रशुलन दीबा: इस देवी के चमत्कार की कहानी पढ़कर आप भी हो जाएंगे हैरान!

रशुलन दीबा: इस देवी के चमत्कार की कहानी पढ़कर आप भी हो जाएंगे हैरान!

मां रशुलन दीबा, उत्तराखंड के पौड़ी जिले में स्थित एक ऐसी दिव्य शक्ति हैं, जिनका चमत्कार आज भी लोगों को हैरान कर देता है। यह मंदिर घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों के बीच पट्टी किमगड़ी गढ़, पोखरा ब्लॉक के झालपड़ी गांव के ऊपर स्थित है। इस पवित्र स्थल तक पहुँचने का सफर जितना कठिन है, उतना ही अद्भुत और यादगार भी।

मंदिर तक पहुंचने का मार्ग

अगर आप मां रशुलन दीबा के दर्शन करना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले कोटद्वार आना होगा। कोटद्वार से आप सतपुली बाजार पहुंच सकते हैं। इस मार्ग पर आपको घुमखाल और लैंसडाउन छावनी के खूबसूरत और मनमोहक दृश्य देखने को मिलेंगे। सतपुली से चौबट्टाखाल गवानी जाना होता है, जहाँ से झालपड़ी गांव नजदीक पड़ता है।

झालपड़ी गांव से मंदिर तक का रास्ता लगभग 15 किलोमीटर लंबा है। यह मार्ग जंगल और पहाड़ियों से होकर गुजरता है। इस दुर्गम सफर को लोग प्रायः रात में तय करते हैं, क्योंकि यहां से सूर्यदेव का अद्भुत और अकल्पनीय दर्शन सुबह 4 बजे किया जा सकता है।


सूर्यदेव का अनोखा स्वरूप

हिमालय और कैलास पर्वत के बीच से उगता हुआ सूरज तीन रंगों में अपना स्वरूप बदलता है—

  1. लाल रंग
  2. केसरिया रंग
  3. चमकीला सुनहरा रंग

इस विलक्षण दृश्य को देखने के लिए श्रद्धालु रातभर मंदिर के आसपास डेरा डालते हैं।


मंदिर की विशेषताएँ

  • प्रसाद और पूजा:
    मां रशुलन दीबा के मंदिर में नारियल और गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है। यहां रशूली नामक वृक्ष के पत्तों में प्रसाद लेना शुभ माना जाता है। इस वृक्ष पर हथियार चलाना वर्जित है, इसलिए श्रद्धालु इसके पत्ते केवल हाथ से तोड़ते हैं।

  • गोरखाओं से रक्षा का चमत्कार:
    कहा जाता है कि गढ़वाल पर गोरखाओं के आक्रमण के समय मां ने अपने भक्तों को सचेत किया था। मान्यता है कि मां के आदेश पर गोरखा सैनिक बिना नुकसान पहुंचाए लौट गए थे।

  • भूटिया जनजाति की आस्था:
    गुत्तू घनसाली की भूटिया और मर्छ्या जनजाति के लोग भी मां के प्रति गहरी आस्था रखते हैं। वे जंगलों में बकरियां चराते समय मां का नाम सुमिरन करते हैं, जिससे उन्हें सुरक्षा का आभास होता है।


यात्रा के लिए आवश्यक तैयारी

  • यात्रा का सबसे उचित समय मई और जून का महीना है।
  • यहां अत्यधिक ठंड होती है, इसलिए गर्म कपड़े और कंबल अवश्य साथ रखें।
  • रहने और खाने की व्यवस्था के लिए ऊपरी स्थानों पर विशेष तैयारी करनी पड़ती है।

मंदिर को पर्यटन से जोड़ने का प्रयास

पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इस पवित्र स्थल को पर्यटन से जोड़ने का आश्वासन दिया है। इसके लिए मंदिर तक बेहतर पहुंच और सुविधाओं की व्यवस्था की जा रही है।


मां रशुलन दीबा के इस अद्भुत मंदिर की दिव्यता को शब्दों में बयान करना मुश्किल है। यह स्थल न केवल आध्यात्मिक शांति प्रदान करता है, बल्कि प्रकृति के अद्भुत दृश्यों का आनंद लेने का भी मौका देता है।
"मां रशुलन दीबा की कृपा आप सभी पर बनी रहे।"

Frequently Asked Questions (FAQs) 


1. माँ रशुलन दीबा का मंदिर कहाँ स्थित है?

उत्तर:
माँ रशुलन दीबा का मंदिर उत्तराखंड के पौड़ी जिले के पट्टी किमगड़ी गढ़ के पोखरा ब्लॉक में, झालपड़ी गांव के पास घने जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों के बीच स्थित है।


2. मंदिर तक कैसे पहुँचा जा सकता है?

उत्तर:
मंदिर तक पहुँचने के लिए:

  1. सबसे पहले कोटद्वार पहुंचें।
  2. कोटद्वार से सतपुली बाजार जाएं।
  3. सतपुली से चौबट्टाखाल और गवानी होते हुए झालपड़ी गांव तक पहुँचें।
  4. झालपड़ी गांव से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर जंगल और पहाड़ी रास्तों से होते हुए मंदिर पहुंचा जा सकता है।

3. मंदिर तक पहुंचने का सबसे अच्छा समय कौन सा है?

उत्तर:
मंदिर की यात्रा के लिए मई और जून का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है। इन महीनों में मौसम अपेक्षाकृत अनुकूल होता है।


4. मंदिर में प्रसाद के रूप में क्या चढ़ाया जाता है?

उत्तर:
माँ के मंदिर में नारियल और गुड़ का प्रसाद चढ़ाया जाता है। इसे रशूली नामक वृक्ष के पत्तों में ग्रहण करना शुभ माना जाता है।


5. रशूली वृक्ष से जुड़ी मान्यता क्या है?

उत्तर:
रशूली वृक्ष पर हथियार चलाना वर्जित है। इसकी पत्तियां केवल हाथ से तोड़कर प्रसाद के रूप में प्रयोग की जाती हैं।


6. मंदिर की विशेषता क्या है?

उत्तर:

  • मंदिर से सुबह 4 बजे सूर्यदेव का अद्भुत दर्शन होता है।
  • हिमालय और कैलास पर्वत के बीच उगता सूरज तीन रंगों (लाल, केसरिया और सुनहरा) में बदलता है।
  • मान्यता है कि माता ने गोरखाओं के आक्रमण से भक्तों की रक्षा की थी।

7. मंदिर में रहने और खाने की क्या व्यवस्था है?

उत्तर:
मंदिर के पास सीमित सुविधाएं हैं। श्रद्धालुओं को खाने और रहने की व्यवस्था के लिए अपने साथ जरूरी सामान ले जाना पड़ता है। ठंड के कारण गर्म कपड़े और कंबल अवश्य साथ रखें।


8. क्या यह स्थान पर्यटन से जुड़ा हुआ है?

उत्तर:
फिलहाल मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का कार्य जारी है। उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने इसे पर्यटन से जोड़ने का आश्वासन दिया है।


9. क्या यहां रात में यात्रा करना सुरक्षित है?

उत्तर:
मां रशुलन दीबा के आशीर्वाद से लोग रात में भी जंगल और दुर्गम रास्तों से गुजरकर मंदिर तक पहुँचते हैं।


10. कौन-कौन से त्योहार या आयोजन यहां खास होते हैं?

उत्तर:
मंदिर में विशेष पूजा-अर्चना और धार्मिक अनुष्ठान मई और जून के महीने में किए जाते हैं। इन महीनों में यहां श्रद्धालुओं की अधिक भीड़ रहती है।

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