उत्तराखण्ड के लोकपर्व घुघुति की सभी को बधाइयाँ
मकर संक्रांति के पर्व पर उत्तराखण्ड में उत्तरैणी, मकरैनी और कुमाऊँ में खासकर घुघुति मनाया जाता है। इस दिन यहां के लोग मीठा पकवान (घूघते) बनाते हैं और उसे कौओं को बुलाकर खिलाते हैं। साथ ही बच्चों के गले में एक माला भी पहनाते हैं। पहाड़ों पर यह प्रथा बहुत पुरानी है।
![]() |
photo credit Instagram lati.art_ |
‘काले कौवा काले घुघुति माला खा ले’।
उत्तराखण्ड का लोक पर्व उत्तरायणी अब करीब ही है। इस मौके पर होने वाले मेले सज चुके हैं और कुछ की तैयारी जोर-शोर से चल रही है। मकर संक्रान्ति का त्यौहार उत्तराखण्ड में उत्तरायणी, उत्तरैण आदि नामों से जाना जाता है। उत्तरायणी शब्द उत्तरायण से बना है। प्राचीन समय में समय के मापने की कई इकाइयां बनायी गयी थीं— याम, तिथि, पक्ष, मास, ऋतु और अयन। एक अयन में तीन ऋतुएं व छः मास होते हैं। उत्तरायण मतलब जब सूर्य उत्तर की ओर जाना शुरू करता है। यह उत्तर और अयन शब्दों की संधि से बना है – उत्तर+अयन अर्थात उत्तर में गमन। उत्तरायण का आरम्भ 21 या 22 दिसंबर से होता है और 22 जून तक रहता है।
यह सवाल पैदा होना लाजमी है कि तब 14-15 जनवरी उत्तरायणी के दिन से सूर्य का उत्तरायण की दिशा में जाना क्यों माना जाता है और क्यों इसी दिन उत्तरायणी या मकर संक्रान्ति का त्यौहार मनाया जाता है। लगभग 1800 साल पहले इसी दिन सूर्य उत्तरायण में जाने की स्थिति में होता था, शायद इसीलिए इस दिन से उत्तरायणी का त्यौहार मनाये जाने की परम्परा आज भी जारी है।
उत्तरायण को शुभ माना जाता है। इसीलिए महाभारत में भीष्म जब अर्जुन के बाणों से घायल हुए तो दक्षिणायण की दिशा थी। भीष्म ने अपनी देह का त्याग करने के लिए उत्तरायण तक सर शैय्या पर ही विश्राम किया था। माना जाता है कि उत्तरायण में ऊपरी लोकों के द्वार पृथ्वीवासियों के लिए खुल जाते हैं। इस समय देश के सभी हिस्सों में विभिन्न त्यौहार मनाये जाते हैं।
इस मौके पर ही उत्तराखण्ड में उत्तरायणी का त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रान्ति से पूर्व की रात से ही त्यौहार मनाना शुरू हो जाता है। इस दिन को मसांत कहा जाता है, यानि त्यौहार की पूर्व संध्या। इस दिन हर शुभ अवसर की तरह बड़ुए और पकवान बनाये-खाए जाते हैं। इसी रात हर घर में घुघुत बनाये जाते हैं और बच्चों के लिए घुघुत की मालाएं भी तैयार कर ली जाती हैं।
![]() |
photo credit Instagram lati.art_ |
ये घुघुत हिंदी के ४ के आकार के साथ ढाल-तलवार, फूल, डमरू तथा खजूर आदि की आकृतियों के बनाये जाते हैं। घुघुतों को घर भर के कई दिनों तक के खाने के अलावा नाते-रिश्तेदारों और पड़ोसियों को बांटने के लिए भी बनाया जाता है।
पुराने समय में इस दिन रात भर जागकर आग के चारों ओर लोकगीत व लोकनृत्य आयोजित किये जाते थे। रात भर जागकर अलसुबह ब्रह्म मुहूर्त में आस-पास की नदी, नौलों व गधेरों में नहाने के लिए निकल पड़ने की परंपरा हुआ करती थी। रात्रि जागरण की यह परंपरा अब लुप्त हो चुकी है लेकिन सुबह स्नान करने की परंपरा आज भी कायम है। इस दिन उत्तराखण्ड की सभी पवित्र मानी जाने वाली नदियों में लोग स्नान के लिए जुटते हैं। कई नदियों के तट पर ऐतिहासिक महत्त्व के मेले भी लगा करते हैं।
स्नान करने के बाद घरों में पकवान बनना शुरू हो जाते हैं। मसांत में बनाये गए घुघुतों को सबसे पहले कौवों को खिलाया जाता है। घुघुतों को घर, आंगन, छत की ऊंची दीवारों पर कौवों के खाने के लिए रख दिया जाता है। इसके बाद बच्चे जोर-जोर से ‘काले कौव्वा का-ले, घुघुति माला खाले!’ की आवाज लगाकर उन्हें बुलाते हैं। बच्चे मनगढ़ंत तुकबंदियां बोलकर कौवों से तोहफे भी मांगते हैं।
कौवों के आकर खा लेने तक उनका इन्तजार किया जाता है।
उत्तरायणी में कौवो को खिलाने की परंपरा के बारे में कई जनश्रुतियां एवं लोककथाएँ प्रचलित हैं। इनमें से एक लोक कथा इस प्रकार है–
बात उन दिनों की है जब कुमाऊँ में चन्द्र वंश का राज हुआ करता था। उस समय के चन्द्रवंशीय राजा कल्याण चंद की कोई संतान नहीं थी, जो उसकी उत्तराधिकारी बनती। इस वजह से उसका मंत्री सोचता था कि राजा की मृत्यु के बाद वही अगला शासक बनेगा। एक बार राजा कल्याण चंद रानी के साथ बाघनाथ मन्दिर गए और पूजा-अर्चना कर संतान प्राप्ति की कामना की।
बाघनाथ की अनुकम्पा से जल्द ही उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। पुत्र का नाम निर्भय चंद रखा गया। निर्भय को उसकी माँ लाड़ से उत्तराखंड की एक चिड़िया घुघुति के नाम से बुलाया करती। घुघुति के गले में मोतियों की एक माला सजी रहती, इस माला में घुंघरू लगे हुए थे। जब माला से घुंघरुओं की छनक निकलती तो घुघुति खुश हो जाता था।
घुघुति जब किसी बात पर अनायास जिद्द करता तो उसकी माँ उसे धमकी देती कि वे माला कौवे को दे देंगी। वह पुकार लगाती कि ‘काले कौवा काले घुघुति माला खाले’ पुकार सुनकर कई बार कौवा आ भी जाता। उसे देखकर घुघुति अपनी जिद छोड़ देता। जब माँ के बुलाने पर कौवे आ ही जाते तो वह उनको कोई न कोई चीज खाने को दे देती। धीरे-धीरे घुघुति की इन कौवों के साथ अच्छी दोस्ती हो गई।
उधर मंत्री जो राज-पाट की उम्मीद में घुघुति की हत्या का षड्यंत्र रचने लगा। मंत्री ने अपने कुछ दरबारियों को भी इस षड्यंत्र में शामिल कर लिया। एक दिन जब घुघुति खेल रहा था तो उन्होंने उसका अपहरण कर लिया। वे घुघुति को जंगल की ओर ले जाने लगे। रास्ते में एक कौवे ने उन्हें देख लिया और काँव-काँव करने लगा। पहचानी हुई आवाज सुनकर घुघुति जोर-जोर से रोने लगा। उसने अपनी माला हाथ में पकड़कर उन्हें दिखाई।
धीरे-धीरे जंगल के सभी कौवे अपने दोस्त की रक्षा के लिए इकट्ठे हो गए और मंत्री और उसके साथियों के ऊपर मंडराने लगे। मौका देखकर एक कौवा घुघुति के हाथ से माला झपट कर ले उड़ा। सभी कौवों ने एक साथ मंत्री और उसके साथियों पर अपनी चोंच व पंजों से जोरदार हमला बोल दिया। इस हमले से घबराकर मंत्री और उसके साथी भाग खड़े हुए। घुघुति जंगल में अकेला एक पेड़ के नीचे बैठ गया। सभी कौवे उसी पेड़ में बैठकर उसकी सुरक्षा में लग गए।
इसी बीच हार लेकर गया कौवा सीधे महल में जाकर एक पेड़ पर माला टांग कर जोर-जोर से चिल्लाने लगा। जब सभी की नजरें उस पर पड़ी तो उसने माला घुघुति की माँ के सामने डाल दी। माला डालकर कौवा एक डाल से दूसरी डाल में उड़ने लगा। माला पहचानकर सभी ने अनुमान लगाया कि कौवा घुघुति के बारे में कुछ जानता है और कहना चाहता है। राजा और उसके घुड़सवार सैनिक कौवे के पीछे दौड़ने लगे।
कुछ दूर जाने के बाद कौवा एक पेड़ पर बैठ गया। राजा और सैनिकों ने देखा कि पेड़ के नीचे घुघुति सोया हुआ है। वे सभी घुघुति को लेकर राजमहल लौट आये। घुघुति के घर लौटने के बाद राजा और उसकी रानी ने कौवों को कृतज्ञता से भर दिया और घोषणा की कि हर साल इस दिन कौवों को भोजन खिलाने की परंपरा कायम रहेगी। आज भी उत्तरायणी पर कौवों को घुघुति खिलाने की परंपरा कायम है।
समाप्त
उत्तराखण्ड के लोकपर्व घुघुति से संबंधित कुछ Frequently Asked Questions (FAQ)
1. घुघुति क्या है?
- घुघुति एक पारंपरिक पकवान है जो मकर संक्रांति और उत्तरायणी के मौके पर उत्तराखण्ड में बनाया जाता है। इसे खास तौर पर घरों में कौवों को खिलाने के लिए तैयार किया जाता है।
2. घुघुति बनाने की प्रक्रिया क्या है?
- घुघुति बनाने के लिए आटा, गुड़, घी, तिल, मेवा और अन्य सामग्री का उपयोग किया जाता है। इसे विभिन्न आकारों में ढालकर तैयार किया जाता है, जैसे कि ढाल, तलवार, फूल आदि।
3. उत्तरायणी का महत्व क्या है?
- उत्तरायणी सूर्य के उत्तरायण में जाने का प्रतीक है। इसे शुभ माना जाता है और इस दिन को विशेष रूप से उत्तराखण्ड में मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। इसे एक धार्मिक और सांस्कृतिक दिन माना जाता है।
4. उत्तरायणी में कौवों को घुघुति क्यों खिलाया जाता है?
- उत्तराखण्ड में यह परंपरा है कि मकर संक्रांति के दिन कौवों को घुघुति खिलाया जाता है। यह परंपरा घुघुति के साथ जुड़ी एक लोककथा से संबंधित है, जिसमें कौवों ने घुघुति की मदद की थी।
5. क्या घुघुति केवल उत्तराखण्ड में बनती है?
- हां, घुघुति उत्तराखण्ड में ही विशेष रूप से बनती है और यहां के पर्वों में इसका अहम स्थान है। हालांकि, अन्य पहाड़ी क्षेत्रों में भी इस तरह के पकवान बनते हैं, लेकिन उत्तराखण्ड में यह एक खास परंपरा है।
6. क्या घुघुति का सेवन स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है?
- घुघुति में तिल, मेवा और गुड़ जैसी पौष्टिक चीजें होती हैं, जो स्वास्थ्य के लिए लाभकारी मानी जाती हैं। यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करने के साथ-साथ शरीर को ठंडक भी पहुंचाती है।
7. उत्तरायणी के दिन क्या विशेष आयोजन होते हैं?
- उत्तरायणी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर नदियों और ताजे पानी के स्रोतों में स्नान करते हैं। इसके बाद घरों में पकवान बनते हैं और विभिन्न पूजा-अर्चना की जाती है। यह दिन लोक गीतों, नृत्यों और मेले के आयोजन के लिए भी प्रसिद्ध है।
8. क्या घुघुति केवल बच्चों को खिलाया जाता है?
- नहीं, घुघुति को घर के सभी लोग खाते हैं, लेकिन खासतौर पर इसे कौवों को खिलाने की परंपरा है, जो घरों में बुरे समय से बचाने और खुशहाली लाने का प्रतीक मानी जाती है।
9. क्या उत्तरायणी का त्यौहार पूरे उत्तराखण्ड में मनाया जाता है?
- हां, उत्तरायणी का त्यौहार पूरे उत्तराखण्ड में मनाया जाता है, खासकर कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में। हर स्थान पर इसे मनाने का तरीका थोड़ी भिन्न हो सकता है, लेकिन इसका मूल उद्देश्य एक ही होता है।
10. क्या उत्तरायणी का पर्व धार्मिक महत्व रखता है?
- हां, उत्तरायणी का धार्मिक महत्व है, क्योंकि इसे सूर्य के उत्तरायण में प्रवेश के साथ जोड़ा जाता है। इसे शुभ मानी जाती है और विशेष पूजा-अर्चना, स्नान और दान करने का समय होता है।
टिप्पणियाँ