घुघुतिया त्यौहार शायरी | उत्तराखंड की संस्कृति पर आधारित खूबसूरत पंक्तियाँ (Ghughutia Festival Shayari )

घुघुतिया त्यौहार: परंपरा और संस्कृति का पर्व

घुघुतिया, जिसे उत्तरायणी और पुस्योड़िया भी कहा जाता है, उत्तराखंड का एक लोकपर्व है। यह त्यौहार मकर संक्रांति के दिन मनाया जाता है और पक्षियों, विशेष रूप से कौवों, को पकवान खिलाने की अनूठी परंपरा का हिस्सा है। इस पर्व में बनाए जाने वाले विशेष पकवान 'घुघुत' और लोकगीत इस त्यौहार को खास बनाते हैं।


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घुघुतिया त्यौहार पर बेहतरीन शायरी

काले कौवा, काले कौवा, घुघुति माला खा,
पर्वतों की संस्कृति का ये अनुपम उपहार पा।
त्यौहार है ये खुशियों का, प्रेम का संदेश दे,
हर घर में सजे पकवान, त्योहार की मिठास दे।

घुघुति माला की खुशबू से महके आंगन सारा,
कौवे की कांव-कांव से, पर्वत ने नयापन संवारा।
पर्व है ये रिश्तों का, प्रकृति से जुड़ने का,
उत्तराखंड की माटी में प्रेम के बीज बोने का।

काले कौवा, आ छत पर, ले घुघुति का स्वाद,
मकरैण की सुबह सजे, हर दिल में हो प्रसाद।
संस्कृति की इस मिठास को, दिल से अपनाएं,
उत्तराखंड की परंपरा, सदा जीवित रह जाए।

सूरज ने करवट बदली, आया मकर संक्रांति का दिन,
घुघुतिया के पकवानों संग, मन में उमंग और धुन।
कौवे की माला पहनकर, पर्व मनाए हर कोई,
उत्तराखंड की इस परंपरा में छिपी है स्नेह की रोशनी।

घुघुतिया का त्यौहार, कौवे का न्योता है,
मिट्टी की खुशबू संग, संस्कृति का तोहफा है।
उत्तरायणी की सुबह, पर्वतों का श्रृंगार है,
पर्व है ये उल्लास का, हर दिल में त्योहार है।


घुघुतिया पर कविता

“काले कौवा, घुघुति माला खा,
पर्वत की संस्कृति का ये अनुपम श्रृंगार पा।
घुघुत की मिठास से हर दिल महका,
उत्तराखंड की माटी ने फिर से गाया।”_

घुघुतिया त्यौहार पर कविता 2

"घुघुति की मिठास"

घुघुति माला की वो प्यारी सी बात,
कौवे का न्योता, और पकवानों की सौगात।
संस्कृति से जुड़ता हर पर्वत का कोना,
हर घर में सजे त्यौहार का तोहफा।

उत्तराखंड की ये अनुपम पहचान,
घुघुतिया के गीतों में बसा है सम्मान।
घुघुति संग प्रेम का संदेश दे,
हर रिश्ते को ये त्योहार बंधे।

काले कौवा, आओ छत पर,
मिठास से भरी घुघुति के स्वर।
परंपरा का ये उत्सव सदा जीवित रहे,
हर पीढ़ी इसे स्नेह से आगे बढ़े।


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