम्नां सहस्त्रं विख्यातं देवदेवस्य भास्वतः॥
अर्थ:
हे नृपश्रेष्ठ! मैं आपको भगवान सूर्यनारायण के सहस्रनाम सुनाने जा रहा हूँ। इसे श्रद्धापूर्वक सुनें।
सूर्य सहस्रनाम
श्लोक 12-24
ॐ विश्वविद् विश्वजित्कर्ता विश्वात्मा विश्वतोमुखः।
विश्वेश्वरो विश्वयोनिर्नियतात्मा जितेन्द्रियः॥कालाश्रयः कालकर्ता कालहा कालनाशनः।
महायोगी महासिद्धिर्महात्मा सुमहाबलः॥प्रभुर्विभुर्भूतनाथो भूतात्मा भुवनेश्वरः।
भूतभव्योभावितात्मा भूतान्तःकरणं शिवः॥शरण्यः कमलानन्दो नन्दनो नन्दवर्द्धनः।
वरेण्यो वरदो योगी सुसंयुक्तः प्रकाशकः॥प्राप्तयानः परप्राणः पूतात्मा प्रयतः प्रियः।
नयः सहस्त्रपात् साधुर्दिव्यकुण्डलमण्डितः॥अव्यङ्गधारी धीरात्मा सविता वायुवाहनः।
समाहितमतिर्दाता विधाता कृतमङ्गलः॥कपर्दी कल्पपाद् रुद्रः सुमना धर्मवत्सलः।
समायुक्तो विमुक्तात्मा कृतात्मा कृतिनां वरः॥अविचिन्त्यवपुः श्रेष्ठो महायोगी महेश्वरः।
कान्तः कामारिरादित्यो नियतात्मा निराकुलः॥सप्तसप्तिरचिन्त्यात्मा महाकारुणिकोत्तमः।
संजीवनो जीवनाथो जयो जीवो जगत्पतिः॥अयुक्तो विश्वनिलयः संविभागी वृषध्वजः।
वृषाकपिः कल्पकर्ता कल्पान्तकरणो रविः॥एकचक्ररथो मौनी सुरथो रथिनां वरः।
सक्रोधनो रश्मिमाली तेजोराशिर्विभावसुः॥दिव्यकृद दिनकृद देवो देवदेवो दिवस्पतिः।
दीनानाथो हरो होता दिव्यबाहुर्दिवाकरः॥यज्ञो यज्ञपतिः पूषा स्वर्णरेताः परावरः।
परापरज्ञस्तरणि रश्मिमाली मनोहरः॥
सूर्य सहस्त्रनाम स्तोत्र
(भाग 2)
25.
राज्ञः प्राज्ञपतिः सूर्यः सविता विष्णुरंशुमान्।
सदागतिर्गन्धवहो विहितो विधिराशुगः॥
भावार्थ:
यह स्तोत्र राजाओं के लिए कल्याणकारी है। सूर्यदेव प्रजापति, विष्णु के स्वरूप, और अनंत किरणों के स्वामी हैं। वे सदा गतिशील, सुगंध फैलाने वाले, विहित नियमों के रक्षक और तीव्र गति वाले हैं।
26.
पतङ्गः पतगः स्थाणुर्विहङ्गो विहगो वरः।
हर्यश्वो हरिताश्वश्च हरिदश्वो जगत्प्रियः॥
भावार्थ:
सूर्यदेव को पतंग, स्थिर, पक्षी, और श्रेष्ठ विहंग कहा गया है। उनके रथ को हरे रंग के घोड़े खींचते हैं, और वे समस्त जगत के प्रिय हैं।
27.
त्रयम्बकः सर्वदमनो भावितात्मा भिषुगवरः।
आलोककृल्लोकनाथो लोकालोकनमस्कृतः॥
भावार्थ:
त्रिनेत्रधारी सूर्यदेव सभी को नियंत्रित करते हैं। वे पवित्र आत्मा, रोगहर, प्रकाश फैलाने वाले, और लोकों के स्वामी हैं। समस्त लोक उनका नमन करते हैं।
28.
कालः कल्पान्तको वहिस्तपनः सम्प्रतापनः।
विलोचनो विरूपाक्षः सहस्त्राक्षः पुरंदरः॥
भावार्थ:
सूर्य काल के ज्ञाता, कल्पांत में संहार करने वाले, और तपन के स्वामी हैं। वे सहस्र नेत्रों वाले और विश्व को प्रकाशित करने वाले हैं।
29.
सहस्त्ररश्मिमिं हिरो विविधाम्बरभूघषणः।
खगः प्रतर्दनो धन्यो हयगो वागुविशारदः॥
भावार्थ:
सूर्यदेव की सहस्त्र किरणें संसार को प्रकाशित करती हैं। वे खग (गति वाले), ज्ञान देने वाले, और श्रेष्ठ वक्ता हैं।
30.
श्रीमानशिशिरो वाग्मी श्रीपतिः श्रीनिकेतनः।
श्रीकण्ठः श्रीधरः श्रीमान् श्रीनिवासो वसुप्रदः॥
भावार्थ:
वे श्रीमान, शीतलता देने वाले, और श्रेष्ठ वक्ता हैं। वे लक्ष्मीपति, ऐश्वर्य के स्थान, और धन के दाता हैं।
31.
कामचारी महामायो महोग्रोऽविदितामयः।
तीर्थक्रियावान् सुनयो विभक्तो भक्तवत्सलः॥
भावार्थ:
सूर्यदेव इच्छाओं को पूर्ण करने वाले, महामाया, और अदृश्य रोगों का नाश करने वाले हैं। वे तीर्थों की यात्रा कराने वाले, भक्तों के प्रति दयालु हैं।
32.
कीर्तिः कीर्तिकरो नित्यः कुण्डलीकवची रथी।
हिरण्यरेताः सप्ताश्वः प्रयतात्मा परंतपः॥
भावार्थ:
वे कीर्ति के दाता, सदैव गतिशील, रथ के स्वामी और सात घोड़ों वाले हैं। वे पवित्र आत्मा और शत्रुओं के संहारक हैं।
33.
बुद्धिमानमरश्रेष्ठो रोचिष्णुः पाकशासनः।
समुद्रो धनदो धाता मान्धाता कश्मलापहः॥
भावार्थ:
वे बुद्धिमान, श्रेष्ठ अमर, प्रकाश देने वाले, और पापों को हरने वाले हैं। वे धन, ज्ञान, और सुख के दाता हैं।
34.
तमोघ्नो ध्वान्तहा वहिर्होतान्तकरणो गुहः।
पशुमान् प्रयतानन्दो भूतेशः श्रीमतां वरः॥
भावार्थ:
सूर्यदेव अज्ञान को मिटाने वाले, तमस का नाश करने वाले, और अंतःकरण को पवित्र करने वाले हैं। वे पशुधन के स्वामी और सुख के दाता हैं।
35.
नित्योदितो नित्यरथः सुरेशः सुरपूजितः।
अजितो विजितो जेता जङ्गमस्थावरात्मकः॥
भावार्थ:
वे सदैव उदित होने वाले, देवताओं के पूजनीय, और अजेय विजेता हैं। वे स्थावर और जंगम प्राणियों के आत्मस्वरूप हैं।
36.
जीवानन्दो नित्यगामी विजेता विजयप्रदः।
पर्जन्योऽिगनः स्थितिः स्थेयः स्थविरोऽथ निरंजनः॥
भावार्थ:
वे जीवों को आनंद देने वाले, नित्य गतिमान, और विजय प्रदान करने वाले हैं। वे पवित्र और सनातन हैं।
37.
प्रथ्योतनो रथारूढ़ः सर्वलोक प्रकाशकः।
ध्रुवो मेषी महावीर्यो हंसः संसारतारकः॥
भावार्थ:
सूर्यदेव सब लोकों को प्रकाशित करने वाले, रथ पर आरूढ़, और संसार को पार कराने वाले हैं।
38.
सृष्टिकर्ता क्रियाहेतुर्मार्तण्डो मरुतां पतिः।
मरुत्वान् दहनस्त्वष्टा भगो भर्गोऽर्यमा कपिः॥
भावार्थ:
वे सृष्टि के कर्ता, कार्यों के हेतु, और वायु तथा अग्नि के स्वामी हैं। वे तेजस्वी और दानशील हैं।
39.
वरुणेशो जगन्नाथः कृतकृत्यः सुलोचनः।
विवस्वान् भानुमान् कार्यः कारणस्तेजसां निधिः॥
भावार्थ:
सूर्यदेव वरुण, जगत के स्वामी, और सुंदर नेत्र वाले हैं। वे तेज के स्रोत और सभी कार्यों के कर्ता हैं।
सहस्त्रदीधितिर््र्नः सहस्त्राशुर्दिवाकरः ॥४०॥
गभस्तिमान् दीधितिमान् स्रग्वी मणिकुलद्युतिः ।
भास्करः सुरकार्यज्ञः सर्वज्ञस्तीक्ष्णदीधितिः ॥४१॥
सुरज्येष्ठः सुरपतिर्वहुज्ञो वचसाम्पतिः।
तेजोनिधिर्वृहत्तेजा बृहत्कीर्तिर्बृहस्पतिः ॥४२॥
अहिमानूर्जितो धीमानामुक्तः कीर्तिवर्द्धनः ।
महविद्यो गणपतिर्धनेशो गणनायकः ॥४३॥
तीव्रः प्रतापनस्तापी तापनो विश्वतापनः ।
कार्तस्वरो हृषीकेशः पद्मानन्दोऽतिनन्दितः ॥४४॥
पद्मनाभोऽमृताहारः स्थितिमान् केतुमान् नभः।
अनाययन्तोऽच्युतो विश्वो विश्वामित्रो घुणिर्विराट् ॥४५॥
आमुक्तकवचो वाग्मी कञ्चुकी विश्वभावनः।
अनिमित्तयतिः श्रेष्ठः शरण्यः सर्वतोमुखः ॥४६॥
विगाही वेणुरसहः समायुक्तः समाक्रतुः।
धर्मकेतुर्धर्मरतिः संहर्ता संयमो यमः॥४७॥
प्रणतार्तिहरो वायुः सिद्धकार्यो जनेश्वरः।
नभो विगाहनः सत्यः सवितात्मा मनोहरः॥४८॥
हारी हरिर्हरो वायुर्ऋतुः कालानलद्युतिः।
सुखसेव्यो महातेजा जगतामेककारणम् ॥४९॥
महेन्द्रो विष्टुतः स्तोत्रं स्तुतिहेतुः प्रभाकरः।
सहस्त्रकर आयुष्मान् रोगदः सुखदः सुखी ॥५०॥
व्याधिहा सुखदः सौख्यं कल्याणं कलतां वरः।
आरोग्यकारणं सिद्धिर्काद्विवद्विरबृहस्पतिः ॥५१॥
हिरण्यरेता आरोग्यं विदन् ब्रध्नो बुधो महान् ॥५२॥
प्राणवान् धृतिमान् धर्मो धर्मकर्ता रुचिप्रदः।
प्रांशुर्वियोतनो योतः सहस्त्रकिरणः कृती।
केयूरी भूषणोद्भासी भासितो भासनोऽनलः ॥५४॥
शरण्यार्तिहरो होता खद्योतः खगसत्तमः।
सर्वद्योतो भवद्योतः सर्वद्युतिकरो मतः ॥५५॥
कल्याणः कल्याणकर: कल्यः कल्यकरः कविः।
कल्याणकृत्कल्यवपुः सर्वकल्याणभाजनम् ॥५६॥
शान्तिप्रियः प्रसन्नात्मा प्रशान्तः प्रशमप्रियः।
उदारकर्मा सुनयः सुवर्चा वर्चसोज्ज्वलः ॥५७॥
वर्चस्वी वर्चसामीशस्त्रैलोक्येशो वशानुगः।
तेजस्वी सुयशा वर्ष्मी वर्णाध्यक्षो बलिप्रियः ॥५८॥
यशस्वी तेजोनिलयस्तेजस्वी प्रकृतिस्थितः।
आकाशगः शीघ्रगतिराशुगो गतिमान् खगः ॥५९॥
गोपतिर्ग्रहदेवेशो गोमानेकः प्रभञ्जनः।
जनिता प्रजनो जीवोदीपः सर्वप्रकाशकः ॥६०॥
सर्वसाक्षी योगनित्यो नभस्वानसुरान्तकः।
रक्षोघ्नो विघ्नशमनः किरीटी सुमनः प्रियः ॥६१॥
मरीचिमाली सुमतिः कृताभिख्यविशेषकः।
शिष्टाचारः शुभाचारः स्वचाराचारतत्परः ॥६२॥
मन्दारो माठरो वेणुः क्षुधापः क्ष्मापतिर्गुरुः।
सुविशिष्टो विशिष्टात्मा विधेयोज्ञानशोभनः ॥६३॥
महाश्वेतः प्रियोज्ञेयः सामगो मोक्षदायकः।
सर्ववेद प्रगीतात्मा सर्ववेदलयो महान् ॥६४॥
वेदमूर्तिश्चतुर्वेदो वेदभृद् वेदपारगः।
क्रियावानसितो जिष्णुर्वरीयांशुर्वरप्रदः ॥६५॥
ब्रतचारी ब्रतधरो लोकबन्धुरलङ्कृतः।
अलड्कारोऽक्षरो वेद्यो विद्यावान् विदिताशयः ॥६६॥
आकारो भूषणो भूष्यो भूष्णुर्भुवनपूजितः।
चक्रपाणिर्ध्वजधरः सुरेशो लोकवत्सलः ॥६७॥
वाग्मिपतिर्महाबाहुः क्रृतिर्विकृतिर्गुणः।
अन्धकारापहः श्रेष्ठो युगावर्तो युगादिकृत् ॥६८॥
अप्रमेयः सदायोगी निरहङ्कार ईश्वर:।
शुभप्रदः शुभः शास्ता शुभकर्मा शुभप्रदः ॥६९॥
सत्यवाञ् श्रुतिमानुच्चैर्नकारो वृद्धिदोज्नलः।
बलभूद बलदो बन्घुर्मतिमान् बलिनां वरः ॥७०॥
अनङ्गो नागराजेन्द्रः पद्मयोनिर्गणेश्वरः।
संवत्सर कऋतुर्नेता कालचक्रपरवर्तकः ॥७१॥
पदेक्षणः पद्मयोनिः प्रभावानमरः प्रभुः।
सुमूर्तिः सुमतिः सोमो गोविन्दो जगदादिजः ॥७२॥
उपसंहार
यह स्तोत्र हर प्रकार के दोषों को नष्ट करने वाला और साधक को सुख, समृद्धि, और विजय प्रदान करने वाला है। इसका पाठ नित्य श्रद्धा और भक्ति के साथ करना चाहिए।
(FQCs)
1. श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र का महत्व क्या है?
- उत्तर: श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ व्यक्ति की समृद्धि, स्वास्थ्य, और मानसिक शांति के लिए अत्यंत लाभकारी है। यह शत्रुओं पर विजय, दरिद्रता नष्ट करने और रोगों के निवारण में सहायक है। विशेष रूप से, इसे युद्ध या संघर्ष से पहले पढ़ने से व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और वह बिना किसी हानि के घर लौटता है।
2. क्या यह स्तोत्र किसी विशेष वर्ग के लिए लाभकारी है?
- उत्तर: यह स्तोत्र सभी वर्गों के लिए लाभकारी है। यह विशेष रूप से राजा, विद्वान, क्षत्रिय, व्यापारी और शूद्रों के लिए उपयोगी है। ब्राह्मणों को यह विद्या प्रदान करता है, क्षत्रियों को युद्ध में विजय, और वैश्यों को पशुधन प्रदान करता है।
3. श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ कैसे करना चाहिए?
- उत्तर: इसे श्रद्धा और विश्वास के साथ ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। यदि संभव हो तो इसे प्रात:काल सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पढ़ें। संयम और पूर्ण समर्पण के साथ इसका पाठ करने से व्यक्ति के सभी संकल्प सिद्ध होते हैं और वह परम सुख प्राप्त करता है।
4. इस स्तोत्र को कौन सा व्यक्ति पढ़ सकता है?
- उत्तर: यह स्तोत्र हर व्यक्ति के लिए पढ़ने योग्य है। विशेष रूप से, जिन लोगों को संतान प्राप्ति, दरिद्रता निवारण, या शत्रुओं पर विजय प्राप्ति की आवश्यकता है, उन्हें इसका पाठ विशेष लाभ प्रदान करता है।
5. सूर्य सहस्रनाम के श्लोकों का क्या अर्थ है?
- उत्तर: प्रत्येक श्लोक का अर्थ और प्रभाव अलग-अलग होता है। जैसे श्लोक 5 में बताया गया है कि युद्ध से पहले इसका पाठ करने वाले व्यक्ति को शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। श्लोक 6 में यह कहा गया है कि यह स्तोत्र बाँझ स्त्रियों को संतान, भयभीत व्यक्तियों को सुरक्षा, और दरिद्रों को धन प्रदान करता है।
6. इस स्तोत्र के पाठ से कौन-कौन से लाभ होते हैं?
- उत्तर: इस स्तोत्र के पाठ से व्यक्ति को संतान प्राप्ति, दरिद्रता नाश, शत्रु पर विजय, स्वास्थ्य लाभ, और मानसिक शांति मिलती है। इसके अलावा, यह स्तोत्र ग्रह दोष, कुष्ठ रोग, और सभी प्रकार के भय का नाश करता है।
7. श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र में कौन सी देवता का उल्लेख है?
- उत्तर: इस स्तोत्र में सूर्य देवता (सविता) का उल्लेख किया गया है। सूर्य देव को जीवनदाता, ऊर्जा और शक्ति के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है।
8. इस स्तोत्र के पाठ से किस प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं?
- उत्तर: श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र के नियमित पाठ से व्यक्ति के सभी संकल्प सिद्ध होते हैं, वह अपार सुख प्राप्त करता है, और जीवन में शांति और समृद्धि का संचार होता है।
9. श्री सूर्य सहस्रनाम स्तोत्र का पाठ विशेष रूप से किस समय करना चाहिए?
- उत्तर: यह स्तोत्र विशेष रूप से प्रात:काल के समय, सूर्योदय से पहले या सूर्यास्त के समय करना चाहिए। सूर्य को अर्घ्य देने के बाद इसका पाठ करने से अधिक लाभ मिलता है।
10. क्या इस स्तोत्र का पाठ केवल साधक के लिए होता है, या यह सामान्य व्यक्ति भी कर सकता है?
- उत्तर: यह स्तोत्र साधक के लिए तो लाभकारी है ही, साथ ही सामान्य व्यक्ति भी इसका पाठ कर सकता है। इसे नियमित रूप से पढ़ने से किसी भी प्रकार की परेशानियों, जैसे आर्थिक तंगी, शत्रु, और स्वास्थ्य समस्याओं का निवारण होता है।
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