प्रदीपशाह
प्रदीपशाह के राज्यारोहण की तिथि को लेकर भी इतिहासविद्धों के मध्य मतैक्य नहीं है। हरिकृष्ण रतुड़ी के अनुसार वे 33 वर्ष की आयु में गद्दी पर बैठे। जबकि शिवप्रसाद डबराल के अनुसार राज्यारोहण के समय उसकी आयु 5 वर्ष थी। किन्तु शूरवीर सिंह के संग्रह में रखे ताम्रपत्र के आधार पर दो तथ्य सामने आते हैं-
1. फतेहशाह व प्रदीपशाह के मध्य उपेन्द्रशाह गढ़नरेश रहा।
2. प्रदीपशाह के राज्यारोहरण पर उनकी माता का संरक्षिका न होने का ज्ञान होता क्योंकि उनकी माता का नाम ताम्रपत्र में अंकित नहीं है।
डॉ० डबराल के अनुसार प्रदीपशाह अल्पव्यस्क रहने तक मंत्रियों के सशक्त गुट ने राजकार्य संभाला जिनमें पूरनमल या पुरिया नैथाणी का नाम विशेष रूप से उल्लिखित है। डॉ० डबराल तथा एंटकिन्सन महोदय ने चार अभिलेखों (सम्वत् 1782, 1791, 1802, 1812 क्रमशः) का वर्णन किया है जिनमें से कोई भी उपलब्ध नहीं है। प्रदीपशाह के काल का एक सिक्का लखनऊ संग्रहालय में रखा हैं जिसके ऊपर 'गढ़वाल का राजा' एवं नीचे प्रदीपशाह सन् 1717 से 1757 ई० तक लिखा है। प्रदीपशाह के काल में गढ़वाल तथा कुमाऊँ के मध्य मधुर सम्बन्ध थे। इसका साक्ष्य हमें कुमाऊँ पर रोहिल्ला आक्रमण के अवसर पर मिलता है। जब कुमाऊँ नरेश कल्याणचन्द्र की सहायता के लिए प्रदीपशाह ने अपनी सेनाएँ भेजी थी। इसके बाद भी जब गढ़वाल कुमाऊँ की सम्मिलित सेनाएँ रोहिल्लों को परास्त करने में असमर्थ रही तो कुमाऊँ नरेश ने रोहिल्लों से सन्धि करनी उचित समझी। रोहिल्लों ने युद्ध क्षतिपूर्ति के रूप में तीन लाख रूपयों की माँग कल्याण चन्द से की। कल्याणचन्द्र से मित्रता के कारण यह राशि प्रदीपशाह ने भुगतान की। सम्भवतः इसी समय गढ़राज्य से भावर एवं दून घाटी रोहिल्ला सेनापति ने हस्तगत की थी जिनमें पुनः 1770 ई0 को दून घाटी गढ़राज्य ने हस्तगत कर ली।
विलियम्स के शब्दो - "प्रदीपशाह का शासनकाल शान्तिपूर्ण एवं ऐश्वर्यशाली था। दून की उपत्यका हरीभरी थी जहां तनिक भी श्रम करने पर कृषक लहलहाती फसल काटते थे। सम्भवतः प्रदीपशाह ने 56 वर्ष शासन किया। बैकेट महोदय की सूची, पातीराम एवं एटकिन्सन के अनुसार सम्वत् 1829 में इनकी मृत्यु हुई अर्थात 1772 ई0 तक उन्होंने शासन किया। राहुल सांकृत्यायन ने भी दी गई तिथि की पुष्टि एक ताम्रपत्र से की है। यद्यपि हरिकृष्ण रतुड़ी इसे 1750-1780 ई0 के मध्य रखते हैं। अतः सर्वाधिक प्रमाणिक तिथि 1772 प्रतीत होती है।"
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